विधान सभा चुनाव नजदीक आने के साथ ही सपा ने बाकी जातियों के साथ दलित वोट बैंक को भी साधने की तैयारी कर ली है। पहले पूर्व कैबिनेट मंत्री केके गौतम के बाद अब सपा बलिया के दिग्गज नेता मिठाई लाल भारती पर दाव लगा रही है। उनको समाजवादी बाबा साहेब अंबेडकर वाहिनी की कमान सौंपी गई है।
वाहिनी का ऐलान सपा मुखिया अखिलेश यादव ने 14 अप्रैल को अंबेडकर जयंती पर ही किया था। लेकिन, अभी तक वह इसका गठन नहीं कर पाए थे।इस वाहिनी के जरिए समाजवादी पार्टी दलित वोट बैंक को अपने पाले में लाने की कोशिश करेगी। हालांकि, इसकी देरी को लेकर लगातार सवाल खड़े हो रहे थे। वहीं बसपा से सपा का दामन थामने वाले दलित नेताओं की भी नजर इस पर बनी हुई थी। दलितों का साधना समाजवादी बाबा साहेब अंबेडकर वाहिनी के लिए कांटों भरा होगा। क्योंकि, सपा सरकार के दौरान प्रमोशन में आरक्षण जैसे मुद्दों को लेकर जो कार्रवाई की गई थी, उसको दलितों का बड़ा तबका भूला नहीं है।
बसपा में कई महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं मिठाई लाल भारती
मिठाई लाल भारती दलितों के बड़े नेताओं में शुमार किए जाते हैं। वो बसपा के लिए लंबे समय से काम करते रहे हैं। हाल ही में पार्टी से नाराजगी जताते हुए उन्होंने सपा का दामन थामा है। बसपा में रहने के दौरान मिठाई लाल भारती कई प्रदेशों के प्रभारी भी रहे थे। साथ ही पूर्चांचल जोन के जोनल को-ऑर्डिनेटर भी रहे थे। ऐसे में संगठन को चलाने का उनके पास पर्याप्त अनुभव है।
बाकी दलित नेताओं को भी तोड़ा जाएगा
सपा इसके साथ बाकी दलित नेताओं पर नजर डाल रही है। यूपी में दलित वोट बैंक करीब 22 से 23 फीसदी माना जाता है। जिसमें चमार-जाटवों की संख्या करीब 12 फीसदी है। चमार-जाटव अभी भी बसपा के साथ हैं लेकिन दूसरी दलित जातियां लगातार बसपा से दूरी बनाती जा रहीं हैं। भाजपा को अपना दुश्मन मानने वाली दलित जातियां कन्फ्यूज हैं, ऐसे में वे मजबूत विकल्प की तलाश कर रहीं हैं। बाबा साहेब अंबेडकर वाहिनी के जरिए सपा की कोशिश होगी कि इन नाराज दलितों को अपने पाले में लाया जा सकें। चमार और चाटर को छोड़ बाकी वर्ग से आने वाले दलित नेताओं पर सपा की नजर है। पार्टी के वरिष्ठ नेता ने बताया कि इसको लेकर एक बड़ी सूची बनाई गई है, उनके साथ लगातार वार्ता चल रही है। आने वाले दिनों में एक साथ कई लोग सपा मुखिया अखिलेश यादव के सामने पार्टी में शामिल होंगे।
प्रमोशन में आरक्षण का विरोध भारी पड़ सकता
सपा ने अपनी पिछली सरकार में प्रमोशन में आरक्षण का विरोध किया था। उसके बाद ही उनसे दलितों की सूची और ज्यादा बढ़ गई थी। अखिलेश अपने कई भाषण में आरक्षण की बात करते हैं, हालांकि उनके ऊपर लोग कितना भरोसा करेंगे यह देखने लायक होगा। 2012 से 2017 की सरकार के दौरान कोर्ट के आदेश पर कई दलित कर्मचारियों को डिमोट किया गया था। उस समय यह मांग की गई थी, प्रदेश सरकार कोर्ट के फैसले को चैलेंज करे लेकिन ऐसा नहीं किया गया। यहां तक कि सपा के सह पर आरक्षण विरोधी कर्मचारियों ने लगातार बीजेपी कार्यालय के सामने प्रदर्शन किया था। उस समय संसद में इसको लेकर कानून आने वाला था, जिसका सपा भी विरोध कर रही थी। सपा के ही सांसद ने प्रमोशन में आरक्षण का बिल भी सदन में फाड़ा था।
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