आज मेरठ में पहली बार सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी एक मंच पर पहुंचे। अखिलेश-जयंत के मंच पर पहुंचते ही भगदड़ मच गई। भीड़ ने बैरिकेडिंग तोड़ दी। दबथुआ में सपा-रालोद की जनसभा को अखिलेश यादव और जयंत चौधरी ने संबोधित किया।
पश्चिम में डूबेगा बीजेपी का सूरज
अखिलेश यादव ने कहा कि जब गठबंधन का पहला कार्यक्रम हुआ था, उसी दिन ऐलान हो गया था कि अब यूपी से बीजेपी का सफाया होगा। आज का ये जनसैलाब और जोश बता रहा है कि इस बार पश्चिम में भाजपा का सूरज डूब जाएगा। इस बार किसानों का इंकलाब होगा और 22 में बदलाव होगा।
अखिलेश ने बार-बार किसानों का जिक्र करते हुए टिकैत की तारीफ की। बीजेपी को किसान विरोधी करार दिया। कहा, 'जब-जब किसान परेशान होता है, उम्मीद हारता है, तो टिकैत बाबा उनमें नई जान फूंक देते हैं। इस बार किसान भी उनके साथ हैं और दूसरे वर्ग भी खुलकर स्वागत कर रहे हैं। आने वाले चुनाव में पूरे प्रदेश से बीजेपी का सूपड़ा साफ होना तय है। जनता ने जो परेशानी झेली है, जनता चुनाव में बदला लेगी'।
यह रैली टिकट बंटवारे से पहले सपा-रालोद की पहली संयुक्त रैली थी। इतनी बड़ी रैली में टिकटों को लेकर कुछ ऐलान भी हो सकता था। हालांकि, अभी भी दोनों पार्टियों के बीच मंथन जारी है। कुछ दिनों बाद ही सीटों का ऐलान भी कर दिया जाएगा।
जयंत बोले- शहीद किसानों के स्मारक बनवाएंगे
मेरठ में आयोजित गठबंधन की पहली रैली में रालोद मुखिया जयंत चौधरी ने भाजपा पर निशाना साधा है। जयंत चौधरी ने कहा कि भाजपा वाले पैसे देकर अपने आप को फायरब्रांड नेता कहलवाते हैं। उन्होंने कहा कि सरकार बनेगी तो सबसे पहले मेरठ में किसानों के लिए एक स्मारक हम बनाएंगे, जिससे शहीद किसानों की कुर्बानी याद रखी जाए। योगी औरंगजेब पर बात शुरू करते हैं और अंत में पलायन पर आ जाते हैं। परीक्षा में धांधली पर कहा कि पेपर दिला नहीं पाते। मजबूर होकर नौजवान दूसरे प्रदेश जाकर नौकरी ढूंढते हैं, योगी जी को ये पलायन नहीं दिखता।
जयंत ने कहा, 'बाबा जी को गु्स्सा भी बहुत आता है। कभी मु्स्कुराते नहीं हैं। आज कल राजनीति में फायरब्रांड नेता शब्द का उपयोग बहुत होता है, लेकिन ये फायरब्रांड नही हैं। एक साल किसानों का अपमान हुआ, लेकिन भाजपा के किसी भी नेता की एक शब्द भी बोलने की हिम्मत नहीं हुई। ये फायरब्रांड कैसे हुए। उन्होंने कहा कि किसानों के मामले में भाजपा को दाढ़ी भी मुंडवानी पड़ी, नाक भी कटवानी पड़ी'।
पहली बार विधानसभा चुनाव में BJP को हराने के लिए रालोद ने सपा से गठबंधन किया है। इससे पहले 2017 का विधानसभा चुनाव रालोद के मुखिया और पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी अजित सिंह ने अपने दम पर लड़ा था। 2017 के चुनाव में लोकदल को सबसे बुरे दौर का सामना करना पड़ा।
रालोद सिर्फ जाटलैंड के गढ़ छपरौली की सीट ही बचा सकी थी। 2017 के चुनाव में आरएलडी के छपरौली सीट से सहेंद्र सिंह रमाला अकेले विधायक बने, लेकिन वह भी लोकदल छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए। मौजूद समय में आरएलडी का एक भी विधायक नहीं है। ऐसे समय में लोकदल अपने वजूद का संघर्ष कर रही है।
1989 में CM की दौड़ में थे अजित सिंह
चौधरी चरण सिंह की पार्टी लोकदल की शुरूआत तो 1974 से हुई। उस समय इस पार्टी का निशान हलधर किसान था। 1977 में चौधरी चरण सिंह जनता पार्टी के सहयोग से प्रधानमंत्री बने। 3 साल बाद 1980 में जनता पार्टी टूट गई और चौधरी चरण सिंह को अलग होना पड़ा। जिसके बाद चौधरी चरण सिंह ने अलग पार्टी लोकदल बनाई और चुनाव चिन्ह था हल जोतता किसान।
1987 में चौधरी चरण सिंह के निधन के बाद एक बार फिर लोकदल संकट में फंस गई। विदेश से नौकरी छोड़कर आने वाले चौधरी चरण सिंह के बेटे चौधरी अजित सिंह के सामने पिता की विरासत संभालने का अवसर था। लोकदल पर फिर कब्जे की लड़ाई छिड़ गई। 1989 में चौधरी अजित सिंह मुख्यमंत्री की दौड़ में सबसे आगे थे।
तभी मुलायम सिंह के पक्ष में दूसरे नेताओं ने बाजी पलट दी। अजित सिंह 5 वोट से पीछे रहे और मुख्यमंत्री की कुर्सी मुलायम सिंह को मिली। अजित सिंह को पार्टी को संभालने के लिए भरसक प्रयास करने पड़े, लेकिन वेस्ट यूपी की राजनीति सपा व रालोद में बंट गई।
घटता गया लोकदल का ग्राफ
पिछले 20 साल में लोकदल का ग्राफ घटता चला गया। 2002 के विधानसभा चुनाव में लोकदल ने 14 सीटें जीतीं। 2007 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर लोकदल कमजोर हुई और 14 सीटों से घटकर इस चुनाव में 8 सीटों पर आ गई। 2012 के विधानसभा चुनाव में चौधरी अजित सिंह की पार्टी लोकदल 9 सीटें जीत सकी। 2017 में सिर्फ विधानसभा की एक सीट जीत सकी, यह सीट है छपरौली विधानसभा।
अजित सिंह की सहानभूति व किसान आंदोलन
अब अजित सिंह के बेटे जयंत चौधरी के हाथों में लोकदल की कमान है। दूसरी तरफ किसान आंदोलन भी लोकदल को नई धार दे रहा है। भले ही तीनों कृषि कानून वापस ले लिए गए हों, लेकिन जयंत चौधरी अब किसान आंदोलन के बहाने इस चुनाव में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते।
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