हाथरस के सहपऊ कस्बे में प्राचीन मां भद्रकाली का मंदिर चमत्कारों का साक्षी है। मंदिर का इतिहास महाभारत से भी मिलता है। श्रीमद्भागवत में भी मां भद्रकाली का दो बार उल्लेख है। सहपऊ कस्बे से लगभग 18 किमी दूर जलेसर सिटी को महाभारत कालीन जरासंध की राजधानी कहा जाता है। यहां मां भद्रकाली मंदिर आज भी लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र है।
मान्यता है कि मथुरा और जलेसर के मध्य भगवान श्रीकृष्ण ने इस मंदिर का निर्माण कराया और योगमाया को प्रकट कर उनकी पूजा-अर्चना की थी। मुगल काल में यह मंदिर भी औरंगजेब के कोप भाजन बना। इस मंदिर के मूर्तियों को तोड़ कर अपने साथ ले जाते हुए रास्ते में फेंकता गया। जो बाद में स्थान-स्थान पर खुदाई करते समय पाषाण खंडों के रूप में निकले। जिस गांव में मां के मंदिर के पत्थर निकले वहां के ग्रामीणों ने उस पत्थर को एक स्थान पर रखकर मंदिर का निर्माण करवा दिया।
बारात के अवशेष मंदिर में मौजूद
नवरात्रि में इस मंदिर में मेला लगता है और भंडारा करने वालों की भीड़ लगी रहती है। यह भी किवदंती है कि एक पंडित की लड़की मंदिर में पूजा करने आई थी। उस पर बारात में शामिल कुछ लोगों ने व्यंग कर दिया था। जिसके बाद उसके श्राप से पूरी बारात पत्थरों में तब्दील हो गई थी। उस बारात के अवशेष आज भी मंदिर में गवाही के रूप में मौजूद हैं।
पीपल के पेड़ के नीचे था मां का स्थान
मां भद्रकाली का यह मंदिर करीब 500 साल पुराना बताया जाता है। बताते हैं कि मां का स्थान पहले एक पीपल के पेड़ के नीचे था। भक्तों पर मां की कृपा होती रही तो मां को उन्होंने विशाल भवन में विराजमान कर दिया। कुछ लोग बताते हैं कि महाभारतकालीन सहपऊ कस्बे का नाम पांचों पांडवों में सहदेव के नाम पर पड़ा।
देश के कोने-कोने से आते हैं भक्त
मान्यता है कि मां भद्रकाली के दरबार में जो भी भक्त सच्चे मन से मुराद लेकर आता है। मां उसकी मुराद अवश्य पूरी करती है। देवी के दरबार में देश के कोने-कोने से भक्त आते रहते हैं। बुजुर्गों का कहना है कि पुराने समय में असम के राजा दोनों नवरात्रि में आते थे। असम के राजा से कस्बे के सिसौदिया जमीदार परिवार की लड़की ब्याही थी। उसी परिवार के कुछ सदस्य आज भी असम में जाकर रह रहे हैं।
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