भास्कर एक्सक्लूसिवडकैत गौरी यादव एनकाउंटर के आखिरी 60 मिनट:IPS अमिताभ बोले- बीहड़ के आखिरी डकैत को 50 फीट पास जाकर मारा, सम्मान में CM योगी ने दी पिस्टल

4 महीने पहलेलेखक: देवांशु तिवारी
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यूपी पुलिस हेडक्वार्टर पर सूबे के बड़े पुलिस अधिकारी इकट्ठा हुए। मौका था 26 जनवरी पर प्रदेश के 79 जांबाज पुलिसवालों को सम्मानित करने का। डीजीपी देवेंद्र सिंह चौहान ने पहले तिरंगा फहराया। सभी वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने सलामी दी। अचानक माइक पर एक खूंखार डकैत का नाम लिया जाता है...वो डकैत जिसने खुद एक पुलिस इंस्पेक्टर को मारा। 3 लोगों को बिजली के खंभे पर बांध कर सरेआम गोली मार दी। आम इंसानों को जिंदा जला डाला। नाम था...डकैत गौरी यादव।

2 साल पहले डकैत गौरी को मौत के घाट उतारने वाली STF टीम के लिए तालियां बजाई गईं। सीएम योगी के कहने पर DGP ने सभी को 3-3 लाख रुपए नकद और सरकारी खजाने से एक-एक पिस्तौल देकर सम्मानित किया। तालियों की आवाज एकाएक और तेज हो गई जब ADG-STF अमिताभ यश मंच पर पहुंचे। ये वही पुलिस ऑफिसर हैं, जिनकी एक तरकीब ने बुंदेलखंड को डकैतों के आतंक से हमेशा-हमेशा के लिए आजाद कर दिया।

ADG/STF अमिताभ यश को सीएम योगी का साइन किया गया प्रशस्ति पत्र देते यूपी के डीजीपी देवेंद्र सिंह चौहान।
ADG/STF अमिताभ यश को सीएम योगी का साइन किया गया प्रशस्ति पत्र देते यूपी के डीजीपी देवेंद्र सिंह चौहान।

जिस डकैत को लोकल पुलिस 10 साल तक देख भी नहीं पाई। उसे महज 50 फीट करीब जाकर कैसे ढेर किया गया। एनकाउंटर का पूरा किस्सा IPS ऑफिसर अमिताभ यश ने भास्कर को बताया। चलिए पूरी कहानी पर चलते हैं।

शुरुआत गौरी शंकर के डकैत गौरी बनने की कहानी से...
साल था 1976...चित्रकूट के छोटी बिलहरी गांव के बेहद गरीब परिवार में बेटा पैदा हुआ। पिता बाबू प्रसाद यादव भगवान शिव के भक्त थे। उन्होंने बेटे का नाम गौरी शंकर रखा। बच्चा ढाई साल का हुआ तभी बाबू प्रसाद की मौत हो गई। मां राजरानी ने मजदूरी करके गौरी शंकर को पढ़ाया-लिखाया। 10वीं पास करके गौरी सेना में जाने के सपने देखने लगा। सेना भर्ती का फॉर्म भरा, तैयारी भी की। फिर कानपुर जाकर भर्ती में दौड़ भी लगाई, लेकिन सिलेक्ट नहीं हुआ। हताश गौरी घर लौट आया।

उस समय चित्रकूट के पठार इलाके में दस्यु सम्राट ददुआ की तूती बोलती थी। बीहड़ के गांवों में बसे लोग जब उससे मदद मांगते, तब वो उन्हें अपनी गैंग में शामिल कर लेता। गौरी शंकर उम्र में छोटा था, लेकिन उसको घर भी चलाना था। इसलिए न चाहते हुए भी उसे ददुआ से मदद मांगनी पड़ी। ददुआ ने गौरी की आर्थिक मदद के बदले उसे अपने गिरोह में शामिल कर लिया।

फौज में जाने की तैयारी करने वाला गौरी अब बीहड़ का बागी बन गया था। वो बंदूक नहीं चला पाता था। इसलिए ददुआ ने उसे ड्राइवरी का काम दे दिया। गैंग में रहते हुए गौरी ने राइफल चलानी सीखी। लूट में मिले पैसों को वह घर भेजने लगा था। सब अच्छा चल रहा था, लेकिन एक दिन ददुआ के आदमियों ने गौरी को बहिलपुरवा थाना के इंस्पेक्टर कमल सिंह यादव से बात करते देख लिया। डकैतों ने गौरी की शिकायत ददुआ से की। वो आगबबूला हो गया। पुलिस के लिए मुखबिरी करने के शक में ददुआ ने गौरी को गैंग से निकाल दिया। चेतावनी दी- अगर दोबारा पुलिस के साथ दिखा तो पूरे परिवार को गोली मार देंगे।

