"हम 11 दिन से नहीं सोए। हर रात सोने की कोशिश करते हैं लेकिन बेटे का आग में तड़पता वीडियो आंख के सामने से हट ही नहीं रहा। वो मंजर सोचकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। शरीर में कंपकंपी दौड़ जाती है। रोकने की लाख कोशिशों के बाद भी आंखों से आंसू निकल आते हैं। इसके बाद नींद ही नहीं आती।" ये शब्द नेपाल प्लेन हादसे में मारे गए सोनू जायसवाल के पिता राजेंद्र जायसवाल के हैं।
सोनू के साथ उनके दोस्त विशाल शर्मा, अनिल राजभर और अभिषेक कुशवाहा की भी मौत हो गई। दैनिक भास्कर की टीम इन सबके परिवार से मिलने गाजीपुर पहुंची। यात्रा की वजह जानी। लाशें लाने गए तो क्या परेशानियां हुईं, उसे जाना। साथ ही उनके मां-बाप के उन दुखों को टटोलने की कोशिश की जो अब जीवनभर साथ रहने वाले हैं। आइए सब कुछ शुरू से जानते हैं।
बेटे की जान बची इसलिए पशुपतिनाथ का दर्शन करना था
गाजीपुर से करीब 30 किलोमीटर दूर अलापुर चट्टी गांव है। सोनू का घर यहीं है। 8 महीने पहले उनकी पत्नी ने एक बेटे को जन्म दिया था। जन्म के बाद ही बेटे की तबीयत खराब हो गई। 31 दिन तक NICU में रखना पड़ा। इस दौरान परिवार ने बेटे के ठीक होने पर मंदिरों में दर्शन की मन्नत मांगी।
मन्नतों में वाराणसी का काशी विश्वनाथ धाम, आंध्र प्रदेश का बालाजी मंदिर और नेपाल का पशुपतिनाथ मंदिर शामिल था। तीन महीने पहले सोनू पूरे परिवार के साथ बालाजी मंदिर दर्शन करने गए थे।
पशुपतिनाथ के लिए 16 लोग तैयार थे लेकिन 4 ही गए
नेपाल जाने के लिए सोनू की तैयारियां पिछले एक महीने से चल रही थीं। 16 लोग जाने की तैयारी में थे लेकिन सब कोई न कोई कारण बताते हुए इनकार करते चले गए। एक बार को लगा कि नेपाल जाने का प्लान कैंसिल हो जाएगा लेकिन सोनू का पूरा मन था। इसलिए उन्होंने अपने दोस्त विशाल, अनिल और अभिषेक को राजी किया और अपने खर्चे पर ले चलने की बात कही।
12 जनवरी को दोपहर 2 बजे सभी अलावलपुर से एक कार के जरिए निकले। गाड़ी की आगे वाली सीट पर अनिल बैठा था। कार चलने पर उसने एक वीडियो बनाया जिसमें सभी हंसते हुए दिखाई दे रहे। उस वीडियो को अनिल ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर "आ कहीं दूर चले" गाने के साथ स्टोरी लगाई। सभी कार से सारनाथ पहुंचे और वहां सोनू के दूसरे घर पर गाड़ी खड़ी करने के बाद रक्सौल बॉर्डर ट्रेन पर बैठे। अगले दिन यानी 13 जनवरी को सभी काठमांडू में थे।
पोखरा घूमकर गोरखपुर के रास्ते गाजीपुर लौटने का प्लान था
पहुंचने में देरी हुई इसलिए सभी उस दिन मंदिर के ही पास गौशाला में रुके। अगले दिन यानी 14 की सुबह सभी पशुपतिनाथ मंदिर पहुंचे और दर्शन किया। 14 की ही शाम को उन्हें वापस आना था लेकिन सोनू ने तय किया कि अगले दिन लोकप्रिय पोखरा घूमने चलेंगे और वहां से गोरखपुर के रास्ते वापस गाजीपुर चलेंगे।
पोखरा के लिए सभी का प्लेन टिकट खुद के पैसे से लिया। 14 की शाम सभी थमेल के होटल "डिस्कवरी इन" में रुके। यहां अभिषेक ने एक वीडियो बनाया जिसमें विशाल और अनिल लेटे हुए दिखाई दे रहे थे। अभिषेक ने इस वीडियो को अपने दोस्तों के साथ शेयर किया था।
विमान हादसे के समय लाइव था सोनू
अगले दिन प्लेन से पोखरा जाने के लिए सभी 8 बजे ही काठमांडू एयरपोर्ट पहुंच गए। सोनू के अलावा सभी पहली बार प्लेन में बैठने वाले थे। इसे लेकर एक्साइटेड थे। सुबह करीब साढ़े दस बजे यति एयरलाइंस के ATR-72 विमान ने उड़ान भरी। विमान जब पोखरा में उतरने वाला था उस वक्त सोनू जायसवाल ने फेसबुक लाइव किया।
