कानपुर के प्रापर्टी डीलर मनीष गुप्ता की गोरखपुर में पुलिस की पिटाई से मौत के मामले में आरोपित पुलिस वालों की गिरफ्तारी भी सवालों के घेरे में खड़ी हो गई। गिरफ्तारी के करीब 24 घंटे पहले ही यह खबर आ चुकी थी कि आरोपितों को हाजिर कराया जा चुका है। सिर्फ इसकी पुष्टि नहीं हुई थी। हालांकि दो दिन पहले SIT ने दरोगा अक्षय मिश्रा के दोनों बेटों को पूछताछ के लिए उठाया था।
वहीं, इस बीच रविवार की सुबह से गिरफ्तारी की पुष्टि के इंतजार करते हुए खबर आई कि दो पुलिस वालों को गिरफ्तार कर लिया गया है। गिरफ्तारी भी अब तक इस मामले से पल्ला झाड़ रही गोरखपुर पुलिस ने की। उसी रामगढ़ताल थाने के पास से की, जहां जेएन सिंह और अक्षय मिश्रा तैनात थे। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या इंस्पेक्टर और दरोगा इतने नासमझ हैं कि दुनिया भर में उनकी फोटो और वीडियो वायरल होने के बाद वह अपने ही इलाके में घुमेंगे?
SIT और STF को पछाड़ पहले गिरफ्तारी की है वजह
दरअसल, गोरखपुर पुलिस के सूत्रों का दावा है कि इस गिरफ्तारी के लिए भी बकायदा एक स्क्रिप्ट तैयार की गई थी। इसके पीछे भी कई वजह है। पहला तो यह कि कानपुर पुलिस, SIT और STF को पछाड़ गिरफ्तारी कर गोरखपुर पुलिस इस घटना के बाद खुद पर लगे दाग धुलना चाहती है। जबकि दूसरा यह कि इसके पीछे भी एक बड़ा मकसद साफ नजर आ रहा है। सूत्रों का दावा है कि यह जांच दबाव में CBI को न चला जाए, इसलिए पुलिस में गिरफ्तारी को लेकर होड़ मची थी।
क्योंकि यह सभी को पता है कि CBI जांच शुरू होते ही इस मामले में किसी के बचने की कोई गुजाइंश नहीं रहेगी। शायद यही वजह है कि गोरखपुर के बांसगांव इलाके में 13 दिनों से पनाह लिए आरोपित पुलिस वालों को गिरफ्तारी की स्क्रिप्ट पर हाजिर कराने के लिए उनके ही अपनों को उनका काल बनाया गया। जिन्होंने दोनों को जेल की सलाखों के पीछे भेजने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
फेल हो गए जुगाड़ तो अपने ही आए काम
सूत्रों का दावा है कि 28 सितंबर की रात थाने की जीडी में एंट्री कर आरोपित पुलिस वाले फरार हो गए थे। लेकिन उन्होंने अपने छिपने का सबसे महफूज ठिकाना गोरखपुर को ही समझा। क्योंकि उन्हें पता था कि उनकी देश के हर कोने में तलाश की जाएगी, लेकिन गोरखपुर के लिए कोई विशेष ध्यान नहीं दिया जाएगा। इस बीच रामगढ़ताल थाने के ही दो कारखास कर्मी फरारी के बाद से भी लगातार आरोपितों के संपर्क में बने रहे थे। जब 14 टीमों की ओर से गिरफ्तारी के लिए बिछाए गए सभी जाल खाली ही दिखे तो फिर गोरखपुर पुलिस ने एक नया फार्मूला अख्तियार किया।
कारखासों की भी है गिरफ्तारी अहम भूमिका
आरोपित इंस्पेक्टर- दरोगा के कारखासों की सूची तैयार की। इसके बाद कारखासों के फोन काल और सीडीआर के अध्यन से यह साफ हो गया कि वह आरोपितों के संपर्क में हैं। विभाग का नुमाइंदा होने की वजह से कारखासों पर विभागीय दबाव बढ़ा। उन्हें किसी भी हाल में दोनों आरोपितों को हाजिर कराने का दबाव तो दिया ही गया साथ ही कई तरीकों से समझाने में भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी गई।
सूत्र बताते हैं कि कारखासों के जरिए यह सूचना के साथ आश्वासन भी भेजी गई कि अगर वह पुलिस के समक्ष हाजिर होते हैं तो उन्हें कोई रिस्क नहीं होगा। जबकि लगातार बढ़ रहे इनाम और दबाव के साथ अगर वह कोर्ट में सरेंडर करते हैं या फिर किसी अन्य पुलिस टीम के हाथ लग गए तो कुछ भी होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। खुद पर भी गिरती गाज का खतरा देखते हुए कारखास भी मिशन हाजिर में लग गए और सफलता भी मिली।
रामगढ़ताल से बेहतर नहीं हो सकता कोई और थाना
लिहाजा आरोपितों को भी संभवत: यह बातें समझ में आ गई और उन्होंने अपनी गिरफ्तारी देने के लिए अपने ही थाना रामगढ़ताल से बेहतर और कहीं नहीं समझा। क्योंकि इस थाने पर उन्हें पूरा विश्वास था कि यहां मीडिया कैमरों से बचने से लेकर अन्य सभी सूचनाएं गोपनीय रखी जा सकती हैं, लेकिन अन्य थानों पर शायद यह सब संभव नहीं हो सकता। इसके बाद रविवार की शाम बांसगांव पुलिस ने मुखबिरे खास की सूचना पर थाने के पास से ही दोनों को गिरफ्तार कर लिया। हालांकि फरार अन्य चार आरोपित पुलिस वाले कारखासों और पकड़े गए आरोपितों के संपर्क में नहीं थे। जबकि उम्मीद है कि वह सभी खुद सरेंडर कर सकते हैं।
एक- एक लाख का इनामियां पकड़ भी चुप्पी साधे रहे अधिकारी
हैरानी तो यह हो गई कि गिरफ्तारी के बाद भी गोरखपुर पुलिस इस मामले से अपना पल्ला झाड़ती रही। कुछ भी बोलने की बजाय अधिकारी सिर्फ एक जवाब देते रहे कि हमने गिरफ्तार कर SIT को सुपुर्द कर दिया है। जबकि छिटपुट बदमाशों को पकड़कर एसएसपी के कैंप कार्यालय से रोजाना बड़ी- बड़ी प्रेस रिलीज जारी करने वाली गोरखपुर पुलिस एक लाख के दो इनामिया को पकड़ने के बाद भी चुप्पी साधी रही।
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