मेरठ में कैप्टन पीएल तलवार का निधन:दुनिया के सबसे ऊंचे लेह हवाई अड्डे का अपनी देखरेख में कराया था निर्माण, शहीद बेटे की प्रतिमा के लिए लड़ी थी 10 साल लड़ाई

मेरठ2 वर्ष पहले
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कैप्टन पीएल तलवार की फोटो। - Dainik Bhaskar
कैप्टन पीएल तलवार की फोटो।

मेरठ में कैप्टन पीएल तलवार का मंगलवार रात को उनके आवास पर निधन हो गया। वह 85 वर्ष के थे। पिछले कुछ दिनों से बीमार थे। उन्होंने 1964 में लेह हवाई अड्डे का निर्माण अपनी देखरेख में कराया था। ये दुनिया में सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित हवाई अड्डा है। कैप्टन तलवार मेरठ के मवाना रोड डिफेंस कालोनी में रहते थे।

कैप्टन तलवार का जन्म 4 नवम्बर 1936 को पंजाब के जालंधर में हुआ था। वह कमीशन से सेना में भर्ती हुए थे। उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया था कि जब 1962 में भारत-चीन के बीच जंग छिड़ी तो चीन ने घुसपैठ के प्रयास किए और हमारी सेना मुकाबला करती रही। उसके बाद सेना ने निर्णय लिया कि लेह में हवाई अड्डे का निर्माण किया जाना है।

तलवार ने बताया था- 1964 में लेह हवाई अड्डा का निर्माण हुआ। इसका निर्माण मेरी देखरेख में ही हुआ था। उस समय सेना में रहते हुए मुझे कई कई दिन तक भूखा भी रहना पड़ता था। हवा इतनी तेज चलती थी, मानों ऐसा ऐसा लगता था कि जैसे सीने पर कोई हमला कर रहा हो, लेकिन उसके बाद भी हमने हिम्मत नहीं हारी।

करगिल युद्ध में शहीद हुआ था बेटा
कैप्टन तलवार का बेटा मनोज करगिल युद्ध में शहीद हुआ था। मनोज का जन्म 29 अगस्त 1969 को मुजफ्फरनगर की गांधी कालोनी में हुआ था। पिता ने बताया था कि मनोज ने 1992 में कमीशन प्राप्त कर महार रेजिमेंट में लेफ्टिनेंट बने। उनकी पहली तैनाती जम्मू कश्मीर में हुई। कमांडो की विशेष ट्रेनिंग पाकर वह फिरोजपुर पंजाब में भेजे गए। 13 जून 1999 को कारगिल में टुरटक सेंटर में 19 हजार फीट ऊंची चोटी पर तिरंगा फहरा दिया। लेकिन उसी शाम 13 जून 1999 को दुश्मनों के तोप के गोले से मनोज तलवार शहीद हो गए। उनके पिता कैप्टन पीएल तलवार बताते थे कि मनोज तलवार में बचपन से ही सेना में जाने का जज्बा था। वह मेरा बेटा ही नहीं बल्कि पूरे देश का बेटा था जिसने शादी नहीं करने का प्रण किया और देश के खातिर अपने प्राण न्योछावर किए।

शहीद बेटे की प्रतिमा के लिए लड़ी 10 साल लड़ाई
कैप्टन पीएल तलवार ने अपने शहीद बेटे मेजर मनोज तलवार की प्रतिमा के लिए 10 साल लड़ाई लड़ी। दरअसल 2011 में मेरठ नगर निगम ने शहीद मेजर मनोज तलवार की प्रतिमा को चौराहे की सौंदर्यीकरण के चलते कमिश्नर आवास पर बीच चौराहे से हटाकर फुटपाथ पर स्थापित कर दिया था। जिसके बाद उन्होंने प्रशासन शासन और सेना के अधिकारियों से भी गुहार लगाई। लेकिन उनकी कही सुनी नहीं गई।

फरवरी 2020 में उनकी इस आवाज को प्रमुखता से मीडिया ने उठाया। उस वक्त उन्होंने बातचीत में कहा था कि मैं उस दिन अपने को खुश किस्मत मानूंगा, जिस दिन मेरे बेटे की प्रतिमा पुनः चौराहे पर ही स्थापित होगी। बाद में शहीद में शहीद मनोज तलवार की प्रतिमा चौराहे पर ही स्थापित हुई।

भास्कर की खबर से शहीद की प्रतिमा को मिला इंसाफ
शहीद मेजर मनोज तलवार की प्रतिमा के सिलापट पर बलिदान की तारीख ही गलत थी। मेजर मनोज तलवार 13 जून 1999 को शहीद हुए थे।। लेकिन प्रतिमा पर बलिदान की तारीख 23 जून 1999 थी। दैनिक भास्कर ने इसे 13 जून को प्रमुखता से उठाया। जिसके बाद सांसद राजेंद्र अग्रवाल ने नगर आयुक्त को पत्र लिखा। भास्कर की खबर के बाद ही शहीद की प्रतिमा पर बलिदान की तारीख में सुधार हुआ। अब परिवार में नवनीत तलवार पर ही जिम्मेदारी आ पड़ी है। नवनीत तलवार ने बताया कि पहले बड़े भाई मेजर मनोज तलवार कारगिल युद्ध में शहीद हुए, अब रात में पिता पीएल तलवार भी चले गए, पिता की मौत के बाद मैं पूरी तरह से टूट चुका हूं।

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