उसमें सभी खुश दिखाई दे रहे थे। वीडियो शुरू हुए 56 सेकंड हुए थे तभी विमान में आग लग गई और मोबाइल सोनू से छूट गया। अगले 41 सेकंड तक मोबाइल चलता रहा। जिस विमान को 10 सेकंड में पोखरा इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर होना था वह क्रैश हो चुका था। सभी 68 यात्री और 4 क्रू मेंबर्स मारे जा चुके थे।
रोज कुछ न कुछ क्लू मांगते, लेकिन लाश नहीं देते
विमान हादसे में मौत की खबर गाजीपुर पहुंची तो सब सन्न रह गए। चारों परिवारों में मातम पसर गया। सोनू की पत्नी रागिनी से बताया गया कि एक मामूली एक्सीडेंट हुआ है हम लोग जाकर उन्हें वापस ले आते हैं। घटना के बाद यहां से 7 लोग 16 जनवरी की सुबह रवाना हुए। इसमें दो लोग गाजीपुर जिला प्रशासन की तरफ से भेजे गए। सभी 16 की शाम बॉर्डर पर पहुंच गए। वहां रोक दिया गया। अगले दिन काठमांडू पहुंचे। उन्हें गोरखा रेजिमेंट में रुकवाया गया।
17 जनवरी की सुबह सभी को त्रिभुवन यूनिवर्सिटी टीचिंग हॉस्पिटल ले जाया गया। गाजीपुर से गए अकिल हुसैन ने बताया कि हम सभी से बच्चों से जुड़े क्लू मांगे गए। हम लोगों ने उन्हें चारों लड़कों से जुड़ी जानकारी दी। इसके बाद उन्होंने कहा, “आप लोग आज जाएं। पोस्टमॉर्टम के बाद लाश मिलेगी। यह क्रम 18-19 जनवरी को भी जारी रहा। हम लोग रोज जाते और वो प्रूफ मांगकर हमें वापस भेज देते।”
अकिल हुसैन बताते हैं, "हमें इंडियन एंबेसी से कोई मदद ही नहीं मिल रही थी। हम लोग हॉस्पिटल जाते और हॉस्पिटल के लोग कहते कि ये बताओ लड़कों में फ्रैक्चर कहां-कहां है? हमने घर से कई जांच रिपोर्ट मंगाई। लेकिन उसके बाद भी सुनवाई नहीं हो रही थी। स्थानीय लोगों ने हंगामा किया। मीडिया में खबरें छपी तब जाकर एंबेसी हरकत में आई। 21 जनवरी को हमें अंदर ले जाया गया।"
विशाल की पहचान उंगली में हुए फ्रैक्चर के चलते पहले हो चुकी थी। इसके बाद अनिल की पहचान उसके हाथ की अंगूठी से हुई। अभिषेक की उसके कपड़ों से और सोनू की पहचान जूते से हुई।
22 जनवरी को सभी की लाश गाजीपुर आई। गाजीपुर की डीएम आर्या अखौरी मौके पर पहुंचीं। सरकार की तरफ से 5-5 लाख रुपए की आर्थिक मदद मिली। 23 जनवरी को सुल्तानपुर के घाट पर सभी का अंतिम संस्कार कर दिया गया।
पत्नी तीन दिन तक कहती रही- पापा, एक बार सोनूजी को दिखा दीजिए
सोनू के पिता राजेंद्र हमें बताते हैं, "इस दौरान घर से रागिनी हमें रोज वीडियो कॉल करती और कहती थी, पापा एक बार हमें सोनूजी को दिखा दीजिए। तीन दिन हो गए उनका कोई फोन ही नहीं आया।" राजेंद्र ये बातें बताते हुए भावुक हो जाते हैं। कहते हैं, "हमें समझ ही नहीं आ रहा था कि बहु को कैसे समझाऊं। हम फोन रख देते थे।"
2 बच्चियों और 8 महीने के बेटे अथर्व की मां रागिनी अब विधवा हो चुकी हैं। 10 दिन से अपने हाथों से कुछ नहीं खाया। कोई खिलाता है तो रोटी का दो टुकड़ा खाने के बाद फिर से रोने लगती हैं। अब किसी से नहीं मिलती। कुछ नहीं बोलती। गुमसुम सी अपने कमरे में बैठी रहती हैं।
अनिल की मां कहती हैं, हमें बताता तो हम नहीं जाने देते
हम अनिल राजभर के घर पहुंचे। घर के बाहर मातम पसरा था। अनिल की बड़ी सी फोटो बाहर एक मेज पर रखी थी। स्थानीय विधायक ओम प्रकाश राजभर आने वाले थे इसलिए उनकी पार्टी के कार्यकर्ता वहां बैठे थे। हम उनके पिता रामदरस के पास पहुंचे। 10 दिन से रोते-रोते उनकी आंखें लाल हो गई हैं।
वह कहते हैं, "परिवार का सबकुछ वही था। जिस जगह हम पान की दुकान लगाते थे उसी के बगल वह सहज जनसेवा केंद्र चलाता था। उसी से पूरा घर चलता था। 12 जनवरी को हम सभी ने हंसते हुए बेटे को भेजा। लेकिन 23 तारीख को उसकी जली हुई लाश लेकर आए। हमारा तो पूरा परिवार बर्बाद हो गया।" इतना कहने के बाद वो भावुक हो जाते हैं।
