95वीं ऑस्कर सेरेमनी में पहली बार भारत को दो अवॉर्ड मिले हैं। द एलिफेंट व्हिस्परर्स बेस्ट डॉक्यूमेंट्री शॉर्ट फिल्म बनी। फिल्म RRR के गाने नाटू-नाटू ने बेस्ट ओरिजिनल सॉन्ग का अवॉर्ड जीता। द एलिफेंट व्हिस्परर्स के एसोसिएट एडिटर मेरठ के एकेश्वर चौधरी हैं। फिल्म की तरह एकेश्वर की लाइफ किसी इमोशनल स्टोरी से कम नहीं हैं।
दरअसल, किसान पिता के पास उन्हें एडिटिंग का कोर्स करवाने के लिए पैसे नहीं थे, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। कर्ज लेकर अपनी पढ़ाई पूरी की। फिर जॉब के लिए 7 साल तक लंबा स्ट्रगल किया। वह हर दिन 16-16 घंटे कंप्यूटर पर काम करते हुए गुजारते हैं। यही नहीं वह 4 साल से अपने घर नहीं आए हैं।
सबसे पहले एकेश्वर की फैमिली को जानते हैं
मेरठ दिल्ली रोड पर इरा कॉलोनी में एकेश्वर का परिवार रहता है। पिता राकेश चौधरी मूल रूप से बुलंदशहर भटौना गांव के रहने वाले हैं। कई साल पहले मेरठ आकर बस गए। पेशे से किसान हैं। मां सुमन चौधरी टीचर थीं और अब परिवार संभालती हैं।
एकेश्वर 2 भाई हैं। बड़े एकेश्वर हैं, पत्नी लक्ष्मी और एक बेटा सुमेर है। जो मुंबई में एकेश्वर के साथ ही रहते हैं। छोटा भाई क्षितिज चौधरी हैं। क्षितिज भी अपनी पत्नी और बेटी के साथ मुंबई में रहते हैं। क्षितिज मॉडल, अभिनेता हैं। उनकी पत्नी रिलायंस में जॉब करती हैं।
कॉलेज से जिद पकड़ ली एडिटर बनना है
राकेश बताते हैं कि बेटे ने मेरठ के ट्रांसलेम एकेडमी से आर्ट्स से 12वीं किया। इसके बाद इंदौर से ग्रेजुएशन किया। मैं चाहता था वह MBA करके अच्छी जॉब करे। लेकिन उसको शुरू से मीडिया, राइटिंग में इंटरेस्ट था।
शुरुआती टाइम में कुछ फोटो और मूवी एडिट करता रहता था। लेकिन ऐसा कभी नहीं लगा कि वह यही पेशा अपनाएगा। मगर, ग्रेजुएशन के बाद उसने जिद पकड़ ली कि फिल्म लाइन में जाना है। हमने काफी समझाया लेकिन वो माना नहीं।
दादा से कुछ सपोर्ट मिला तो चल पड़े
राकेश बताते हैं कि मैंने उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन उसने मेरी एक न सुनी और फिल्म लाइन में करियर बनाने की ठान ली। इसमें मेरे पिता राजपाल सिंह चौधरी ने उसका साथ दिया। इसके बाद एकेश्वर ने पहले अहमदाबाद के मुद्रा इंस्टीट्यूट में एडमिशन लेकर वहां एक साल का एडिटिंग कोर्स किया।
फिर गुड़गांव की एक कंपनी में एडिटिंग का जॉब करने लगा। इस दौरान बेटे को लगा कि कुछ अच्छा और बड़ा करना है। इसे करने के लिए उसे एडवांस कोर्स और ट्रेनिंग की जरूरत थी। फिर उसने तय किया कि मुंबई में सुभाष घई के संस्थान विसलिंग वुड से एडिटिंग कोर्स करना है।
16 लाख का लोन लेकर एडिटिंग सीखी
बेटे की सफलता पर मां सुमन इमोशनल हो गईं। वह कहती हैं कि बेटे ने काफी चुनौतीपूर्ण फील्ड चुना, लेकिन आज उन्हें अपने बेटे की कामयाबी पर गर्व हो रहा है। उसने इतने अप-डाउन देखे हैं कि मैं बता नहीं सकती। एकेश्वर को विसलिंग वुड में क्रिएटिव डायरेक्टर के कोर्स में एडमिशन लेना था। इसकी फीस 16 लाख रुपए थी।
मुंबई में रहना, खाना दूसरे खर्चे अलग। इन खर्चों को उठाना हमारे लिए संभव नहीं था। हम मुंबई में रहने खाने का खर्च दे सकते थे। लेकिन 16 लाख फीस नहीं दे सकते थे, लेकिन बेटे ने हार नहीं मानी और 16 लाख का लोन लेकर एडमिशन लिया। एडिटिंग कोर्स पूरा किया।''
