जौनपुर के पूर्वांचल विश्वविद्यालय और विवादों का चोली दामन का साथ है। फंड में पैसे जुटाने के लिए प्रोफेसर इतने हथकंडों का इस्तेमाल करते हैं कि विभाग में पढ़ने वाले बच्चों के लिए यह मजबूरी बन जाती है। वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय का एमबीए डिपार्टमेंट अपनी ऐसी कारस्तानी की वजह से चर्चा में है। यहां पर PMA (पूर्वांचल मैनेजमेंट एसोसिएशन) में पैसे ना देने पर बच्चों का उत्पीड़न किया जा रहा है।
फंड में पैसे ना देने पर स्कॉलरशिप फॉर्म भी नहीं सबमिट होता है। इतना ही नहीं जो बच्चे पैसे नहीं देते हैं, उन्हें ऑनलाइन क्लास में भी एंट्री नहीं मिलती है। मामला यहीं नहीं रुकता। फंड में जो पैसे इकठ्ठा होता है।उन्हें प्रोफेसर अपने निजी काम के लिए उपयोग करते हैं। यह पैसे विश्वविद्यालय के एकाउंट में भी नहीं जमा होते हैं। विभाग के एचओडी द्वारा इसकी जिम्मेदारी भी क्लास रिप्रेजेंटेटिव को दी जाती है। इस वित्तीय अनियमितता की पोल तब खुली जब पूर्वांचल विश्वविद्यालय के वाट्सएप ग्रुप का मैसेज सामने आया। दैनिक भास्कर की टीम ने जब इसकी पड़ताल की तो कई चौंकाने वाली चीजें भी सामने आईं।
पैसे नहीं दिए इसलिए ऑनलाइन क्लास नहीं कर सकते अटेंड
यूनिवर्सिटी में फीस देने के बाद भी ऑनलाइन क्लास में पढ़ने से वंचित कर दिया जाता है। बाकायदा वाट्सएप ग्रुप में सूचना भी आती है कि PMA एकाउंट में पैसा ना देने के कारण आपको ऑनलाइन क्लास नहीं अटेंड करने दी जाएगी। ऐसी ही एक नोटिस 22 अक्टूबर 2020 को MBA (2020-2022) के वाट्सएप ग्रुप में भेजी गई थी। नोटिस में लिखा गया था कि 8 छात्रों ने PMA फंड के लिए पैसा नहीं दिया है। इन छात्रों को ऑनलाइन क्लास तब तक अटेंड नहीं करने दी जाएगी। जब तक ये छात्र 500 रुपए फंड में नहीं देते हैं।
PMA फंड में पैसा नहीं देने पर स्कॉलरशिप फॉर्म भी जमा नहीं होगा
वित्तीय रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों के लिए स्कॉलरशिप की भी व्यवस्था है। स्कॉलरशिप को लेकर भी पूर्वांचल विश्वविद्यालय में एमबीए में पढ़ने वाले बच्चों का उत्पीड़न किया जाता है। ऐसा ही एक और स्क्रीनशॉट भास्कर के हाथ लगा। MBA(2020-2022) के वाट्सएप ग्रुप के एक मैसेज में यह लिखा था कि अगर PMA फंड में अगर पैसे नहीं जमा किये गए तो स्कॉलरशिप फॉर्म भी सबमिट नहीं होगा। इसके साथ ही ग्रुप में जिस नम्बर पर पेमेंट करना था. वो नम्बर भी साझा किया गया था।
PMA फंड के पैसे से प्रोफेसर खरीदते हैं निजी उपयोग का सामान
यह पूरा मसला विभाग के प्रोफेसर डॉ मुराद अली से जुड़ा हुआ है। मुराद अली PMA फंड को इकठ्ठा करवाते हैं। लेकिन इसके लिए वह यूनिवर्सिटी के एकाउंट का उपयोग नहीं करते हैं। दैनिक भास्कर ने इस संबंध में जब प्रोफेसर मुराद अली से बात की तो उन्होंने बताया कि PMA फंड का पैसा बच्चों के लिए होता है। इस पैसे से सेमिनार, ग्रुप डिस्कशन और अन्य गतिविधियों संचालित की जाती हैं।
पैसे ना देने की बात पर स्कॉलरशिप फॉर्म ने सबमिट करना और ऑनलाइन क्लास से वंचित करने के आरोपों को प्रोफसर मुराद अली से सिरे से नकार दिया। लेकिन ग्रुप में आये ये मैसेज साफ तौर पर इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि यह पैसा विश्वविद्यालय के खाते में ना जाकर प्रोफेसर के एकाउंट की ही शोभा बढ़ाते हैं।
लेकिन दैनिक भास्कर के हाथ वह तमाम दस्तावेज लगे हैं जो बताते हैं कि इन पैसों से आखिर होता क्या है। PMA फंड के पैसे से प्रोफेसर के केबिन का गेट, प्रिंटर, माउस और पेंट की खरीददारी होती है। इतना ही नहीं बल्कि कई आयोजनों में इन पैसे से चाय और नाश्ते की भी व्यवस्था की जाती है।
मुंह खोलने से डरते हैं बच्चे
नाम ना छापने की शर्त पर बच्चे बताते हैं कि अगर वो पैसे देने से मना भी करे तो उनको वाईवा में कम नंबर पाने का डर रहता है। बच्चे कहते हैं कि मुराद अली 4 विषयों का मूल्यांकन भी करते हैं। ऐसे में अगर कुछ बोला गया तो इसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ सकता है। डिपार्टमेंट ऑफ बिजनेस मैनेजमेंट के 2019-2021 के सत्र में 110 बच्चों ने PMA फंड में लगभग 52 हज़ार रुपये जमा कराए थे। इसके अलावा इस सत्र में भी लगभग 24 हजार रुपये इकठ्ठा हुए हैं।
क्या कहते हैं जिम्मेदार?
इस संबंध में पूछे जाने पर विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार महेंद्र कुमार ने बताया कि उन्हें इस मामले की कोई जानकारी नहीं है। जब दैनिक भास्कर की टीम ने उनसे इस वित्तीय अनियमितता के बारे में पूछा तो उन्होंने इस मामले में जांच करने की बात कही है। फिलहाल छात्रों का एक दल इस बारे में विश्वविद्यालय के कुलपति से मुलाकात कर मामले की जानकारी देगा।
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