मिर्जापुर के बरकछा स्थित बीएचयू साउथ कैंपस के सभागार में आरोग्य भारती के तत्वावधान में एक दिवसीय स्वास्थ्य संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें वक्ताओं ने मुख्य अतिथि राष्ट्रीय संगठन सचिव डॉ. अशोक वार्ष्णेय ने बताया कि तमाम रोगों का निवारण मोटे अनाज में समाहित हैं। जिसे आम लोगों से दूर कर दिया गया हैं। इसे अपना कर ही तमाम विकारों से मुक्ति पा सकते हैं।
उन्होंने कहा कि वर्तमान वैश्विक स्वास्थ्य की समस्या का समाधान हमारे खानपान में समाहित है। मोटे अनाज का उपयोग करके हम स्वास्थ्य की कई समस्या से निजात पा सकते हैं। वर्तमान में 85% नॉन कम्युनिकेबल डिजीज का मुख्य कारण जीवन शैली हैं। डॉ. गणेश प्रसाद अवस्थी ने बताया कि कृषि प्रधान देश में कभी ज्वार, बाजरा, रागी, सावां, कंगनी, चीना, कोदो, कुटकी और कुट्टू की खेती बड़े ही लगन से किया जाता था। इसे आम बोलचाल में मोटा अनाज कहा जाता है।
काफी मात्रा में होते हैं फाइबर
उसकी जगह अब मांग के अनुरूप पुश्तैनी खेती अब गेंहू, धान, दलहन के बीच सिकुड़ गई थी। मोटा अनाज जिसे वैज्ञानिक मीलेट कहते हैं। अल्पमात्रा में सिकुड़ गया है। इसी के साथ तमाम रोग पांव पसारते जा रहे है। डॉ. टीएन द्विवेदी ने बताया कि मोटे अनाजों में मिनरल, विटामिन, एंजाइम और इनसॉल्युबल फाइबर काफी ज्यादा मात्रा में होते हैं। इसमें मैक्रो और माइक्रो जैसे पोषक तत्व भी मौजूद होते हैं। इनका सेवन करने से बीटा-कैरोटीन, नाइयासिन, विटामिन-बी6, फोलिक एसिड, पोटेशियम, मैग्नीशियम, जस्ता आदि खनिज लवण भी प्रचुर मात्रा में मिल जाता हैं।
स्वस्थ रहने के लिए होती है जरूरत
इसकी जरूरत स्वस्थ रहने के लिए होती है। कार्यक्रम में डॉ. संदीप श्रीवास्तव, डॉ. विवेक सिंह आदि ने मोटे अनाज के उद्देश उपयोग, पोषण के गुणवत्ता पर विचार व्यक्त किया। कार्यक्रम समन्वयक डॉ. एमके नंदी ने आभार प्रकट किया। अध्यक्षता प्रोफेसर डॉ. वी. के. मिश्रा ने की। कार्यक्रम में बीएचयू साउथ कैंपस के छात्र-छात्राओं ने पोस्टर के माध्यम से मोटे अनाज की उपयोगिता को प्रदर्शित किया। इस मौके पर डॉ. अविनाश पांडेय और डॉ. राजेश मिश्रा समेत छात्र छात्राएं उपस्थित रहे। संचालन डॉ. प्रज्ञा मिश्रा एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. अशोक यादव ने किया।
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