‘पूरब का ऑक्सफोर्ड’ कहे जाने वाले इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय का माहौल गर्म है। 400% फीस बढ़ोतरी के बाद स्टूडेंट्स लगातार विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। हालांकि, छात्रों के विरोध को दरकिनार कर विश्वविद्यालय की वाइस चांसलर संगीता श्रीवास्तव ने दावा किया है कि साल 1922 के बाद अब इस साल यूनिवर्सिटी की फीस बढ़ाई है। ये फीस देश के दूसरे केंद्रीय विश्वविद्यालयों की तुलना में काफी कम है।
यूनिवर्सिटी की कोर्स फीस पर वीसी का दावा भले ही सही हो, लेकिन यहां रहकर पढ़ना पूरे देश के केंद्रीय विश्वविद्यालयों में सबसे महंगा है। हमने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की नई फीस की तुलना देशभर के बड़े केंद्रीय विश्वविद्यालयों के फीस स्ट्रक्चर से की है। इसके बाद हॉस्टल की महंगी फीस से जुड़े आंकड़े ग्राफिक के जरिए बताए हैं।
शुरुआत में यूनिवर्सिटी में बढ़ाई गई कोर्स फीस से...
विश्वविद्यालय का तर्क- फीस बढ़ोतरी सरकार पर निर्भरता कम करने की कोशिश
फीस बढ़ोतरी पर इलाहाबाद यूनिवर्सिटी प्रशासन का कहना है कि सरकार की तरफ से विश्वविद्यालयों को आदेश मिला है कि उन्हें अपने स्तर पर फंड का इंतजाम करना होगा। इसलिए हमने कोर्सेस की फीस बढ़ाकर सरकार पर निर्भरता कम करने की कोशिश की है। पिछले 110 साल से हर महीने छात्रों से ली जाने वाली ट्यूशन फीस 12 रुपए थी। बिजली का बिल, हॉस्टल मेंटेनेंस फीस का बढ़ाया जाना जरूरी था।
7.5 करोड़ रुपए हुआ यूनिवर्सिटी का बकाया बिजली बिल
यूनिवर्सिटी की वाइस चांसलर कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार, यहां का कुल बकाया बिजली बिल 7.5 करोड़ रुपए पहुंच चुका है। यूनिवर्सिटी में कुल 20 हॉस्टल हैं, जिनमें 30 हजार स्टूडेंट्स रहते हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि कोरोना काल में भी छात्रों ने बिजली का खूब इस्तेमाल किया, लेकिन कोई भी बिल भरने को तैयार नहीं हुआ। बकाये पैसे का बोझ बढ़ता जा रहा है, यूनिवर्सिटी की बिजली कभी भी कट सकती है।
नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया यानी NSUI : छात्र संगठन के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा, "इलाहाबाद यूनिवर्सिटी कोई मॉल तो है नहीं कि आप यहां आचार, मट्ठा बेच रहे हैं। यूनिवर्सिटी से जो लड़के पढ़कर निकलते हैं, वही आगे चल कर अधिकारी बनते हैं। आप यहां ह्यूमन रिसोर्स को डेवलप कर रहे हैं। अगर आप इसे धन उगाही की नजर से देखेंगे, तो अपने लक्ष्य से भटक जाएंगे। वीसी मैडम का लड़का तो बाहर की यूनिवर्सिटी में पढ़ता है, यहां गरीब घर के लड़के आते हैं। वह तो आ ही नहीं पाएंगे।" अखिलेश ने यूनिवर्सिटी की महंगी हॉस्टल फीस का भी मुद्दा उठाया।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद यानी ABVP: यूनियन के कार्यकर्ता अतेंद्र सिंह ने कहा, "फीस बढ़ाने का फैसला पूरी तरह से गलत है। अगर फीस बढ़ानी थी, तो यूनिवर्सिटी प्रशासन को बात करनी चाहिए थी। छात्र संघ के पदाधिकारी, पीएचडी स्कॉलरों के सामने प्रस्ताव आता तब जाकर सही रहता।"
विरोध प्रदर्शन के बीच आत्मदाह की कोशिशों के सवाल पर अतेंद्र कहते हैं, "हमारा संगठन इसका समर्थन नहीं करता। लड़ाई जिंदा रहकर ही लड़ी जा सकती है। आप विश्वविद्यालय बंद करवा दीजिए। चक्का जाम कर दीजिए। लेकिन आत्महत्या नहीं करिए। इससे यूनिवर्सिटी पर कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन आपके परिवार पर जरूर इसका असर पड़ेगा।"
समाजवादी छात्रसभा: छात्रनेता शुभम ने बताया, "यहां पढ़ाई करने वाले छात्रों की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं रही है। अगर अब फीस बढ़ा दी जाएगी, तो बच्चे आगे कैसे पढ़ाई कर पाएंगे। फीस न बढ़ती, तो छात्र मिट्टी का तेल पीने पर मजबूर न होते।"
आखिर में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में बीते 15 दिनों में कब और क्या हुआ, यह भी जान लीजिए...
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