अनिल की मां बीमार हो गई हैं। वह कहती हैं, "अनिल हमसे कुछ बताया ही नहीं कि कहां जा रहा है। अगर हमको पहले पता होता हो हम नहीं जाने देते। हमारा तो पूरा संसार उजड़ गया। कुछ समय पहले ही उसने दुकान खोलने के लिए पैसा मांगा था, हमारे पास पैसा ही नहीं था कि उसे दे सकें। अपने दोस्तों से उधार पैसा लेकर दुकान खोली थी।" मां दबे मन से कहती हैं, "अब हम किसी को हवाई जहाज पर नहीं बैठने देंगे।"
अनिल के साथ बचपन से ही रहे भांजे शिखर हमें अनिल का कमरा दिखाते हैं। उस कमरे में अनिल ने इतिहास-भूगोल की तमाम किताबें रखी हैं। दर्जन भर खुद के जीते शील्ड और मेडल उस कमरे में टंगे थे। शिखर बताते हैं, अनिल मामा इस गांव के सबसे ज्यादा पढ़े लिखे थे। कुछ भी हो सब उनसे पूछने आते थे। अब वो नहीं रहे तो लगता है जैसे सब कुछ खत्म हो गया है।
विशाल कहता था बहन की शादी करेंगे फिर घर बनवाएंगे
हम विशाल शर्मा के घर पहुंचे। घर के बाहर विशाल के पिता संतोष शर्मा और विशाल के 5 दोस्त बैठे मिले। संतोष बताते हैं, "बच्चे को लेकर बहुत सपना सोचे थे। हम कभी अरब देश तो कभी तमिलनाडु में रहे। सबकुछ वही देखता था। कहता था- पहले अपनी बहन पायल की शादी करूंगा। फिर घर बनवाऊंगा और उसके बाद अपनी शादी करूंगा। लेकिन देखिए आज वो खुद चला गया।"
2 दिन तक मां-बाप को अभिषेक की मौत की जानकारी ही नहीं
इस हादसे में मारे गए चौथे व्यक्ति अभिषेक कुशवाहा थे। अभिषेक भी अनिल की तरह जनसेवा केंद्र चलाते थे। परिवार के सबसे पढ़े-लिखे थे। पिछले महीने अभिषेक सोनू के साथ बिहार के गुप्ता धाम भी गए थे। उनके भाई अभिनेष कुशवाहा कहते हैं, 12 जनवरी की सुबह अभिषेक ने मुझे एक गूगल पे नंबर दिया और कहा, 5 हजार रुपए भेज दीजिए भैया।
हमने मजाक में 5 रुपए भेज दिया। तुरंत ही अभिषेक ने फोन किया तो हमने 5 हजार रुपए भेज दीजिए। हमें नहीं पता था कि अब अभिषेक वापस नहीं आएगा।
अभिषेक के मां-बाप को दो दिन तक घटना की कोई जानकारी नहीं दी गई। क्योंकि डर था कि उन्हें सदमा लग सकता है। बाद में जब खबर लगी तब से बेटे को एकबार देख लेने की चाहत में उनका रो-रोकर बुरा हाल हो गया।
फिलहाल यहां पर यह कहानी खत्म होती है। अब बात प्लेन क्रैश की वजह की करते हैं।
मैकेनिकल खराबी की वजह से क्रैश हुआ प्लेन
विमान क्रैश के बाद सिविल एविएशन अथॉरिटी ऑफ नेपाल की तरफ बयान जारी किया गया। उसमें कहा गया कि उड़ान से पहले सभी टेक्निकल जांच और प्रोसेस को पूरा किया गया था। उसमें कोई भी टेक्निकल खराबी नहीं दिखी। पोखरा का रनवे पूर्व-पश्चिम दिशा की ओर बना हुआ है।
पायलट ने पहले पूर्व की तरफ से लैंडिंग की परमिशन मांगी थी। परमिशन मिल गई। थोड़ी देर बाद पायलट ने पश्चिम की तरफ से लैंडिंग की परमिशन मांगी। उन्हें दोबारा परमिशन दे दी गई। लेकिन लैंडिंग के ठीक 10 मिनट पहले हादसा हो गया।
नेपाल के विमान पर 28 देशों ने प्रतिबंध लगा रखा है
नेपाल के सिविल एविएशन अथॉरिटी की 2019 की सेफ्टी रिपोर्ट के मुताबिक देश की खतरनाक भौगोलिक स्थिति ही पायलटों के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। यहां मौसम बहुत तेजी से बदलता है जो हादसों की मुख्य वजह बन जाता है।
इसके अतिरिक्त नेपाल के पास बेहतर रडार और काबिल स्टाफ की कमी है। यही वजह है कि यूरोपीय कमीशन ने नेपाली एयरलाइंस पर 28 देशों के ब्लॉक में उड़ान भरने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा रखा है।
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