मातृत्व स्वास्थ्य को सुदृढ़ बनाने पर सरकार व स्वास्थ्य विभाग का पूरा जोर है। इसके तहत हर जरूरी बिन्दुओं का खास ख्याल रखते हुए जच्चा-बच्चा को सुरक्षित बनाने की हर संभव कोशिश की जा रही है, ताकि मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को न्यूनतम स्तर पर लाया जा सके। समुदाय में इस बारे में पर्याप्त जागरूकता लाने और इसके लिए मौजूद हर सुविधाओं का लाभ उठाने के बारे में जागरूकता के लिए ही हर साल 11 अप्रैल को सुरक्षित मातृत्व दिवस मनाया जाता है।
अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी व परिवार कल्याण कार्यक्रम के नोडल डॉ. दलवीर सिंह का कहना है कि गर्भवती की प्रसव पूर्व मुफ्त जांच के लिए प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान के तहत हर माह की नौ तारीख को स्वास्थ्य केन्द्रों पर विशेष आयोजन होता है। जहां एमबीबीएस चिकित्सक द्वारा गर्भवती की सम्पूर्ण जांच नि:शुल्क की जाती है और कोई जटिलता नजर आती है तो उन महिलाओं को चिन्हित कर उन पर खास नजर रखी जाती है, ताकि जच्चा-बच्चा को सुरक्षित बनाया जा सके। इसके अलावा पहली बार गर्भवती होने पर प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना के तहत सही पोषण और उचित स्वास्थ्य देखभाल के लिए तीन किश्तों में 5000 रूपए दिए जाते हैं।
संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने को दी जाती धनराशि
एसीएमओ ने बताया, संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने के लिए जननी सुरक्षा योजना है, जिसके तहत सरकारी अस्पतालों में प्रसव कराने पर ग्रामीण महिलाओं को 1400 रुपए और शहरी क्षेत्र की महिलाओं को 1000 रुपए दिए जाते हैं। प्रसव के तुरंत बाद बच्चे की उचित देखभाल के लिए जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम हैं तो यदि किसी कारण वश मां की प्रसव के दौरान मृत्यु हो जाती है तो मातृ मृत्यु की समीक्षा भी होती है। सुरक्षित प्रसव के लिए समय से घर से अस्पताल पहुंचाने और अस्पताल से घर पहुंचाने के लिए एंबुलेंस की सेवा भी उपलब्ध है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
डॉ. राम मनोहर लोहिया चिकित्सालय की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. नमिता दास का कहना है कि जच्चा-बच्चा को सुरक्षित बनाने के लिए सरकार द्वारा कई योजनाएं चल रही हैं। इनका प्रचार-प्रसार भी किया जा रहा है, ताकि ज्यादा से ज्यादा को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान की जा सकें। आशा कार्यकर्ता इसमें अहम भूमिका निभा रही हैं। उनका कहना है कि मां-बच्चे को सुरक्षित करने का पहला कदम यही होना चाहिए कि गर्भावस्था के तीसरे-चौथे महीने में प्रशिक्षित चिकित्सक से जांच अवश्य करानी चाहिए ताकि किसी भी जटिलता का पता चलते ही उसके समाधान का प्रयास किया जा सके।
इसके साथ ही गर्भवती खानपान का खास ख्याल रखें और खाने में हरी साग-सब्जी, फल आदि का ज्यादा इस्तेमाल करें, आयरन और कैल्शियम की गोलियों का सेवन चिकित्सक के बताए अनुसार करें। प्रसव का समय नजदीक आने पर सुरक्षित प्रसव के लिए पहले से ही निकटतम अस्पताल का चयन कर लेना चाहिए और मातृ-शिशु सुरक्षा कार्ड, जरूरी कपड़े और एंबुलेंस का नंबर याद रखना चाहिए। समय का प्रबंधन भी अहम होता है, क्योंकि एंबुलेंस को सूचित करने में, विलंब करने और अस्पताल पहुंचने में देरी से खतरा बढ़ सकता है।
गर्भावस्था की सच्ची सहेली बनीं आशा
आशा कार्यकर्ता गर्भ का पता चलते ही गर्भवती का स्वास्थ्य केंद्र पर पंजीकरण कराने के साथ ही इस दौरान बरती जाने वाली जरूरी सावधानियों के बारे में जागरूक करने में सच्ची सहेली की भूमिका अदा करती हैं। इसके साथ ही प्रसव पूर्व जरूरी जांच कराने में मदद करती हैं। संस्थागत प्रसव के लिए प्रेरित करती हैं और प्रसव के लिए साथ में अस्पताल तक महिला का साथ निभाती हैं।
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