लखीमपुर में किसान आंदोलन में हुई हिंसा के बाद विपक्ष ने घटना का जोरदार तरीके से विरोध किया। सभी प्रमुख विपक्षी नेताओं ने लखीमपुर पहुंचने की कोशिश भी की, लेकिन यूपी पुलिस-प्रशासन ने उन्हें रास्ते में ही रोक दिया। आइये आपको बताते हैं कि कैसे किसान आंदोलन राजनीतिक रंग में रंगते-रंगते रह गया...
राकेश टिकैत की समझदारी ने माहौल बदल दिया
पूरी तरह से अराजनैतिक बना रहा यह आंदोलन लखीमपुर में हुई हिंसा के बाद राजनीतिक रंग में रंगता दिखा। लखीमपुर घटना को लेकर कांग्रेस, सपा, बसपा और रालोद किसानों के साथ उतर आए। इस दौरान एक बार को ऐसा लगा कि अब यह आंदोलन राजनीतिक रंग ले लेगा। लेकिन, यूपी सरकार की सक्रियता और भाकियू के प्रवक्ता राकेश टिकैत की समझदारी ने ऐसा नहीं होने दिया, इससे पहले कि राजनेता किसी तरह लखीमपुर पहुंच पाते, उन्होंने सरकार से बातचीत कर मामला शांत करवा दिया।
कई बार पहले भी आंदोलन राजनीतिक रंग लेते-लेते बचा
केंद्र सरकार के 3 नये कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों ने 26 जनवरी 2021 को दिल्ली में किसान ट्रैक्टर परेड निकाली। इसमें कुछ शरारती तत्वों ने माहौल बिगाड़ने का प्रयास किया। जिसके बाद एक किसान की मौत हो गई। इस दौरान भी आंदोलन राजनीतिक रंग लेते-लेते रह गया।
इसके बाद 28 अगस्त 2021 को हरियाणा के करनाल में किसान सीएम मनोहर लाल खट्टर का विरोध कर रहे थे। पुलिस ने किसानों पर लाठीचार्ज किया, तो किसान आंदोलन यूपी में भी उग्र हो गया। इसे लेकर भी खूब राजनीति हुई, लेकिन किसान नेताओं की सूझ-बूझ ने आंदोलन को राजनीतिक रंग लेने से बचा लिया।
किसान नेता नहीं चाहते कि राजनेता साथ आएं
सूत्रों की मानें तो किसान नेता भी नहीं चाहते कि विपक्ष के नेता आंदोलन में उनके साथ दिखें। 5 सितंबर 2021 को संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले मुजफ्फरनगर के जीआईसी मैदान में किसान महापंचायत हुई। इसमें किसी भी राजनीतिक दल के नेता को नहीं आने दिया गया था। महापंचायत से पहले ही संयुक्त किसान मोर्चा ने ऐलान भी कर दिया था कि किसान अपने हक की लड़ाई खुद ही लड़ेंगे। कई और मौकों पर भी किसान नेता राजनीतिक लोगों से दूरी बनाते दिखे।
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