मुंबई में काफी स्ट्रगल किया
सुमन कहती हैं, ''3 साल के कोर्स के बाद फिर वहीं फिल्मों और सीरियल की एडिटिंग करने लगा। कुछ कहानियां भी लिखीं, तबसे अब तक लगातार एडिटिंग कर रहा है। अपनी एक फिल्म भी बनाई और भी काफी प्रोजेक्ट्स उसने किए हैं।
'हसबैंड से सारी शिकायतें दूर हो गईं'
लक्ष्मी ने दैनिक भास्कर से वीडियो कॉल पर बात करते हुए कहा कि आज बहुत खुश हूं। उसने बहुत मेहनत की है। वो बहुत ज्यादा काम करता है। मुझे हर रोज उससे शिकायत रहती है कि मुझे और बेटे को वक्त नहीं देते। हर समय बस काम। 12 से 16 घंटे वो अपने सिस्टम पर काम में गुजार देते हैं। लेकिन आज इस अवॉर्ड के बाद मुझे कोई शिकायत नहीं। आइ एम प्राउड ऑन यू सनी। 5 साल से सनी इस मूवी पर दिनरात काम कर रहे थे।
ऑस्कर की खुशी में खाना भी भूले
लक्ष्मी कहती हैं कि एकेश्वर ने ऑस्कर के स्ट्रेस में 3 दिन से ढंग से खाना नहीं खाया। सोमवार को तो हमारे यहां खाना ही नहीं बना, किसी ने कुछ नहीं खाया। ऑफिस की टीम सेलिब्रेट कर रही है। शाम को घर पर केक काटकर सेलिब्रेट किया। लेकिन पूरा दिन एकेश्वर ने किसी से ज्यादा बात नहीं की।
टेरेस गार्डन पर बनाई एक डॉक्यूमेट्री
इस कॉल के बाद एक बार फिर उनकी मां से बात शुरू हुई। उन्होंने कहा कि वो बहुत शर्मीला है। 4 साल से अपने प्रोजेक्ट के कारण घर भी नहीं आया। अब मई में आने को कहा है। उसे जंगल, फूल, पत्ते, नेचर से बहुत प्यार है। अपनी एक मूवी द अरबन गार्डन बना चुका है। वो भी शॉर्ट मूवी है। उसमें टैरेस गार्डन की स्टोरी है। एकेश्वर को मैथ्स से घबराहट होती है इसलिए उन्होंने कोई टफ सब्जेक्ट की पढाई नहीं की।
मूवी के टॉप 5 में आने के बाद से स्ट्रेस में थे
मां कहती हैं कि जिस दिन मूवी ऑस्कर के टॉप 5 नॉमिनेशन में आई, तभी से वो बहुत ज्यादा स्ट्रेस में था। वो ठीक से बात नहीं कर रहा था। हमें भी बस इतना बताया कि टॉप 5 में फिल्म आ गई है। हम भी प्रार्थना कर रहे थे कि ऑस्कर मिल जाए।
जब अवॉर्ड अनाउंस हुआ तो उसने सुबह सबसे पहले हमें वीडियो कॉल किया। बताया कि मां, मेरा सपना पूरा हो गया। उसकी आंखें भी नम थीं। मैं भी खुद को नहीं रोक सकी। उसे भी अवॉर्ड सेरेमनी में लॉस एंजेल्स जाना था, लेकिन वीजा की दिक्कतों के कारण सेरेमनी में नहीं जा पाया।
खबर के आखिर में आपको एकेश्वर का प्रोफाइल भी बताते हैं...
नाम : एकेश्वर चौधरी
विवाह : 20 जनवरी 2010
शिक्षा : 12 th ट्रांसलेम अकादमी इंटरनेशनल मेरठ
क्रिएटिव डायरेक्टर कोर्स : whistling woods institute सुभाष घई का
गुनीत मोंगा ने किया है डॉक्यूमेंट्री का डायरेक्शन
ऑस्कर अवॉर्ड जीतने वाली 'द एलिफेंट व्हिस्परर्स' नेटफ्लिक्स डॉक्यूमेंट्री है। जो एक अकेले छोड़ दिए गए हाथी और उनकी देखभाल करने वालों के बीच अटूट बंधन की कहानी बताती है। ऑस्कर अवॉर्ड में यह हाउ डू यू मेजरमेंट ए ईयर?, हॉलआउट, स्ट्रेंजर एट द गेट और द मार्था मिशेल इफेक्ट के साथ डॉक्यूमेंट्री शॉर्ट सब्जेक्ट कैटेगरी में थी। इसका डायरेक्शन गुनीत मोंगा ने किया है।
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