अगर नियुक्ति के लिए उपयुक्त पीठासीन अधिकारी नहीं मिल रहे हैं, तो बेहतर होगा कि संबधित कानून को समाप्त कर दिया जाए। साथ ही और न्यायाधिकरणों को भंग कर दिया जाए।
यह बात इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने मंगलवार को कही। कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा देश के विभिन्न कर्ज वसूली न्यायाधिकरणों एवं कर्ज वसूली अपीलीय न्यायाधिकरणों में लंबे समय से पीठासीन अधिकारियों की नियुक्ति न करने पर सख्त नाराजगी जताई। कोर्ट ने केंद्र सरकार के वित्त सचिव से डॉ हफ्ते में जवाब मांगा है। कोर्ट ने याची से कहा कि नोटिस की कापी तत्काल असिस्टेंट सालिसिटर जनरल को दी जाए। कोर्ट ने विपक्षीगणों को संबधित संपत्ति के बावत यथास्थिति बरकरार रखने का आदेश दिया है।
यह आदेश जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की एकल पीठ ने केनरा बैंक की ओर से दाखिल एक याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया। याची ने कर्ज वसूली से जुड़े एक विवाद को लेकर सीधे हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। कोर्ट के पूछने पर याची ने कहा कि देश में कई-कई महीनों से कर्ज वसूली न्यायाधिकरण और अपीलीय न्यायाधिकरण खाली पड़े हैं। इस कारण उसे सीधे हाईकोर्ट आना पड़ रहा है।
इस पर कोर्ट ने कहा कि वित्तीय संस्थानों से जुड़े कर्ज वसूली के मामलों की सुनवाई के लिए 1993 में कानून बना था। इसके तहत ही पीठासीन अधिकारियों की नियुक्ति होती है। ऐसी दशा में अगर सरकार पीठासीन अधिकारियों की नियुक्ति नहीं करना चाहती, तो बेहतर है कि कानून को ही समाप्त कर दिया जाए।
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