नवरात्र के दौरान 9 दिन मां भगवती के अलग-अलग स्वरूप की आराधना की जाती है। नवरात्र के छठवें दिन मां कात्यायनी की आराधना की जाती है। मां कात्यायनी का मंदिर भगवान श्री राधा कृष्ण की भूमि वृंदावन में है। जहां नवरात्र के दौरान बड़ी संख्या भक्त मां की आराधना करने के लिए पहुंचते हैं।
51 शक्ति पीठों में से एक है मां कात्यायनी देवी का मंदिर
वृंदावन के राधा बाग इलाके में देवी के 51 शक्ति पीठों में कात्यायनी पीठ है। बताया जाता है कि यहां माता सती के केश गिरे थे। इसका जिक्र शास्त्रों में मिलता है। नवरात्र के मौके पर देश-विदेश से लाखों भक्त माता के दर्शन करने के लिए यहां आते हैं।
श्रीमद् भागवत में है कात्यायनी देवी का उल्लेख
कात्यायनी देवी का उल्लेख श्री मद भागवत में भी मिलता है। देवर्षि श्री वेद व्यास जी ने श्रीमद् भागवत के दशम स्कंध के 22वें अध्याय में उल्लेख किया है...
कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि।
नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरु ते नम:॥
हे कात्यायनि! हे महामाये! हे महायोगिनि!
हे अधीश्वरि! हे देवि! नंद गोप के पुत्र हमें पति के रूप में प्राप्त हों। हम आपकी अर्चना एवं वंदना करते हैं।
इसलिए भगवान ने किया महारास
गीता के अनुसार, राधा रानी ने गोपियों के साथ भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए कात्यायनी पीठ की पूजा की थी। माता ने उन्हें वरदान दे दिया लेकिन भगवान एक और गोपियां अनेक, ऐसा संभव नहीं था। इसके लिए भगवान कृष्ण ने वरदान को साक्षात करने के लिए महारास किया। भगवान ने 16108 गोपियों के साथ महारास करने के लिए इतने ही रूप रखे और यमुना किनारे शरद पूर्णिमा की रात धवल चांदनी में महारास किया।
हर मनोकामना होती है पूरी
मान्यता है कि मां कात्यायनी के दर्शन करने से भक्तों की मनोकामना पूरी होती है। यहां कुंवारे लड़के और लड़कियां नवरात्र के मौके पर मनचाहे वर और वधु प्राप्त करने के लिए माता का आशीर्वाद लेने के लिए आते हैं। मान्यता है जो भी भक्त सच्चे मन से माता की पूजा करता है, उसकी मनोकामना जल्द पूरी होती है। मान्यता के अनुसार भगवान कृष्ण को प्राप्त करने के लिए गोपियों ने यमुना की बालू से मां कात्यायनी की प्रतिमा बनाकर आराधना की थी यही वजह है कि आज भी कुंवारी कन्या सुयोग्य वर की प्राप्ति के लिए मां कात्यायनी की आराधना करती हैं।
भगवान कृष्ण ने भी की थी मां कात्यायनी की पूजा
स्थानीय निवासियों के अनुसार भगवान कृष्ण ने कंस का वध करने से पहले यमुना किनारे माता कात्यायनी को कुल देवी मानकर बालू से मां की प्रतिमा बनाई थी। उस प्रतिमा की पूजा करने के बाद भगवान कृष्ण ने कंस का वध किया था। हर साल कात्यायनी देवी मंदिर के नजदीक रंग जी के बड़े बगीचा में चैत्र और शारदीय नवरात्र के मौके पर मेले का भी आयोजन किया जाता है। अष्टमी के दिन यहां संधि आरती होती है जिसके दर्शन करने के लिए बड़ी संख्या में भक्त मंदिर पहुंचते हैं।
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