लखनऊ में गुरुवार को सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से मिलने राष्ट्रीय लोक दल प्रमुख जयंत चौधरी जनेश्वर ट्रस्ट पहुंचे हैं। अखिलेश यादव ने जयंत के लिए कार भी भेजी। दोनों नेताओं की बैठक लगातार जारी है। इस दौरान पश्चिमी यूपी की 143 सीटों पर लगातार मंथन हो रहा है।
माना जा रहा है कि मुलाकात में सीटों के बंटवारे पर फाइनल बातचीत होगी। सूत्रों का कहना है कि बैठक में यह तय होगा कि जाट लैंड में आरएलडी और सपा कौन-कौन सी सीटों पर चुनाव लड़ेगी। बैठक के बाद ही तय होगा कि गठबंधन में पार्टी को कितनी सीट सपा दे रही है।
दोनों को एक-दूसरे की जरूरत
अखिलेश और जयंत दोनों ही समझ रहे हैं कि इस समय दोनों को एक-दूसरे की जरूरत है। उम्मीद है कि जयंत को सम्मानजनक सीटें दी जाएंगी। जो सीटें वह लड़ना नहीं चाहते, उसमें सपा अपनी तरफ से उनके चुनाव चिन्ह पर उम्मीदवार दे देगी। हालांकि 2-3 सीटों को लेकर मामला अभी उलझा हुआ है। इसमें मुजफ्फरनगर की हरेंद्र मलिक और पंकज मलिक जिन्हें एसपी ने शामिल कराया है, उनको लेकर ही सबसे ज्यादा पेंच है।
इन सीटों पर है जयंत चौधरी की निगाह
दरअसल, वेस्ट यूपी के मेरठ, सहारनपुर, मुरादाबाद, बरेली, आगरा, अलीगढ़ के छह मंडल में 26 जिले हैं। यहां 136 विधानसभा सीटे हैं। इन सीटों पर जाटों का खासा प्रभाव है। वही निर्णायक भूमिका निभाते आए हैं। जयंत चौधरी की निगाह इन्हीं सीटों पर है। वह चाहते हैं कि इनमें से ज्यादातर सीटों पर आरएलडी के उम्मीदवार ही चुनाव लड़ें।
एक महीने बाद हो रही मुलाकात
करीब एक महीने पहले जयंत चौधरी और अखिलेश यादव के बीच विधानसभा को लेकर मुलाकात हुई थी। इसमें जयंत चौधरी ने 45 सीटों की मांग रखी थी। अखिलेश इस पर तैयार नहीं हुए थे। लिहाजा बात 40 सीटों तक पहुंच गई। इस पर सहमति बन गई है। 36 सीटों पर जयंत चौधरी अपने सिंबल हैंडपंप पर उम्मीदवार उतारेंगे। 4 सीटों पर जयंत के उम्मीदवार सपा के सिंबल साइकिल पर चुनाव मैदान में होंगे।
पिछले 10 साल से काफी खराब प्रदर्शन रहा है आरएलडी का
पश्चिमी यूपी आरएलडी का गढ़ है, लेकिन पिछले 10 साल में हुए चुनावों के नतीजे पार्टी के लिए बेहद निराशाजनक रहे हैं। यही वजह है कि जयंत के लिए अखिलेश से 40 सीटें लेना आसान नहीं होगा। पार्टी ने 2017 के विधानसभा चुनाव में 277 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन 266 जमानत जब्त हो गई थी। एकमात्र उम्मीदवार सहेंदर सिंह रमाला को छपरौली विधानसभा सीट से जीत मिली थी।
2019 के लोकसभा चुनाव में महागठबंधन के साथ चुनाव लड़ने के बावजूद आरएलडी का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा। पार्टी के सभी उम्मीदवार हार गए। खुद चौधरी अजित सिंह और उनके बेटे जयंत चौधरी मुजफ्फरनगर और बागपत लोकसभा सीट से चुनाव हार गए थे।
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