भाजपा के नए प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी सोमवार दोपहर शताब्दी एक्सप्रेस से लखनऊ पहुंचे। इस सफर के लिए ट्रेन में एक स्पेशल बोगी लगाई गई। ट्रेन के 3 डिब्बों में सिर्फ भाजपा नेता और कार्यकर्ता ही थे। बड़ा फैक्ट ये है कि इसमें सबसे ज्यादा पश्चिमी यूपी के नेता थे।
दोनों डिप्टी सीएम और स्वतंत्र देव वेलकम के लिए चारबाग पहुंचे
खबर है कि भूपेंद्र चौधरी के साथ पश्चिमी यूपी के करीब 21 सांसद और 25 से ज्यादा विधायक ट्रेन में लखनऊ तक आए। भूपेंद्र चौधरी के साथ चारबाग रेलवे स्टेशन भी पहुंचे। इनके स्वागत के लिए डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, ब्रजेश पाठक के साथ स्वतंत्र देव सिंह भी मौजूद रहे। जुलूस के साथ पार्टी के प्रदेश मुख्यालय पहुंचे।
लखनऊ में लगा पश्चिम का जमावड़ा
पश्चिम यूपी के 24 जिलों में करीब 22 लोकसभा और 126 विधानसभा सीटें आती हैं। खबर है कि भूपेंद्र चौधरी के साथ केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान, महेश शर्मा, भोला सिंह, आर. के. पटेल, देवेंद्र सिंह भोले, नरेंद्र कश्यप, दयाशंकर मिश्र दयालु, सतीश गौतम जैसे नेता मौजूद रहे। दावा किया जा रहा है कि 22 में से 21 सांसद उनके साथ आए थे। ये संदेश देने की कोशिश हुई है कि पश्चिमी यूपी और ब्रज में भाजपा कितनी मजबूत है।
यूपी में रालोद-सपा गठबंधन को बेअसर करने की रणनीति
जाटों के प्रभाव वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रालोद के सहारे सपा 2024 के चुनाव में भाजपा को चुनौती देने की रणनीति पर काम कर रही है। बसपा इस बार अकेले दलित-मुस्लिम समीकरण बना रही है। चुनौती है कि अपनी सीटों पर बरकरार रह सके।
जाट वोट बैंक की पॉलिटिक्स
ऐसे में भाजपा ने भूपेंद्र चौधरी के रूप में जाट बिरादरी का दांव खेला है। ताकि पश्चिम यूपी के किले को दुरुस्त किया जा सके। माना जा रहा है कि भूपेंद्र चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने से भाजपा को जाट वोट बैंक में बढ़त मिलेगी। पश्चिमी यूपी में रालोद-सपा गठबंधन के असर को कम करने की रणनीति है।
सपा-आरएलडी के गठबंधन के साथ पिछले चुनाव में बसपा ने 10 लोकसभा सीटें जीत ली थी। इसमें दलित-मुस्लिम समुदाय के वोटों के दम पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश की चार सीटें बिजनौर, अमरोहा, सहारनपुर और नगीना भी थी। सपा ने मुरादाबाद, संभल और रामपुर सीटें जीती थी, जिनमें से रामपुर सीट उपचुनाव में भाजपा ने जीत ली है।
वेस्ट की मदद से पूरा होगा 75 प्लस टारगेट
भाजपा लोकसभा चुनाव 2024 में 75 प्लस सीट का टारगेट रखा है। इसको हासिल करने के लिए वेस्ट में अपना सियासी आधार मजबूत करना जरूरी है। जाट समाज को अपने साथ रखने के लिये समाजवादी पार्टी ने रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी को राज्यसभा भेजा है। पश्चिम यूपी की 71 विधानसभा सीटों पर जाट समाज प्रभावी है। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने इनमें से 51 सीटें जीती थी। 20 सीटें विपक्ष को मिली थीं। मगर 2022 के विधानसभा चुनाव में विपक्ष ने इनमें से 31 सीटें जीत ली थी।
मुरादाबाद मंडल में सपा-रालोद गठबंधन ने 17 सीटें जीतीं। सहारनपुर मंडल में 9 और मेरठ मंडल में गठबंधन ने पांच सीटें जीतीं थी। इनमें से रालोद को 8 सीटें मिली थी। अब इस गठबंधन को टक्कर देने के लिए भाजपा ने भूपेंद्र चौधरी को मैदान में उतारा है तो फिर उनके साथ पूरा वेस्ट यूपी खड़ा है,यह मैसेज देने के लिए ही पश्चिमी यूपी के सभी नेता अध्यक्ष के साथ खड़े दिखाई दिए।
पूर्वांचल से आते है PM और सीएम
भाजपा में प्रभावशाली नेताओं-मंत्रियों और गठबंधन में उसके सहयोगियों से पूर्वांचल का किला मजबूत है। पीएम मोदी और सीएम योगी दोनों ही पूर्वांचल से प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। इसी बेल्ट के प्रयागराज से उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य हैं तो राजनाथ सिंह और महेंद्रनाथ पांडेय भी आते है। भाजपा के सहयोगी अपना दल -एस और निषाद पार्टी का आधार भी इसी इलाके में है। साफ है कि भाजपा ने पूर्वांचल के किले को मजबूत कर रखा है।
वहीं, अवध क्षेत्र और बुंदलेखंड की जमीन बीजेपी के लिए पहले से ही सियासी उर्वरक बनी हुई है। अवध का प्रतिनिधित्व योगी कैबिनेट में उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक करते हैं। ऐसे में भाजपा के लिए सबसे ज्यादा चुनौती सिर्फ पश्चिमी यूपी में थी। क्योंकि 2019 के लोकसभा और 2022 के चुनाव में पार्टी को इसी इलाके में सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा था।
पश्चिमी यूपी पर भाजपा ने बढ़ाया अपना फोकस
भूपेंद्र चौधरी की जाट समाज में पकड़ होने के साथ उन्हें पश्चिमी यूपी में लंबे समय तक क्षेत्रीय अध्यक्ष के तौर पर संगठन का काम संभाल चुके हैं, जिससे वो राजनीति और सामाजिक समीकरण पर गहरी पकड़ है। इसके अलावा गुर्जर, त्यागी, ब्राह्मण और सैनी समाज भाजपा का कोर वोटबैंक बना हुआ है। हाल ही में भाजपा ने बिजनौर से आने वाले धर्मपाल सिंह को सुनील बंसल की जगह प्रदेश महामंत्री संगठन का जिम्मा सौंपा है, जो सैनी समुदाय से आते हैं। इस तरह भाजपा ने पश्चिमी यूपी में जाट और सैनी दोनों ही समुदाय को साधकर रखने की कवायद की है।
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