वेस्ट यूपी में भाजपा का गढ़ कहे वाले मेरठ महानगर में भाजपा की गुटबंदी तेज होने लगी है। पार्टी हाईकमान ने 2022 के आगामी विधानसभा चुनाव में जातीय समीकरण साधने के लिए ताकत झोंक रखी है। लेकिन, मेरठ में नेताओं की गुटबंदी जातीय समीकरण पूरी तरह बिगाड़ने वाले हैं। ऐसी ही गुटबंदी के कारण 2017 के निकाय चुनाव में भाजपा से मेयर की कुर्सी खिसक कर बसपा के खाते में चली गई थी।
दिनेश खटीक के मंत्री बनने से शुरू हुई गुटबाजी
पहले कई बार भाजपा के बड़े कार्यक्रमों में आपसी गुटबाजी नजर आती रही है। लेकिन, इस बार गुटबाजी हस्तिनापुर से भाजपा विधायक दिनेश खटीक के राज्यमंत्री बनने से शुरू हुई है। हस्तिनापुर मेरठ का हिस्सा है, लेकिन हस्तिनापुर विधानसभा सीट बिजनौर में आती है।
भाजपा के कई बड़े नेता भले ही चुप्पी साधे हुए हों, लेकिन पीछे से खबर गुटबाजी की मिल रही है। यह भी कहा जा रहा है कि जिन्होंने बसपा और सपा सरकार में सड़कों पर लाठियां खाईं, वह अपनी ही सत्ता में साइड लाइन हैं।
3 विधानसभा को प्रभावित करती है मेरठ महानगर की राजनीति
मेरठ महानगर 3 विधानसभा का क्षेत्र है। मेरठ महानगर की राजनीति कैंट विधानसभा, शहर विधानसभा और दक्षिण विधानसभा की राजनीति पर सीधा असर डालती है।मौजूदा समय में मेरठ की लोकसभा सीट और 6 विधानसभा सीटें, जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी भाजपा के खाते में है। कैंट विधानसभा सीट भाजपा का गढ़ है। 1989 से ही यह सीट भाजपा के पास है।
2002 से कैंट सीट से सत्यप्रकाश अग्रवाल विधायक हैं। भाजपा से मेरठ सीट पर बीजेपी के राजेंद्र अग्रवाल 3 बार से सांसद हैं। इसके बावजूद अब जब आगामी चुनावों में 6 माह से भी कम का समय बचा है, तो मंत्रिमंडल में दिनेश खटीक को जगह दी गयी है।
2017 में अपने ही गढ़ में गंवाई महापौर की सीट
मेरठ शहर भाजपा की राजनीति का गढ़ है। 2000 के महापौर चुनाव में जहां बसपा के शाहिद अखलाक जीते। वहीं, 2004 में यह समीकरण टूट गया। भाजपा से मधु गुर्जर महापौर बनी। 2012 में फिर से भाजपा के हरिकांत अहलूवालिया महापौर बने। 2017 में भाजपा ने महापौर के लिए कांता कर्दम को मैदान में उतारा, लेकिन इस बार बसपा के पूर्व विधायक योगेश वर्मा की पत्नी सुनीता वर्मा ने भाजपा को झटका दिया और महापौर बन गईं। 2017 के निकाय चुनाव में भाजपा ने पूरे प्रदेश में 16 में से 14 महापौर चुनाव जीते, लेकिन मेरठ और अलीगढ़ की सीट भाजपा के हाथ से खिसक गई।
पूर्व प्रदेशाध्यक्ष की अनदेखी भी पड़ सकती है भारी
भाजपा के कदृावर नेता और पूर्व प्रदेशाध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेई की अनदेखी भी आगामी चुनाव में भारी पड़ सकती है। मेरठ शहर विधानसभा सीट से राजनीति करने वाले लक्ष्मीकांत 4 बार विधायक रहे हैं, 2002 में बसपा भाजपा की गठबंधन सरकार में मंत्री रहे।
वाजपेयी के प्रदेशाध्यक्ष रहते भाजपा को 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी की 80 सीटों में से 71 सीटें मिली थीं। 2017 के विधानसभा चुनाव में भी वे मुख्य भूमिका में थे, लेकिन 2017 में वह शहर सीट से चुनाव हार गए।
Copyright © 2022-23 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.