मुलायम सिंह यादव की आज जयंती है। जिसे पार्टी धरती पुत्र दिवस के रूप में मना रही है। इस मौके पर सैफई में नेताजी की समाधि को गुलाब की पंखुड़ियों से सजाया गया। यहां पहुंचकर अखिलेश, शिवपाल समेत सपा नेताओं ने मुलायम को श्रद्धांजलि अर्पित की।
अखिलेश बोले- शहीदों को घर तक सम्मान नेता जी की देन है
अखिलेश यादव ने सैफई महोत्सव पंडाल में कहा कि जिस पंडाल में आज नेता जी की जयंती मनाई जा रही है। वह पंडाल भी नेता जी की देन है। सांस्कृतिक कार्यक्रम को ऊंचाई तक ले जाने का काम नेता जी ने किया। आज भी याद है जब यहां पर सैफई महोत्सव चल रहा था। बॉलीवुड से लेकर देश दुनिया के प्रसिद्ध कलाकर पहुंचे थे। सांस्कृतिक कार्यक्रम चल रहा था तभी बहुत तेज बारिश होने लगी। पूरा पंडाल भीग गया। सभी लोग भीग गए। इस वजह से इस बड़े पंडाल को नेताजी ने जनता की मांग पर बनवाया, जिसमें आप लोग बैठे हैं। सैफई महोत्सव से नेताजी की यादें जुड़ी हैं, लोगों के दिल में नेताजी आज भी बसे हैं।
राम गोपाल बोले- नेताजी हार नहीं माने, लड़ते रहे
राम गोपाल यादव ने कहा, " इंदिरा गांधी की पार्टी चुनाव में हार गई तो लोगों से पूछा देश में हमारी सरकार है, हम चुनाव कैसे हारे, इसपर उनकी पार्टी के नेताओं ने नेताजी मुलायम सिंह यादव का नाम लिया तो इंदिरा गांधी ने कहा कि इन्हें चुनाव हरवाओ। इसके बाद कलेक्टर और प्रशासन के अफसरों ने नेताजी को जबरदस्ती चुनाव हरवा दिया। उन्हें वोट तक नहीं डालने दिया। लेकिन नेताजी रुकने वाले नेता नहीं थे। वे हार नहीं माने, वह चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री बने, उन्होंने सब्जी बेचने वाले गरीबों को चुनाव लड़वाया, उसके बाद उन्हें मंत्री बनाया। नेताजी गरीबों के मसीहा थे।"
5 भैंसागाड़ियों पर गई थी नेताजी की बारात मुलायम
आज ही के दिन 1939 में इटावा के सैफई गांव में मुलायम सिंह यादव का जन्म हुआ था। पिछले महीने 10 अक्टूबर को उनका निधन हो गया था। मुलायम सिंह आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी कहानियां हैं। कहानियों में उनकी पहलवानी और राजनीति के वो दांव हैं, जिनका इस्तेमाल करके मुलायम सिंह ने UP की दिशा और दशा बदल दी।
इस मौके पर उनकी जिंदगी के ऐसे ही किस्से। आइए एक-एक करके नेताजी की जिंदगी के पन्नों को पलटते हैं।
पंडित ने कहा था- ये लड़का पढ़ेगा और कुल का नाम रोशन करेगा
22 नवंबर को किसान सुघर सिंह के घर एक बच्चे का जन्म हुआ। नाम रखा मुलायम। वो परिवार में तीसरे नंबर के बेटे थे। उनके पैदा होने पर गांव के पंडित ने कहा था कि ये बच्चा पढ़ेगा और अपने कुल का नाम रोशन करेगा। पंडित की बात सुनकर मुलायम के पिता ने उन्हें पढ़ाई करवाने की ठान ली।
सीधे तीसरी कक्षा में मिला था एडमिशन
मुलायम को भी पढ़ना पसंद था। वो स्कूल जाने लगे। एक दिन जब मुलायम स्कूल गए तो मास्टर सुजान ठाकुर बच्चों से सवाल-जवाब कर रहे थे। उन्होंने सभी बच्चों के साथ मुलायम की भी परीक्षा ली। जिन भी बच्चों ने सही जवाब दिए, मास्टर जी ने उन्हें सीधे तीसरी कक्षा में एडमिशन दिलवा दिया। उन बच्चों में मुलायम भी शामिल थे।
