हिजाब विवाद पर इस्लामिक तालीम के दोनों बड़े स्कूल देवबंद और बरेलवी के 4 रिसर्च स्कॉलर्स ने अपनी बात रखी है। उन्होंने इस विवाद को भारत के सामाजिक तानेबाने को बिगाड़ने वाला कहा है। कुरान शरीफ की आयतों का हवाला देते हुए उन्होंने हिजाब को मुस्लिम लड़कियों के जायज ठराते हुए कुछ सवाल भी उठाए हैं। आइए एक-एक करके चलते हैं…
रिसर्च स्कॉलर 1ः ‘निजी मामलों में दखलअंदाजी से सोशल स्ट्रक्चर बिगड़ेगा’
देवबंद से इस्लामिक स्कॉलर रहे डॉ. अलाउद्दीन काशमी बताते हैं, “कुरान शरीफ के 22वें पारे के सूर्य अहजाब के 59 आयत में लिखा है कि महिलाओं को अपने सिर ढंककर रखना चाहिए।” उन्होंने कहा, “आजादी के बाद से देश में इस तरह की बहस पहली बार देखी। आज तक हमारे विश्वास और हमारी मर्जी पर सवाल नहीं पूछा गया था। लेकिन अब निजी मामलों में दखलंदाजी बढ़ी है। ये भारत के सोशल स्ट्रक्चर को बिगाड़ देगा।”
रिसर्च स्कॉलर 2ः “क्या दुपट्टा भी बैन करेंगे”
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में रिसर्च स्कॉलर सैयद शाहबाज ने कहा, “पहनावा हर धर्म के लोगों का निजी मामला है चाहे वो हिजाब हो, दुपट्टा हो या कुछ और हो। जैसे हमारी हिन्दू बहनें दुपट्टा पहनती हैं ठीक उसी तरह से मुस्लिम लड़कियां हिजाब पहनती हैं। क्या दुपट्टे पर बैन लगवाया जाएगा।” सैयद देवबंद से हैं।
“रिसर्च स्कॉलर 3ः हिजाब का विरोध करने वाले संविधान के खिलाफ”
देवबंद के उलेमा मुफ़्ती असद कासमी ने कहा, “हमारा संविधान हमें अपने मजहब पर अमल करने की पूरी आजादी देता है। हमारे मजहब में हिजाब की रिवाज है। ऐसा करने से रोकने वाले संविधान के खिलाफ हैं।”उन्होंने कहा, “कर्नाटक के कुछ शरारती लड़कों की करतूत को कुछ लोग यूपी चुनाव में भी भुनाने में लगे हुए हैं। इस मुद्दे को धार्मिक रंग देने वालों को उम्मीद होगी कि इससे फायदा होगा। लेकिन हमें मिलकर उन्हें गलत साबित कर देना चाहिए।”
रिसर्च स्कॉलर 4ः हिजाब औरत का आबरू छिपाने का लिबास, ऐतराज कैसा
बरेलवी धर्मगुरु मौलाना शहाबुद्दीन रिजवी ने कहा, "मैंने कर्नाटक के मुख्यमंत्री को लेटर लिखा है। मैंने उनसे विवाद को जल्द से जल्द खत्म कराने की मांग की है। मेरा मानना है कि हिजाब औरत के लिए अपनी आबरू और अपने जिस्म को छुपाने का एक लिबास है। उस लिबास पर किसी तरीके का कोई एतराज नहीं होना चाहिए।"उन्होंने कहा "हमारे यहां हिंदुस्तान में यह चल रहा है कि औरतें चाहे वह हिंदू हो या मुस्लिम अपने चेहरे को ढकने के लिए लिबास पहनती थी। लेकिन अब यूरोपियन कल्चर के हावी होने से ऐसा कम होता है।"
-ये स्टोरी विकास सिंह ने की है। वह दैनिक भास्कर ऐप के साथ इंटर्न कर रहे हैं।
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