ये गौरी शंकर यादव की तस्वीर है। डकैत ददुआ की गैंग में रहते हुए गौरी पुलिस के लिए मुखबिरी भी करता था। इसके लिए पुलिस उसे कुछ पैसे भी देती थी।
ये गौरी शंकर यादव की तस्वीर है। डकैत ददुआ की गैंग में रहते हुए गौरी पुलिस के लिए मुखबिरी भी करता था। इसके लिए पुलिस उसे कुछ पैसे भी देती थी।

ददुआ से लड़ाई के बाद गौरी बन गया मोस्टवॉन्टेड
ददुआ से अपनी और परिवार की जान बचाने के लिए गौरी ने भी हथियार उठा लिए। पुलिस के लिए मुखबिरी करते-करते उसको जंगल का पूरा नक्शा रट गया था। उसने डाकू खड़क सिंह के साथ मिल कर अपनी अलग गैंग बना ली। फिर लूट, अपहरण और हत्या जैसी घटनाओं को अंजाम देने लगा। इसी बीच, ददुआ और गौरी की कई बार भिड़ंत हुई। गोलियां चलीं, ददुआ के कई डाकू मारे गए। बीहड़ में नया डकैत अब गौरी बन गया था। लोग ददुआ से ज्यादा उसके नाम से खौफ खाने लगे थे। साल-दर-साल बीतते गए और गौरी पुलिस को चमका देता रहा।

साल 2001: गौरी डाकू गोप्पा के साथ मिल गया। उसके टारगेट पर चित्रकूट, सतना, बांदा जिलों के सरकारी अफसर थे। गौरी PWD अधिकारियों से लाखों रुपए वसूलता। जो भी पैसे देने से मना करता, उसके पूरे परिवार को किडनैप कर लेता फिर मार डालता। 6 साल के अंदर गौरी पर हत्या, लूट, डकैती और फिरौती के 50 से ज्यादा मामले दर्ज हुए। पुलिस ने उस पर 1 लाख का इनाम घोषित कर दिया।

साल 2007: पहली बार गौरी की STF से मुठभेड़ हुई। वह पकड़ा भी गया लेकिन कुछ दिनों बाद जब उसे पेशी पर कोर्ट ले जाया जा रहा था। उसने पुलिस पर हमला किया और भाग निकला। गौरी भागकर फिर पाठा के जंगलों में छिप गया। यहां बसे गांवों में रहने वाले लोगों को उसने असलहे चलाना सिखाया और उन्हें अपनी गैंग में शामिल कर लिया।

पाठा के जंगलों में गौरी यादव की तलाश में पुलिस ने कॉम्बिंग भी की थी।- फाइल फोटो
पाठा के जंगलों में गौरी यादव की तलाश में पुलिस ने कॉम्बिंग भी की थी।- फाइल फोटो

साल 2013: दिल्ली पुलिस ने बिलहरी गांव में गौरी को पकड़ने के लिए दबिश दी। इस दौरान गौरी ने एक दरोगा की पिस्टल छीनी और उसकी हत्या कर दी। कभी पुलिस के लिए मुखबिरी करने वाला गौरी पुलिस वालों को मार रहा था। ये वो समय था जब डाकू गौरी यादव का खौफ चरम पर था।

साल 2016: डकैत गौरी ने बलिहारी गांव के 3 लोगों को बिजली के खंभे में बांधकर सरेआम गोली मार दी। एक साल बाद कुलहुआ के जंगल में एक ही गांव के 3 लोगों को जिंदा जला दिया था।

योगी सरकार ने गौरी पर रखा 5 लाख का इनाम
साल 2017 में यूपी में भाजपा की सरकार बनी। योगी सीएम बन गए। बुंदेलखंड को डकैतों से मुक्त कराने के लिए 'ऑपरेशन गौरी' चलाया गया। गौरी को खोजने के लिए चित्रकूट के जंगलों में लोकल पुलिस से लेकर STF की टीमें उसके अड्डों पर दबिश देने लगी। पुलिस की सख्ती देखकर गौरी मध्य प्रदेश के जंगलों में फरार हो गया।

3 साल तक शांत रहने के बाद गौरी से रहा नहीं गया। मार्च 2021 में उसने चित्रकूट जिले के मानिकपुर के जंगलों में काम कर रहे वन विभाग के अधिकारियों और मजदूरों से मारपीट की। इस घटना के बाद योगी सरकार ने गौरी पर घोषित इनाम की रकम बढ़ाकर 5 लाख रुपए कर दी। वहीं, एमपी सरकार ने भी उस पर 50 हजार रुपए का इनाम रख दिया। पुलिस की स्पेशल टॉस्क फोर्स यानी STF को बीहड़ के जंगल में उतारा गया। बुंदेलखंड के आखिरी डकैत गौरी यादव को ढेर करने की जिम्मेदारी STF चीफ अमिताभ यश को सौंपी गई।

अब...
यहां तक आपने चित्रकूट में जन्में लड़के की खूंखार डकैत बनने की कहानी जानी। उसके एनकाउंटर के आखिरी 1 घंटे की कहानी खुद उसे मारने वाली टीम के लीडर IPS ऑफिसर अमिताभ यश ने हमें बताई। आइए उसे जानते हैं...

