IIT ने इज़ाद की अनोखी इंक:नही हो पायेगी डुप्लीकेसी, शराब की बोतलों पर होगा इसी इंक से टैग

कानपुर2 वर्ष पहले
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फाइल फोटो - Dainik Bhaskar
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आईआईटी के साइंटिस्ट ने ऐसी इंक तैयार की है जिसको किसी भी प्रोडक्ट या पेपर पर टैग करने के बाद वह एक अलग प्राकृतिक आकार ले लेती है, जिसे हम हाई सिक्योरिटी कोड भी कह सकते है। जिसे बदला या उसकी कॉपी नहीं की जाती। यह इंक प्रोडक्ट की डुप्लीकेसी को रोकने में काफी कारगर साबित होगी। आईआईटी कानपुर के डिपार्टमेंट ऑफ मटेरियल साइंस ने दिल्ली के आबकारी विभाग के साथ एक समझौता किया है जिसके अंतर्गत दिल्ली में बिकने वाली शराब की बोतलों पर आईआईटी के वैज्ञानिकों द्वारा बनाई गई इस खास इंक से टैग किया जाएगा। दिल्ली के अलावा चार अन्य राज्यों के आबकारी विभाग के साथ भी टैगिंग को लेकर आईआईटी की बात चल रही है चल रही है।

चेको टेक्नोलॉजी से बनी है यह इंक...
आईआईटी के मैटेरियल साइंस विभाग के प्रो दीपक गुप्ता ने यह इंक बनाई है। प्रो दीपक ने बताया, चेको टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से इस इंक को तैयार किया। इसकी रिसर्च में तक़रीबन चार साल लग गए। जैसे फिंगरप्रिंट का डुप्लीकेट तैयार नहीं किया जा सकता वैसे ही इसका डुप्लीकेट भी नहीं तैयार किया जा सकता है। इस टेक्नोलॉजी(हाई सिक्योरिटी टैगिंग) में किसी भी प्रोडक्ट को इस इंक से टैग करते है तो वह इंक हर बार अलग अलग तरह के क्रैक बनाती है जिससे हर प्रोडक्ट की एक अलग पहचान तैयार हो जाती है। इसकी न तो कॉपी हो सकती है न ही इसका प्रिंट किया जा सकता है। चेको टेक्नोलॉजी को रीड करने के लिए अलग स्कैनर और रीडर आता है जो मार्केट में उपलब्ध है। इसी के जरिए आप प्रोडक्ट ओरिजिनल है या नहीं इसका पता लगा सकते है।

अब राजस्व की चोरी और डुप्लीकेट इसी से रुकेगी...
दिल्ली में शराब की बोतलों पर सितंबर से आईआईटी के प्रोफेसर दीपक गुप्ता द्वारा बनाये गए चेको टैग ही लगेंगे। दिल्ली आबकारी विभाग ने आईआईटी से इस संबंध में एक समझौता पर साइन किया है। इससे पहले ज्यादातर प्रोडक्ट्स में क्यूआर या बार कोड लगाया जाता था लेकिन अब डुप्लीकेट और राजस्व की चोरी रोकने के लिए शराब की हर बोतल पर चेको टैग लगेगा।

शराब में होती है सबसे ज्यादा डुप्लीकेट...
प्रो दीपक ने बताया, डुप्लीकेट शराब पीने से आये दिन कई मौतों की सूचना मिलती है लेकिन फिर वो चाहे दिल्ली से हो या उत्तर प्रदेश से, हर जगह डुप्लीकेट प्रोडक्ट आराम से उपलब्ध है क्योंकि उनपर लगे क्यूआर या बार कोड की फोटोकॉपी करके इसे दूसरे डुप्लीकेट प्रोडक्ट पर आसानी से लगाया जा सकता है। ग्राहक इसे असली प्रोडक्ट समझकर इस्तेमाल करता है जिससे सरकार को राजस्व की हानि होती है। लेकिन अब सितम्बर से काफी कुछ बदल जायेगा। दिल्ली की रिटेल शॉप्स में दिल्ली सरकार ने इसके लिए रीडर और स्कैनर लगाने का काम शुरू कर दिया है।

कई राज्य सरकारों से चल रही है...
प्रोडक्ट्स पर इस तरह से टैग करने से बाजारों में बिकने वाले डुप्लीकेट सामान की पहचान आसानी से की जा सकेगी। इस चेको टैग के लिए कई राज्यों की सरकारों से बात चल रही है खास तौर पर एक्साइज डिपार्टमेंट के साथ क्योंकि ज्यादातर राज्यों में डुप्लीकेट शराब की खपत ज्यादा है। प्रो दीपक गुप्ता ने बताया, इस समय हमने इंडियन ऑयल कारपोरेशन का अस्सींगमेंट मिला है, साथ ही हम लोगों की डील कई बीज बेचने वाली बड़ी कंपनियों के साथ हो गई है।

केंद्र सरकार के साथ चल रहा है काम...
केंद्र सरकार के साथ मिलकर इस टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से जितने भी सरकारी कामकाज में आने वाले डाक्यूमेंट्स पर भी इस तरह की टैगिंग की जाएगी। प्रो. दीपक ने बताया, शुरुआत में हम लोगों ने ए4 शीट तैयार की है जिस पर हम लोगों ने टैगिंग कर दी है। अब इस पर प्रिंट होने वाला कोई भी डॉक्यूमेंट हो सकता है जैसे स्टांप, सरकारी दफ्तरों में जारी किये जाने वाले कागज़ आदि। ऐसा करने से नकली स्टांप पेपर बनाकर बेचने वालों की दुकानें बंद हो सकती है।

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