बांके बिहारी के प्राकट्य उत्सव के लिए मथुरा तैयार:8 दिसंबर को 516 साल के हो जाएंगे, पंचामृत से होगा अभिषेक

मथुराएक वर्ष पहले
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बांके बिहारी जी की प्राकट्य स्थली निधिवन राज में उत्सव की तैयारियां चल रही हैं। - Dainik Bhaskar
बांके बिहारी जी की प्राकट्य स्थली निधिवन राज में उत्सव की तैयारियां चल रही हैं।

ठाकुर बांके बिहारी 8 दिसंबर को 516 साल के हो जाएंगे। बांके बिहारी जी की प्राकट्य स्थली निधिवन राज में प्राकट्य उत्सव की तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। बुधवार को वृंदावन में बिहारी जी के प्राकट्य उत्सव पर धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजनों किया जाएगा। बांके बिहारी की प्राकट्य स्थली निधिवन में भव्य सजावट की गई है।

प्राकट्य उत्सव के दिन में सुबह 5 बजे ठाकुर बांके बिहारी जी का पंचामृत से अभिषेक किया जाएगा। उसके बाद निधिवन से बांके बिहारी मंदिर तक भव्य शोभायात्रा निकाली जाएगी। इसी स्थान पर संगीत शिरोमणि हरिदास के अनुरोध पर बांके बिहारी की मूर्ति प्रकट हुई थी।

संगीत साधना से बांके बिहारी को किया था प्राकट्य

संगीत शिरोमणि स्वामी श्रीहरिदास ने अपनी संगीत साधना से ठाकुर बांके बिहारी महाराज का प्राकट्य किया था। तभी से इस दिन को बिहार पंचमी के रूप में मनाया जाता है। निधिवन राज मंदिर और ठा. बांकेबिहारी मंदिर के सेवायत भीकचंद्र गोस्वामी ने बताया कि ठाकुरजी के प्राकट्य उत्सव पर 8 दिसंबर को मंदिर परिसर को रंग-बिरंगे फूलों और रोशनी से सजाया जाएगा। सुबह 5 बजे वेद मंत्रोच्चारण, केलिमाल के पदों के गायन के बीच ठाकुर बांकेबिहारी की प्राकट्य स्थली का दूध, दही, मेवा, घी, बूरा, शहद, गंगा जल, यमुना जल, केसर के इत्र और जड़ी बूटियों से महाभिषेक किया जाएगा। इसके बाद ठाकुरजी की विशेष आरती की जाएगी।

स्वामी हरिदास जी ने इस जगह पर ही साधना की थी।
स्वामी हरिदास जी ने इस जगह पर ही साधना की थी।

सम्राट अकबर भी हुए थे स्वामी हरिदास के कायल

स्वामी हरिदास का जन्म संवत 1535 में सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बाद में वह वृंदावन में आकर बस गए थे। उन्होंने यमुना के किनारे पेड़ पौधों के बीच अपनी साधना स्थली बनाया था। स्वामी हरिदास जी संगीत के जानकार थे। सम्राट अकबर के नवरत्नों में शुमार संगीतज्ञ तानसेन और बैजू बाबरा स्वामी जी की संगीत कला को मानने वाले थे। ऐसा कहा जाता है कि स्वामी जी की संगीत साधना के बारे में सुनकर खुद सम्राट अकबर नंगे पैर उनके दर्शन के लिए उनकी कुटिया तक पहुंचा था।

स्वामी जी की संगीत साधना के बारे में सुनकर सम्राट अकबर नंगे पैर उनके दर्शन के लिए उनकी कुटिया तक पहुंचा था।
स्वामी जी की संगीत साधना के बारे में सुनकर सम्राट अकबर नंगे पैर उनके दर्शन के लिए उनकी कुटिया तक पहुंचा था।

1864 में मंदिर में स्थापित हुए भगवान बांके बिहारी

विक्रम संवत 1562 को शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन बांके बिहारी लाल निधिवन राज की लता पताकाओं के बीच प्रकट हुए थे। 1864 में नव मंदिर का निर्माण करवा कर प्रतिमा को स्थापित किया गया। वर्तमान में स्वामी जी की वंश परंपरा के गोस्वामी परिवारों द्वारा मंदिर में ठाकुर जी की रोज सेवा की जा रही है।