मिर्जापुर नगर में एक दशक तक बंद रहा खादी ग्रामोद्योग बोर्ड का कंबल कारखाना खुलने से कामगारों के चेहरे पर चमक उभर आई है। कारखाने में काम करने वाले श्रमिकों का कहना है कि अब घर पर ही काम मिलने से उन्हें भटकना नहीं पड़ेगा। इस कारखाने में गोरखपुर, गाजीपुर, अमेठी और मिर्जापुर में बने कंबल की फिनिशिंग की जाती है। इसके बाद इसकी आपूर्ति की जाती है।
एक दशक तक बंद था कारखाना
कभी सेना के लिए कंबल बनाने और आपूर्ति करने वाला कंबल कारखाना एक दशक तक बंद रहा। अब एक बार फिर कारखाने के खुलने और काम मिलने से स्थानीय कारीगरों में खुशी है। अपने ही जिले में काम मिलने से अब उन्हें रोटी की जुगाड़ में भटकना नहीं पड़ेगा। अपने ही जिले में काम मिलने और परिवार के साथ रहने से कारीगर खुश हैं।
सरकार को भी अच्छी क्वालिटी का कंबल लोगों को उपलब्ध कराने का मौका मिल रहा है। करीब एक दशक तक मिर्जापुर में खादी ग्रामोद्योग बोर्ड का कंबल कारखाना बंद होने के बाद एक बार फिर पटरी पर लौट आया है। कभी सेना के जवानों के लिए कंबल बनाने वाले कारीगर फिर काम मिलने से खुश हैं।
यहां कंबलों की होती है फिनिशिंग
जिला ग्रामोद्योग अधिकारी ध्यानचंद ने बताया कि इस कारखाने में कम्बल की बुनाई के अलावा गोरखपुर, गाजीपुर, अमेठी में बने कंबल का फिनिशिंग किया जाता हैं । इसके बाद उन्हें आर्डर के मुताबिक भेजा जाता हैं । वर्तमान में पांच हजार पांच सौ कम्बल तैयार किया जा चुका है । अपने जिले में काम मिलने से कारीगर भी खुश हैं ।
घर पर ही काम मिलने से कारीगर खुश
जिले का इकलौता कंबल कारखाना बंद होने से काम की तलाश में दूसरे प्रदेश जाने के लिए विवश कारीगर अब घर पर ही काम मिलने से खुश हैं। उनका कहना है कि अगर अपने जिले में ही काम मिलने लगे और दो वक्त के रोटी कपड़ा का जुगाड़ हो जाए तो कोई भी बाहर जाकर भटकना पसंद नहीं करेगा। कंबल कारखाना खुलने और काम मिलने से तौहीद अंसारी, मंसूर अली, जावेद और इमरान आदि खुश हैं।
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