लखनऊ में मंगलवार से धारा 144 लागू कर दी गई है। इस आदेश के बाद विधानसभा के आसपास धरना-प्रदर्शन पर पूरी तरह से प्रतिबंध रहेगा। प्रशासन ने यह फैसला कोरोना के बढ़ते मामलों, क्रिसमस, न्यू ईयर का जश्न और प्रवेश परीक्षाओं को देखते हुए लिया है। जेसीपी लॉ एंड आर्डर पीयूष मोर्डिया ने यह आदेश जारी किया है।
इसके साथ ही केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश शासन द्वारा कोरोना-कर्फ्यू के दौरान जारी गाइडलाइन का भी पालन कराया जाएगा, जिसके तहत सभी हॉल, मल्टीप्लेक्स, स्पोर्ट्स स्टेडियम आदि 50 फीसदी क्षमता के साथ ही खुलेंगे, जबकि स्वीमिंग पूल पूरी तरह से बंद रहेगा। मंदिरों में भी श्रद्धालु एक साथ 50 की संख्या में ही दर्शन कर पाएंगे।
उनके अनुसार विधानसभा के आसपास धरना प्रदर्शन या वाहन के साथ प्रदर्शन को धारा 144 का उल्लंघन माना जाएगा। कंटेनमेंट जोन को छोड़कर धर्म स्थलों पर 50 से ज्यादा लोग जमा नहीं हो सकेंगे। शादी समारोहों और बंद स्थानों पर एक समय में 100 से ज्यादा लोगों के इकट्ठा होने पर भी रोक रहेगी।
ये हैं 10 बड़ी पाबंदियां
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एक तरफ धारा 144, दूसरी तरफ पॉलिटिकल रैलियों की भरमार
लखनऊ में पिछले 15 दिन में 3 बड़े प्रदर्शन हुए
पिछले 15 दिन में लखनऊ में 3 बड़े प्रदर्शन हुए हैं। इसमें प्रदर्शनकारियों की संख्या 50 हजार से डेढ़ लाख तक रही है। सबसे पहले अटेवा पेंशन बचाओ मंच की ओर से 21 नवंबर को आंदोलन किया गया था। इसमें पूरे प्रदेश से करीब 50 हजार कर्मचारी और शिक्षक आए थे। उस दौरान पूरे दिन ईको गार्डन के आसपास जाम लग गया था। उसके बाद संयुक्त किसान मोर्चा ने लखनऊ में रैली की थी। उसमें भी काफी भीड़ हुई थी। यह आंदोलन 22 नवंबर को हुआ था। उसके बाद 30 नवंबर को कर्मचारियों और शिक्षकों ने फिर से पुरानी पेंशन के लिए आंदोलन किया था। इस आंदोलन में करीब डेढ़ लाख लोग और 10 हजार से ज्यादा गाड़ियां आ गई थीं। इसको संभालने में पुलिस-प्रशासन की हालत खराब हो गई थी।
सरकार कहीं डर तो नहीं गई है
लोगों के मन में यह सवाल है कि अगर रैली की भीड़ से कोरोना नहीं फैल रहा है, तो छात्रों-कर्मचारियों के प्रदर्शन से कैसे फैल सकता है? यह कहीं सरकार की आंदोलनों को दबाने की रणनीति तो नहीं?
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