बलरामपुर के गुरुद्वारा गुरु सिंह सभा उतरौला में सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी का 355वां प्रकाश पर्व मूल नानक शाही कैलेंडर के अनुसार बड़ी श्रद्धा और सत्कार के साथ मनाया गया। गुरु गोविंद सिंह मूलत धर्मगुरु थे। अस्त्र-शस्त्र या युद्ध से उनका कोई वास्ता नहीं था।
औरंगजेब को लिखे गए अपने 'अजफरनामा' में उन्होंने इसे स्पष्ट किया था, 'चूंकार अज हमा हीलते दर गुजशत, हलाले अस्त बुरदन ब समशीर ऐ दस्त।' मतलब जब सत्य और न्याय की रक्षा के लिए अन्य सभी साधन विफल हो जाएं, तो तलवार को धारण करना सर्वथा उचित है।
लोगों ने एक-दूसरे को दी बधाई
धर्म, संस्कृति और राष्ट्र की शान के लिए गुरु गोबिंद सिंह ने अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। इस अजफरनामा (विजय की चिट्ठी) में उन्होंने औरंगजेब को चेतावनी दी कि तेरा साम्राज्य नष्ट करने के लिए खालसा पंथ तैयार हो गया है। गुरुद्वारा सिंह सभा उतरौला में रविवार सुबह से ही लोगों ने माथा टेक कर एक दूसरे को गुरु के प्रकाश पर्व की बधाई दी।
खालसा पंथ की स्थापना की थी
इस मौके पर शबद कीर्तन का भी आयोजन किया गया और लंगर का आयोजन हुआ। गुरुद्वारा साहिब के मुख्य ग्रंथी सरदार बलवान सिंह ने बताया कि गुरु का जन्म पटना साहिब बिहार में हुआ था। उन्होंने 1699 वैशाखी वाले दिन खालसा पंथ की स्थापना की थी। इन्होंने ही देहधारी गुरु की परंपरा को समाप्त कर श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी को ही सिखों के गुरु के रूप में स्थापित किया।
गुरुद्वारा कमेटी के अध्यक्ष सरदार दलबीर सिंह खुराना ने बताया कि गुरु जी ने जात पांति, छुआ छूत, आडंबर का घोर विरोध किया था। हमें गुरु जी के बताए मार्गों का अपने जीवन में अनुसरण करना चाहिए।
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