रजिस्टर की चप्पलों से पिटाई यह सुनकर कुछ अटपटा जरूर लग रहा होगा। रजिस्टरों को चप्प्ल से पीटने वाला कोई आम आदमी नहीं बल्कि संविधान में आस्था रखने वाली पुलिस ही है। पुलिस ही एक ऐसा महकमा है जो टोने-टोटके और जादू-टोने को नहीं मानता। और कानून के हिसाब से ही काम करती है।
बात जब नए साल के पहले दिन थाने में बनने वाले पंचायतनामा रजिस्टर की हो तो पुुलिस ही टोटके का सहारा लेती है। 1 जनवरी को जब थाने में पंचायतनामा रजिस्टर बनाया जाता है तो पुलिस रजिस्टर तैयार करते ही उसे चप्पलों से पीट कर बेअदबी करती है। जिसके पीछे मंशा है कि ऐसा करने से थाने में साल भर कम से कम लाशों का पंचायतनामा भरना पड़े। इस लिए इस रजिस्टर की चप्पलों से पिटाई कर बेइज्जती की जाती है।
अंगेजों के जामने से चल रहा है यह टोटका
रिटायर्ड IPS राजेश पाण्डेय जो बरेली जिले में DIG भी रह चुके हैं। उन्होंने बताया कि पुलिस महकमे में यह टोटका कोई नया नहीं है। यह टोटका अंग्रेजों के समय से चल रहा हैै। नए साल के पहले दिन थानों में साल के हिसाब से दर्जनों रजिस्टर बनाए जाते हैं। जिसमें अपराध रजिस्टर, गुंडा रजिस्टर, गैंगस्टर रजिस्टर, त्योहार रजिस्टर, हिस्ट्रीशीटर रजिस्टर, हत्या रजिस्टर, लूट रजिस्टर, डकैती व पंचायतनामा रजिस्टर समेत दर्जनों रजिस्टर 1 जनवरी को तैयार किए जाते हैं।
इन सभी रजिस्टरों पुलिस बड़े ही सुरक्षित तरीके से रखती है लेकिन पंचायतनामा रजिस्टर एक ऐसा रजिस्टर है जिसे लेकर पुलिस अंग्रेजों के जमाने से नाखुश रहती है। पंचायतनामा रजिस्टर वह रजिस्टर है जिसे किसी की मौत के बाद पुलिस को भरना पड़ता है, मौत के लिए भरे जाने वाले इस रजिस्टर को लेकर न तो बड़े अधिकारी और न ही इंस्पेक्टर से लेकर पंचनामा भरने वाला दारोगा कभी इस रजिस्टर को भरने के लिए खुश नहीं दिखता। हत्या, खुदकुशी और अज्ञात लाशों के मिलने के बाद पुलिस को इस पंचायतनामा रजिस्टर में उसे लिखना पड़ता है।
काेई भी पुलिसकर्मी यह नहीं चाहता कि उसे इस रजिस्टर पर किसी मौत की सूचना भरनी पड़े। इसी लिए अंग्रेजों के समय से एक टोटका चला कि पंचायतनामा रजिस्टर की बेअदबी कर चप्पलों से पीटा जाए। इससे कुछ हद तक पुलिसकर्मियों को पंचायतनामा कम भरना पड़े। जिसके चलते 1 जनवरी को जब पंचायतनामा रजिस्टर तैयार होता है तो उसे चप्पलों से पीटकर बेअदबी की जाती है।
अधिकारी नहीं रखते इत्तेफाक लेकिन हेड मुंशी करते है टोटका
रिटायर्ड IPS अधिकारी राजेश पांडेय ने बताया कि इस टोटके से अधिकारी कोई इत्तेफाक नहीं रखते लेकिन थाने के हेड मुंशी जरुर आज भी इस अंग्रेजों के समय के टोटके को नए साल के पहले दिन करते हैं। हेड मुंशी कई दिन मशक्कत कर पंचायतनामा रजिस्टर तैयार करता है। उसकी सुरक्षा के साथ देखभाल भी हेड मुंशी ही करता है।
एक रजिस्टर को बनाने में 100 रुपये से अधिक खर्च होता है और मेहनत भी करनी पड़ती है, लेकिन कोई भी हेड मंशी इस रजिस्टर को लेकर खुश नहीं होता। क्योंकि किसी भी पुलिसकर्मी को यह अच्छा नहीं लगता कि किसी की मौत हो और उसका पंचायनामा उन्हें भरना पड़े। राजेश पांडेय ने बताया का पुलिस कुछ और रजिस्टर भी है जिनके लिए टोटके का सहारा लेती है।
पंचातनाम भरने कांपती है रुह
एक हेड मंशी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि कोई भी पुलिसकर्मी कभी नहीं चाहता कि उसके इलाके में कोई मौत हो। जब मौत होती है तो दारोगा को पंचायतनामा भरना पड़ता है। जब वह पंचायतनामा भरने जाता है तो जिसकी मौत होती है उसके परिवार में होने वाली चीख-पुकार उनकी रुह तक कंपा देती है।
सबसे अधिक तकलीफ तब होती है जब किसी मासूम बच्चे या बच्ची के शव का उन्हें पंचायतनामा भरना होता है। इस दौरान उन्हें लाश को सफेद कपड़े में लपेटने से लेकर शवों को छूकर उनकी जांच-पड़ताल के साथ ही सील करना होता है। इतना ही नहीं दुखों के इस समय में पीड़ित परिवार जब परेशान होता है तो उन्हें सवाल जवाब करना होता।
लोग पुलिस को ही कोसते हैं लेकिन उन्हें क्या पता कि पुलिस मजबूरी में पंचायतनामा भरती है। इसी लिए इस पंचायतनामा रजिस्टर की बेअदबी चप्पलों से पीटकर की जाती है।
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