1 मार्च 1987, यह वह तारीख है जब भाकियू (भारतीय किसान यूनियन) का गठन बाबा महेंद्र सिंह टिकैत ने किया था। उद्देश्य था किसानों के हक की लड़ाई लड़ना। बीते 35 साल में भाकियू और इसके नेताओं का नाम अंतरराष्ट्रीय स्तर तक जरूर पहुंचा। मगर, कुनबे में लगातार बिखराव होता रहा। यह बिखराव भी एक-दो नहीं पूरे 6 बार हुआ।
भाकियू (टिकैत) से ऐसे अलग होते चले गए किसान नेता
वोट क्लब आंदोलन में भी पड़ी थी फूट
कहा तो यह भी जाता है कि 1971 में हरियाणा से मांगेराम मलिक, भूपेंद्र सिंह मान और रामफल कंडेला ने भाकियू का गठन किया था। इसके बाद यूपी से किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत इस संगठन से जुड़े। 1992 में दिल्ली के वोट क्लब पर हुए ऐतिहासिक आंदोलन में किसी बात को लेकर फूट पड़ गई और इसके बाद महेंद्र सिंह टिकैत अलग हो गए।
किसान आंदोलन में भी खूब हुई तनातनी
दिल्ली के बॉर्डरों पर तीन कृषि कानूनों को रद्द कराने के लिए 13 महीने तक चले किसान आंदोलन की कमान शुरुआत में पंजाब के किसान नेताओं पर थी। यह बाद में भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत के हाथों में आ गई। 26 जनवरी, 2021 को दिल्ली में ट्रैक्टर परेड के दौरान हिंसा के बाद किसान नेता वीएम सिंह ने भी खुद को इस आंदोलन और खासकर राकेश टिकैत से अलग कर लिया था। उन्होंने सीधे तौर पर आरोप लगाया था कि टिकैत किसानों के मुद्दों को तरजीह देने की बजाय मीडिया की सुर्खियों में बने हुए हैं। भाकियू भानु गुट के राष्ट्रीय अध्यक्ष भानुप्रताप सिंह भी किसान आंदोलन से अलग हो गए। गुरनाम सिंह चढूनी और राकेश टिकैत के बीच तनातनी कई बार सार्वजनिक मंचों पर जगजाहिर भी हुई।
बाबा टिकैत ने लिया था फैसला- आजीवन गैर-राजनीतिक रहेगी भाकियू
1 मार्च, 1987 को बाबा महेंद्र सिंह टिकैत ने भाकियू का गठन किया था। पहले ही दिन किसानों ने मुजफ्फरनगर के करमूखेड़ी बिजलीघर पर धरना शुरू कर दिया। बाद में यह धरना हिंसा में बदल गया। पीएसी के एक सिपाही और किसान की गोली लगने से मौत हो गई। गुस्साए किसानों ने पुलिस के वाहन फूंक दिए। ऐसे में बिना हल के ही धरना खत्म करना पड़ा। 17 मार्च, 1987 को भाकियू की पहली बैठक हुई। इसमें फैसला लिया गया कि भाकियू किसानों की लड़ाई लड़ेगी और आजीवन गैर-राजनीतिक रहेगी।
राकेश टिकैत से क्यों है नाराजगी?
जब तक महेंद्र सिंह टिकैत राष्ट्रीय अध्यक्ष थे, तब तक सब कुछ ठीक रहा। उनके निधन के बाद संगठन की कमान नरेश टिकैत के हाथ में आई। जबकि छोटे भाई राकेश टिकैत को राष्ट्रीय प्रवक्ता चुना गया। राकेश टिकैत का झुकाव शुरुआत से राजनीति की तरफ रहा। वह एक बार लोकसभा और दूसरी बार विधानसभा चुनाव लड़े। दोनों बार ही हार का मुंह देखना पड़ा।
अब किसान आंदोलन में कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग उठाई गई। इस मांग के सहारे राकेश टिकैत फिर से राजनीतिक होने लगे। कृषि कानूनों का मुद्दा भाजपा का विरोध करने तक पहुंच गया। गांव-गांव भाजपा नेताओं के विरोध होने लगे। अप्रत्यक्ष तौर पर विधानसभा चुनाव में भाकियू ने भाजपा को वोट न देने का संकेत दिया। इतना ही नहीं, राकेश टिकैत कई राजनीतिक दलों के साथ भी मंच साझा करने लगे। इसे लेकर संगठन में फूट पड़ गई। उसी का नतीजा रहा कि 15 मई, 2022 को लखनऊ में बड़े किसान नेता राकेश टिकैत से अलग हो गए।
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