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बदायूं के मेवली गांव में एक घर की दहलीज पर बैठी बुजुर्ग महिला हर आने-जाने व्यक्ति के सामने हाथ जोड़कर अपनी बेटी को इंसाफ दिलाने की गुहार लगा रही है। वह महिला कोई और नहीं गैंगरेप पीड़ित मृतका की मां है। उन्होंने कहा, ‘हम हम थाने में रोते रहे। गिड़गिड़ाते रहे, लेकिन हमारी सुनवाई नहीं हुई।’ यह कहते-कहते उनकी आंखों में आंसू आ गए।
यह पहला मामला नहीं है, जहां UP पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठे हैं। बीते 4 साल में उन्नाव गैंगरेप केस, फिर हाथरस मामला और अब बदायूं गैंगरेप-मर्डर केस। वारदात के नाम सिर्फ महिलाओं के नाम बदले, जगह बदली, नहीं बदली तो UP पुलिस। हर जगह पुलिस ने पीड़ित परिवार की आवाज दबाने की कोशिश की और अपराधियों को संरक्षण देते नजर आए। पढ़ें एक रिपोर्ट...
केस 1: उन्नाव गैंगरेप केस
4 जून 2017 को उन्नाव की एक लड़की ने तब विधायक रहे कुलदीप सिंह सेंगर पर गैंगरेप का आरोप लगाया। इसके बाद पीड़ित अचानक लापता हो गई। 16 दिन बाद वह 20 जून को औरैया से मिली। 22 जून को उसका मजिस्ट्रेट के सामने बयान हुआ। पीड़ित ने आरोप लगाया कि पुलिसकर्मियों ने उसे सेंगर का नाम नहीं लेने दिया। आखिरकार 8 जुलाई 2018 को पीड़ित ने सीएम आवास के बाहर खुद को जलाने करने की कोशिश की।
इसके बाद मामला सुर्खियों में आया। लेकिन इसके बाद पीड़ित के पिता को थाने में इस कदर पीटा गया कि उनकी मौत हो गई। 12 अप्रैल को मामला CBI तक पहुंचा। विधायक सेंगर आरोपी बने और 13 अप्रैल को उसकी गिरफ्तारी हुई। 20 दिसंबर 2019 को दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट ने सेंगर को उम्रकैद की सजा सुनाई। पीड़ित को इंसाफ पाने में दो साल लगे। इस बीच उसे पिता, मौसी, चाची, ड्राइवर और वकील की जान गंवानी पड़ी।
केस 2: हाथरस गैंगरेप केस
हाथरस के बुलगढ़ी गांव की यह घटना 14 सितंबर 2020 की है। पीड़ित अपनी मां के साथ खेत गई थी, तभी उसके साथ गैंगरेप हुआ और बुरी तरह पीटा गया। पीड़ित ने थाने में ही बयान दिया था कि उसके साथ गलत हुआ है। लेकिन घटना के 5 दिन बाद पुलिस ने भाई की शिकायत और स्थानीय नेताओं के दबाव पर मुख्य आरोपी संदीप को गिरफ्तार किया। मामला सुर्खियों में आया तो 22 सितंबर को पीड़ित का पुलिस ने बयान लिया तो उसने तीन और आरोपियों के नाम बताए। इसके बाद पुलिस ने तीनों को पकड़ा।
29 सितंबर को पीड़ित ने दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में दम तोड़ दिया। पुलिस ने जबरन रात में ही उसके शव का अंतिम संस्कार कर दिया। उत्तर प्रदेश सरकार पर सवाल उठने के बाद CM योगी आदित्यनाथ ने घटना की CBI जांच की सिफारिश की। इस मामले में 6 पुलिसकर्मियों समेत तत्कालीन SP को भी निलंबित किया गया था। लेकिन, पुलिस पर लापरवाही के आरोप में केस दर्ज नहीं हुआ। आखिरकार CBI ने अपनी चार्जशीट में कहा कि पीड़ित का बयान सच्चा था। उसके साथ गैंगरेप हुआ था।
केस 3: बदायूं गैंगरेप केस
