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इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने अपने एक फैसले में कहा है कि एफआईआर दर्ज कराने की मांग को लेकर सीधा हाईकोर्ट में याचिका नहीं दाखिल की जा सकती है। कोर्ट ने कहा कि पुलिस द्वारा संज्ञेय अपराध की शिकायत न दर्ज करने पर भी पीड़ित व्यक्ति के पास मजिस्ट्रेट के समक्ष जाने का विकल्प है।
यह आदेश जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस चन्द्र धारी सिंह की बेंच ने वसीम हैदर की याचिका पर पारित किया। याचिका में फर्जी बैनामा के एक मामले में एफआईआर दर्ज करने का निर्देश पुलिस अधिकारियों को देने की मांग की गई थी।
FIR न दर्ज होने पर मजिस्ट्रेट के सामने करें अपील
कोर्ट ने एफआईआर दर्ज कराने की मांग वाले याचिकाओं की बढ़ती संख्या पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि सीआरपीसी की धारा 154(3), 156(3), 190 व 200 में इस बात का प्रावधान करती है कि पुलिस अधिकारी द्वारा संज्ञेय अपराध में एफआईआर न दर्ज करने से इंकार पर किन उपायों को अपनाया जा सकता है।
शिकायतकर्ता को खुद रिट याचिका दायर करने का अधिकार नहीं
उक्त प्रावधानों में दिये गए उपायों को न अपना कर सीधा हाईकोर्ट में रिट याचिकाएं दाखिल कर दी जा रही हैं। कोर्ट ने आगे कहा कि एफआईआर दर्ज करने से इंकार होने पर शिकायतकर्ता को स्वतः रिट याचिका इस बात के लिए दाखिल करने का अधिकार नहीं प्राप्त हो जाता है कि कोर्ट अपना आदेश जारी करते हुए पुलिस अधिकारी को उसके वैधानिक दायित्व का निर्वहन करने के लिए बाध्य करे।
कोर्ट ने कहा कि एक संज्ञेय अपराध में एफआईआर न दर्ज होने की स्थिति में शिकायतकर्ता मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रार्थना पत्र दाखिल कर सकता है।
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