पढ़ाई के साथ शरीर का भी ध्यान रखते थे मुलायम
मुलायम को बचपन से ही पहलवानी में दिलचस्पी थी। उनके पिता भी चाहते थे कि सभी बच्चे पढ़ाई करें साथ ही अपने शरीर का भी ध्यान रखें। इसलिए मुलायम लगातार पहलवानी की प्रैक्टिस करते रहे साथ ही कई प्रतियोगिताओं में भी हिस्सा लिया। धीरे-धीरे वो अपनी उम्र के पहलवानों के बीच चैम्पियन बन गए।
पत्रकार सुनीता एरॉन ने अखिलेश यादव की बायोग्राफी, “विंड्स ऑफ चेंज” में मुलायम के चचेरे भाई राम गोपाल यादव के हवाले से मुलायम के चरखा दांव का जिक्र किया है। उन्होंने बताया कि कद में नेताजी छोटे थे, लेकिन कुश्ती में उनके चरखा दांव ने कई पहलवानों को चित किया। बड़े-बड़े पहलवान उनके इस दांव से डरते थे।
18 की उम्र में ही पिता ने तय कर दी मुलायम की शादी
साल 1957. मुलायम 10वीं की पढ़ाई कर रहे थे। उनके पिता ने 18 साल की उम्र में ही उनकी शादी तय कर दी। मुलायम इतनी कम उम्र में शादी नहीं करना चाहते थे। उन्होंने इसका विरोध भी किया, लेकिन परिवार ने उनकी एक ना सुनी। सैफई से करीब 20 किलोमीटर दूर रायपुरा गांव में उनकी शादी तय हुई थी।
5 भैंसागाड़ियों पर गई थी मुलायम की बारात
शादी का दिन आया। उस वक्त ना तो सड़कों की हालत ठीक थी, ना आने-जाने के लिए वाहनों की सुविधा होती थी। इसीलिए मुलायम की बारात 5 भैंसागाड़ियों पर ले जाई गई। तीन घंटे की यात्रा के बाद जब बारात गांव पहुंची, तो सभी बाराती धूल से लिपट चुके थे और सूरज ढल चुका था। सभी बारातियों का स्वागत हुआ और मुलायम की मालती देवी से शादी करा दी गई।
कुश्ती ने मुलायम को राजनीति में दिलाई एंट्री
साल 1965 में मुलायम ने इटावा में एक कुश्ती प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। इस प्रतियोगिता में जसवंतनगर के उस वक्त के विधायक नत्थू सिंह यादव चीफ गेस्ट थे। कुश्ती शुरू हुई। मुलायम ने अपने से दोगुने वजन के पहलवान को मिनटों में चित कर दिया। इससे नत्थू यादव बहुत प्रभावित हुए और मुलायम को राजनीति में लाने का फैसला कर लिया।
साल 1967 में मुलायम को चुनाव लड़वाने के लिए नत्थू ने अपनी जसवंतनगर की सीट तक छोड़ दी। मुलायम ने भी अपने राजनीतिक गुरु को निराश नहीं किया। वो पूरी ताकत से चुनाव की तैयारी करने में लग गए।
मुलायम के पास चुनाव प्रचार के लिए बस एक साइकिल थी। 1960 के दशक में देश में समाजवाद की लहर थी। UP में आए दिन राम मनोहर लोहिया समेत दिग्गज समाजवादियों की रैलियां होती थीं। मुलायम को भी अब समाजवादी विचारधारा रमने लगी। अब वो अखाड़े के साथ-साथ रैलियों में भी पाए जाने लगे। उन्हें विधायकी का टिकट भी मिल गया, लेकिन उनके पास प्रचार के लिए न पैसा था न कोई संसाधन। सिर्फ एक साईकिल थी। जो बाद में उनका चुनाव चिह्न बन गई।
…जब दिया ‘एक वोट, एक नोट’ का नारा