उघैती थाना क्षेत्र की रहने वाली 50 साल की एक महिला 3 जनवरी को शाम 6 बजे मंदिर में पूजा करने गई थी। दो-तीन घंटे बीत जाने के बाद भी जब वह घर नहीं लौटी तो घर वाले थाने गए, लेकिन पुलिस ने रात 11 बजे तक उनकी कोई बात नहीं सुनी। आरोपी दरवाजे की कुंडी खटखटा कर महिला का शव फेंककर फरार हो गए। आरोपियों ने जाते समय बताया कि महिला कुएं में गिर गई थी, जबकि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में पीड़ित के प्राइवेट पार्ट में लोहे की रॉड और कपड़ा डालने जैसी बात सामने आई। अब तीनों आरोपियों की गिरफ्तारी हो चुकी है। यहां भी घटना के दो दिन बाद FIR दर्ज की गई। आला अधिकारी मौके पर नही पहुंचे, जिससे मुख्य आरोपी को फरार होने का मौका मिल गया।
बड़ी घटनाओं से सीख नहीं ले रही है UP पुलिस: पूर्व DGP
UP के पूर्व पुलिस महानिदेशक (DGP) विक्रम सिंह कहते हैं कि UP पुलिस बड़ी घटनाओं से सबक नहीं लेती। आप उन्नाव कांड से हाथरस कांड और अब बदायूं कांड तक देखें तो तीनों ही केस में अनुभवहीनता ही नजर आती है। वह (पुलिस) गलतियों पर गलतियां किए जा रही है। इसके 4 कारण हैं...
‘निर्भया कांड के बाद बने नियमों को अप्लाई नहीं करना भी ऐसी वारदातों को बुलावा’
विक्रम सिंह यह भी कहते हैं कि निर्भया कांड के बाद धारा 166 A बनाई गई थी। इसके मुताबिक, ऐसे मामलों में जो पुलिसकर्मी या अफसर लापरवाही बरते, उस पर लागू किया जाना था। दरअसल, धारा 166A के मुताबिक जो अधिकारी या पुलिसकर्मी रेप या गैंगरेप जैसे मामलों में लापरवाही बरतता है, उस पर जुर्माना या फिर उसके खिलाफ केस कर जेल तक भेजा जा सकता है। लेकिन उन्नाव, हाथरस केस में भी सिर्फ निलंबन (सस्पेंड) हुआ। अब बदायूं गैंगरेप केस में घटना के 5वें दिन तत्कालीन थाना प्रभारी और दरोगा पर केस दर्ज किया गया है। वह भी शासन और मीडिया के दबाव के चलते। यह लापरवाही ही इस तरह की घटनाओं को बुलावा देती है।
‘लीडरशिप की लापरवाही ही ऐसी घटनाओं को जन्म देती है’
BBC के सीनियर जर्नलिस्ट समीरात्मज मिश्रा कहते हैं कि इस तरह के केस इसलिए भी बढ़ रहे हैं, क्योंकि UP के जिलों में अफसरों को उनकी काबिलियत नहीं, बल्कि जाति और उनका प्रेशर देख कर चार्ज दिया जाता रहा है। यह किसी से छिपा या ढका नहीं है। साथ ही आला अधिकारियों की लापरवाही इस तरह के केस को बड़ा करने में मदद करती है। UP के जिला प्रशासन को बड़ी घटना में किसी भी सरकार के समय देख लीजिए वह हमेशा प्रेशर में काम करता है।
अब बदायूं कांड में ही सोमवार शाम में FIR दर्ज हुई, लेकिन जिले के कप्तान (SSP) थाना प्रभारी की ही भाषा बोलते रहे। उन्होंने घटनास्थल तक आना भी उचित नहीं समझा। जब मामला मीडिया में हाइलाइट हुआ तो वे आनन फानन में भागे। इस मामले में सिर्फ थाना प्रभारी को निलंबित किया गया, लेकिन जिम्मेदारी तो आला अधिकारियों की भी है।
बदायूं कांड पर 7 सवाल
बदायूं के सीनियर जर्नलिस्ट चितरंजन सिंह कहते हैं कि बदायूं कांड में शुरुआती दौर में पुलिस ने लापरवाही ही की है।
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