हम 50 फीट पर थे, डकैत को टारगेट किया फिर गोलियां बरसा दीं
डकैत गौरी की गैंग का फायर पावर बेहद स्ट्रॉन्ग था। गिरोह के पास सैकड़ों की तादाद में जिंदा कारतूस, हथगोले और बंदूकों का बड़ा स्टॉक था। यही वजह थी कि लोकल पुलिस उसे पकड़ नहीं पा रही थी। आखिरकार, डकैत गौरी के खात्मे के लिए STF की उस टीम को चुना गया, जिसको जंगल इलाकों में खतरनाक ऑपरेशन को अंजाम देने का अनुभव था।

इस ऑपरेशन को लीड करने वाले IPS ऑफिसर अमिताभ यश कहते हैं, "गौरी के खात्मे के लिए हमारी छोटी सी टीम पहले से काम कर रही थी। पहले एडवांस टेक्निकल डिवाइस की मदद से गैंग को पिनप्वाइंट किया गया। ये एक लंबा प्रोसेस था। पथरीली चट्टानों, जंगलों में कांटों भरे रास्तों और झाड़ियों में डकैत के ठिकानों की रेकी की गई। मुखबिरों की भी मदद ली गई।"

माड़ो बंधा के जंगल में रात 3 से 4 बजे के बीच डकैत गौरी के अड्डे पर अमिताभ यश और STF टीम।
माड़ो बंधा के जंगल में रात 3 से 4 बजे के बीच डकैत गौरी के अड्डे पर अमिताभ यश और STF टीम।

आखिरी 1 घंटा... "30 अक्टूबर 2021 को हमें एक इनपुट मिला कि डकैत गौरी अपने पुराने अड्डे माड़ो बंधा के पास है। उसके लिए शाम को खाना भेजा गया है। इस सूचना पर STF ने मूवमेंट किया। टीम गौरी के बेहद करीब पहुंच गई थी। उस समय वहां 10 से 12 लोग थे। उस वक्त काफी ठंड पड़ रही थी, इसलिए गैंग ने एक जगह पर आग जला रखी थी। उसके चारों तरफ गौरी अपने आदमियों के साथ बैठा था। आग की रोशनी में उसकी गैंग और असलहे साफ दिख रहे थे। मैं गौरी से महज 50 फीट दूर था। हमने स्लो मूव करते हुए उसे 3 तरफ से घेर लिया। फिर अचानक फायरिंग शुरू कर दी।"

"गोलियों की आवाज सुनकर गौरी घबरा गया। डकैत कुछ समझ पाते उससे पहले ही टीम ने गैंग के ज्यादातर लोगों को ढेर कर दिया। लंबी मुठभेड़ के बाद गौरी मारा गया। हालांकि, उसके गिरोह के कुछ साथी जंगल में भागने में सफल रहे। घटनास्थल पर हमें 6 तरह के असलहे मिले। इसमें AK-47,कलाश्निकोव की सेमी ऑटोमेटिक पुरानी राइफल्स, 12 बोर की बंदूक, कंट्री-मेड पिस्टल्स बरामद की गईं।"

गौरी का एनकाउंटर STF का सबसे सफल ऑपरेशन रहा
अमिताभ कहते हैं, "टीम की छोटी सी चूक मेजर ऑपरेशन फेल कर सकती है। इसलिए एक-एक कदम सावधानी से रखना पड़ता है। ऑपरेशन के दौरान एक कांटा इतना बड़ा था कि वो मेरे बूट के आर-पार चला गया था। इस तरह की समस्याएं अक्सर आती रहती है। लेकिन ठोकिया के साथ हुए एनकाउंटर में STF ने बड़ी चोट खाई थी। उसमें हमने एक माइनर टेक्निकल एरर कर दिया था, जो टीम के लिए जानलेवा साबित हुआ। उस ऑपरेशन में हमारे 6 जवान (5 कमांडो, एक ड्राइवर) शहीद हो गए थे। एक मुखबिर की भी मौत हो गई थी।"

डकैत गौरी यादव की मौत के साथ बुंदेलखंड डकैतों के आतंक से आजाद हो गया। हालांकि, गौरी की मां रजनी देवी आज भी ये मानती है कि पुलिस ने उनके बेटे को नहीं मारा। रजनी कहती है...
"मेरे बेटे की मौत के बाद शरीर पर कुल्हाड़ी के निशान थे।
उसे पुलिस ने नहीं बल्कि दुश्मनों ने धोखे से मारा था।
मेरा एक ही बेटा था जिसे मैंने मजदूरी कर के पाला।
मेरे बुढ़ापे का सहारा अब कौन बनेगा।"

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