डॉ. संजय लाठर अपनी किताब ‘समाजवाद का सारथी, अखिलेश यादव की जीवनगाथा’ में लिखते हैं, “इस चुनौतीपूर्ण समय में मुलायम के दोस्त दर्शन सिंह ने उनका साथ दिया। वो साइकिल चलाते और मुलायम पीछे कैरियर पर बैठकर एक गांव से दूसरे गांव जाते और वोट मांगते, लेकिन बहुत वक्त तक ऐसे काम नहीं चल पा रहा था। चुनाव का अच्छे से प्रचार करने के लिए पैसों की जरूरत पड़ने लगी। ऐसे में दोनों ने मिलकर ‘एक वोट, एक नोट’ का नारा दिया। वो गांववालों से चंदे में एक रुपया मांगते और उसे ब्याज सहित लौटाने का वादा करते। ऐसे ही पैसे इकठ्ठा करके उन्होंने एक पुरानी एंबेसडर कार खरीदी।”
प्रचार के लिए गाड़ी आई, तो तेल के लिए पैसे नहीं
अब चुनाव प्रचार के लिए गाड़ी तो आ गई थी लेकिन उसमें तेल डलवाने के पैसे नहीं बचे थे। इसी बात को लेकर मुलायम के घर पर बैठक चल रही थी। इतने में गांव निवासी सोनेलाल काछी उठे और बोले, “हमारे गांव से कोई पहली बार विधायकी का चुनाव लड़ रहा है, हम उसके लिए पैसे की कमी नहीं होने देंगे।”
गांववालों ने व्रत रखा, बचे अनाज को बेचकर गाड़ी में तेल डलवाया
गांव में जब इस बात की चर्चा हुई तो लोगों को कुछ समझ नहीं आया, क्योंकि उनके पास भी खेती-किसानी और मवेशियों के अलावा कुछ नहीं था। इसलिए गांव के लोगों ने फैसला किया कि वो हफ्ते में एक दिन सिर्फ एक वक्त का खाना खाएंगे। उससे जितना अनाज बचेगा उसे बेचकर एंबेसडर कार में तेल भरवाएंगे। इसी तरह तेल के लिए पैसों का इंतजाम कर प्रचार जोर-शोर से होने लगा।
चुनाव आया। मुलायम की लड़ाई कांग्रेस के दिग्गज नेता हेमवंती नंदन बहुगुणा के शिष्य एडवोकेट लाखन सिंह से थी। मुलायम के जीतने की उम्मीद कम थी, लेकिन जब नतीजे आए तो सब चौंक गए। सियासत के अखाड़े की पहली लड़ाई मुलायम जीत गए थे। सिर्फ 27 साल की उम्र में मुलायम UP के उस वक्त के सबसे कम उम्र विधायक बने और यही से मुलायम सिंह ‘नेताजी’ बन गए।
ये तो थी नेताजी के पहले चुनाव की कहानी। अब बात उस किस्से की जहां उन्हें मारने के लिए लगातार 9 गोलियां दागी गईं, लेकिन उससे पहले मुलायम सिंह के राजनीतिक सफर से जुड़ा यह ग्राफिक देखते चलिए।
जब अखबार में छपी नेताजी को जान से मारने की खबर
8 मार्च 1984 की सुबह। जनसत्ता अखबार में नेताजी पर छपी एक खबर को पढ़कर हर कोई चौंक गया। खबर क्या थी, ये जानने के लिए पीछे चलते हैं…
तारीख- 4 मार्च 1984, दिन- रविवार। नेताजी की इटावा और मैनपुरी में रैली थी। रैली के बाद वो मैनपुरी में अपने एक दोस्त से मिलने गए। दोस्त से मुलाकात के बाद वो 1 किलोमीटर ही चले थे कि उनकी गाड़ी पर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू हो गई। गोली मारने वाले छोटेलाल और नेत्रपाल नेताजी की गाड़ी के सामने कूद गए। छोटेलाल नेताजी के ही साथ चलता था, इसलिए उसे पता था कि वह गाड़ी में किधर बैठे हैं।
कद छोटा था, इसलिए गोली उन्हें नहीं लगी
करीब आधे घंटे तक छोटेलाल, नेत्रपाल और पुलिसवालों के बीच फायरिंग चलती रही। छोटेलाल नेताजी के ही साथ चलता था। इसलिए उसे पता था कि वह गाड़ी में किधर बैठे हैं। यही वजह है कि उन दोनों ने 9 गोलियां गाड़ी के उस हिस्से पर चलाईं, जहां नेताजी बैठा करते थे। लेकिन लगातार फायरिंग से ड्राइवर का ध्यान हटा और उनकी गाड़ी डिस्बैलेंस होकर सूखे नाले में गिर गई। नेताजी तुरंत समझ गए कि उनकी हत्या की साजिश की गई है। उन्होंने तुरंत सबकी जान बचाने के लिए एक योजना बनाई।
