परिक्रमा मार्ग स्थित गो गौरी गोपाल आश्रम में जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी महाराज का 1005 वां जयंती महोत्सव अंतर्गत देर शाम संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें संत व विद्वानों ने जगद्गुरु का पूजन अर्चन कर उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला।
महंत गोपीकृष्ण दास एवं डा. रामसुदर्शन मिश्र ने कहा कि सभी वैदिक आचार्य भगवान के स्वरूप होते हैं। भागवत प्रवक्ता अनिरुद्धाचार्य महाराज ने कहा कि भारतवर्ष पुण्य देश है। जीवों का उद्धार करने के लिए भगवान समय-समय पर अवतरित होकर सनातन धर्म, भक्ति, ज्ञान व वैराग्य का प्रचार-प्रसार एवं जीवों का उद्धार करते हैं। भगवान की शरणागति में सभी जीवों का अधिकार है। बिना भक्ति के मुक्ति नहीं होती है।
लालजी शास्त्री ने कहा कि ईश्वर अंश जीव अविनाशी है, चेतन है, निर्मल ही सहज सुख की रासि है। विद्या जीव को खोलती है। नरेश नारायण शास्त्री ने कहा कि शेषावतार रामानुज स्वामी ने पूरे भारतवर्ष में भ्रमण कर प्रभु की भक्ति का उपदेश देकर जीवों का कल्याण किया। रमेशचंद्र विधिशास्त्री ने कहा कि भगवान नारायण की आज्ञा से शेषावतार रामानुजाचार्य स्वामी भारतवर्ष की पावन भूमि दक्षिण प्रदेश के भूतपुरी ग्राम में प्रगट हुए। उन्होंने ब्रह्मसूत्र पर श्रीभाष्य लिखा और गीता, विष्णु सहस्रनाम के साथ अनेक ग्रंथों की रचना की। पुरुषोत्तम शरण ने कहा कि जीवन उसी का धन्य है जो सत्संग, साधना, परोपकार, स्वधर्म पालन में तत्पर है। जो परमात्मा रूप में है उसको पहचानना ही जीवन का लक्ष्य होना चाहिए।
इस अवसर पर महामंडलेश्वर राधाप्रसाद देव, महंत रामसजीवन दास, महंत मोहिनीबिहारी शरण, स्वामी सच्चिदानंद दास, स्वामी सेवानंद, अच्युतलाल भट्ट, बनविहारी पाठक, बिहारीलाल वशिष्ठ, आचार्य बद्रीश, सौरभ गौड़, मारूतिनंदन वागीश, भारत यादव आदि उपस्थित थे।
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