समाजवादी पार्टी से अलग हो चुके ओम प्रकाश राजभर जातीय गणना को लेकर 'सावधान यात्रा' निकालने जा रहे हैं। 26 सितंबर को लखनऊ से सावधान यात्रा की शुरुआत होगी। 27 को वाराणसी के मुनारी में सावधान यात्रा महारैली होगी। इसके बाद पूर्वांचल में 17 महा रैलियां की जाएंगी। राज्य के 75 जिलों में भ्रमण के बाद रैली का समापन बिहार की राजधानी पटना के गांधी मैदान में होगा।
दैनिक भास्कर से बातचीत में ओम प्रकाश ने दावा किया कि अब वह नई रणनीति पर काम कर रहे हैं। अब सत्ता पक्ष की जगह विपक्षी पार्टियों से लोगों को सावधान करेंगे। इसके लिए ही सावधान यात्रा निकालेंगे। उधर, सहयोगी निषाद पार्टी के मुखिया संजय निषाद की मांग पर सरकार 17 OBC जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिलाने की तैयारी में जुटी है। ऐसे में सवाल है कि क्या लोकसभा चुनाव से पहले बदल जाएगी यूपी में जातीय राजनीति?
विपक्षी पार्टियों से जनता को सावधान करने के लिए यात्रा
ओम प्रकाश राजभर ने भास्कर से कहा, "जब ये पार्टियां में सत्ता में रहती हैं, तो जातिवार जनगणना, सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट को लागू कराने और समान शिक्षा के लिए पहल नहीं करतीं। सत्ता से बाहर होते ही वे मुद्दा बना लेती हैं। इन्ही विपक्षी पार्टियों से जनता को सावधान करने के लिए ही यह 'सावधान यात्रा' निकाली जा रही है।"
UP में जातिगत जनगणना पर सियासी दलों की राजनीति?
ओम प्रकाश राजभर जिस जातिगत जनगणना की मांग कर रहे हैं, वह बहुत पुरानी है। सूबे में जब भी चुनाव आते हैं, मांग जोर पकड़ती है। यूपी में विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा को छोड़कर सभी दल जातीय जनगणना की सियासत में खूब हाथ-पैर मारते हैं। छोटे-छोटे दल जिनका आधार ही जातीय वोट बैंक है, वह जातीय जनगणना की मांग कर रहे थे, बाद में समाजवादी पार्टी भी इसके पक्ष में खुलकर बोलने लगी।
सपा और बसपा जातीय जनगणना के पक्ष में है, जबकि भाजपा बैकफुट पर नजर आ रही है। ओम प्रकाश राजभर कहते हैं, "जब ये पार्टियां सत्ता से बाहर होती हैं, तो जातीय जनगणना की मांग करते हैं और सत्ता में आते ही चुप हो जाते हैं।''
अखिलेश यादव भी चाहते हैं जातीय जनगणना
विधानसभा चुनाव से पहले अखिलेश लगातार जातीय जनगणना की बात करते रहे। चुनाव के दौरान अखिलेश ने कहा था कि अगर, यूपी में हमारी सरकार बनी तो जातीय जनगणना कराएंगे। 22 फरवरी 2022 को यूपी विधानसभा चुनाव के चौथे चरण की वोटिंग से एक दिन पहले सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव कहा था कि समाजवादी पार्टी के साथ जो छोटी-छोटी पार्टियां हैं वो जातिगत जनगणना चाहती हैं, वो चाहती हैं कि आरक्षण खत्म न हो। वो चाहते हैं कि आबादी के हिसाब से हक और सम्मान मिले। लेकिन बीजेपी को इससे डर लगता है।
केंद्र सरकार जातिगत जनगणना के लिए पहले ही मना कर चुकी है
केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने 20 जुलाई 2021 को लोकसभा में दिए जवाब में कहा कि फिलहाल केंद्र सरकार ने अनुसूचित जाति और जनजाति के अलावा किसी और जाति की गिनती का कोई आदेश नहीं दिया है। पिछली बार की तरह ही इस बार भी एससी और एसटी को ही जनगणना में शामिल किया गया है।
अब तक आपने जातिगत जनगणना पर सियासी दलों की बात समझी, अब जानिए कि इसका जनगणना का मकसद क्या है?
देश में जातिगत जनगणना क्यों नही होती?
जातीय जनगणना कि जरूरत क्यों?
कहा जाता है, 'जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी'। अगर संख्या एक बार पता चल जाए और उस हिसाब से हिस्सेदारी दी जाने लगे तो यूपी की सियासत बदल जाएगी। जातिगत जनगणना होती है तो अब तक की जानकारी में जो आंकडे़ हैं, वो ऊपर नीचे होने की पूरी संभावना है। यूपी में मान लीजिए, ओबीसी की आबादी 45 प्रतिशत से घट कर 30 फीसदी रह जाती है, तो हो सकता है कि राजनीतिक पार्टियों के ओबीसी नेता एकजुट हो कर कहें कि ये आंकड़े सही नहीं हैं। और मान लीजिए इनका प्रतिशत बढ़कर 60 हो गया, तो कहा जा सकता है कि और आरक्षण चाहिए।
आदिवासियों और दलितों के आंकलन में फेरबदल होगा नहीं, क्योंकि वो हर जनगणना में गिने जाते ही हैं, ऐसे में जातिगत जनगणना में प्रतिशत में बढ़ने घटने की गुंजाइश अपर कास्ट और ओबीसी के लिए ही है। इसीलिए पिछड़ी जातियों की राजनीति करने वाले लगातार इसकी मांग करते हैं।
यूपी में जातीय समीकरण
सत्ता में आने से पहले जातिगत जनगणना की मांग करने वाली पार्टियां सत्ता में आने के बाद आखिर इस तरह की जनगणना के खिलाफ क्यों हो जाती है? इसके पीछे यूपी का जातीय समीकरण है। यूपी में अनुमानित आंकड़ों के मुताबिक ओबीसी वोटर्स की संख्या सबसे अधिक 42 से 45 फीसदी बताई जाती है। यूपी में दलित वोटरों की संख्या करीब 21 से 22 फीसदी माना जाता है। वहीं, सवर्ण तबके की एक अनुमानित संख्या 18 से 20 फीसदी है। इसके साथ ही मुसलमान वोटरों की संख्या करीब 16 से 18 फीसदी बताई जाती है।
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