मुलायम ने सबसे ‘नेताजी मर गए’ चिल्लाने को कहा
उन्होंने अपने समर्थकों से कहा कि वो जोर-जोर से चिल्लाएं कि ‘नेताजी मर गए। उन्हें गोली लग गई। नेताजी नहीं रहे।’ जब समर्थकों ने चिल्लाना शुरू किया, तो हमलावरों को लगा कि नेताजी सच में मर गए। उन्हें मरा हुआ समझकर हमलावरों ने गोलियां चलाना बंद कर दी और वहां से भागने लगे, लेकिन पुलिस की गोली लगने से छोटेलाल की उसी जगह मौत हो गई और नेत्रपाल बुरी तरह घायल हो गया।
इसके बाद सुरक्षाकर्मी नेताजी को एक जीप में 5 किलोमीटर दूर कुर्रा पुलिस स्टेशन तक ले गए। ये बात जब चौधरी चरण सिंह को पता चली तो वो नेताजी को लेकर बहुत चिंता करने लगे। उन्होंने नेताजी को सुरक्षा दिलाने के लिए UP विधान परिषद में विपक्ष का नेता बनवा दिया। इस वाकये के बाद साल 2012 तक देश की राजनीति ने जिस तरफ भी करवट ली, मुलायम हमें वहीं खड़े नजर आए।
मुलायम अखिलेश को CM बनाएंगे, यह शिवपाल को भी नहीं पता था
साल 2012. UP विधानसभा चुनाव का रिजल्ट आया। सपा ने पहली बार पूर्ण बहुमत से जीत हासिल की। 223 सीटों से जीत के बाद सरकार बनी। सभी मुलायम सिंह यादव के CM पद की शपथ लेने का इंतजार कर रहे थे। अखिलेश को भी पार्टी में अहम जगह मिलने की उम्मीद थी, लेकिन मुलायम उन्हें CM बना देंगे, इस बात की भनक शिवपाल यादव समेत पार्टी के किसी आदमी को नहीं थी।
ज्योतिष से कहा- अखिलेश के नाम से देखो शपथ ग्रहण का मुहूर्त
मुलायम सिंह ने शपथ की तारीख एक ज्योतिषी से निकलवाने का फैसला किया। ज्योतिष ने मुलायम से मुलाकात कर उनके नाम से शपथ ग्रहण की तारीख निकाली। तभी मुलायम ने धीरे से ज्योतिष को बोला, “अखिलेश के नाम की तारीख निकालो।” यही वो मौका था जब सबको पता चला कि मुलायम अपने बेटे अखिलेश को UP का CM बनाना चाहते हैं।
हालांकि, किसी ने भी मुलायम के इस फैसले का विरोध नहीं किया और अखिलेश को CM बनाया गया। इस तरह राजनीति में अपनी हनक रहते हुए ही मुलायम ने अपनी सियासी विरासत अखिलेश को सौंप दी।
मुलायम ने CM अखिलेश को बनवा दिया लेकिन राजनीति में उनकी पैठ अब भी शामिल थी। वो पहली की तरह ही सक्रिय रहते थे। उनका हर पार्टी के नेताओं के साथ उठना-बैठना था।
मुलायम ने की थी PM मोदी की जीत की कामना
साल 2019. 16वीं लोकसभा का आखिरी दिन था। मुलायम का भाषण शुरू हुआ। पहले तो उन्होंने सदन के सभी सदस्यों को शुभकामनाएं दीं। उसके बाद नरेंद्र मोदी की तरफ देखते हुए बोले कि हम लोग तो इतना बहुमत नहीं ला सकते इसलिए मैं चाहता हूं आप फिर से प्रधानमंत्री बनें। इसके बाद हाथ जोड़कर PM मोदी ने मुलायम का अभिवादन किया।
मोदी ही नहीं, मुलायम ने विपक्षी दलों और नेताओं से जो रिश्ते कायम किए उसे हमेशा निभाया, लेकिन ये सिलसिला 10 अक्टूबर 2022 को खत्म हो गया। मुलायम हमारे बीच नहीं रहे। आज 42 दिन बाद उनकी पहली जयंती है।
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