राजनीति के किरदार और किस्से सीरीज की पहली कहानी में हमने योगी आदित्यनाथ के संन्यासी बनने के बाद घर जाकर भिक्षा मांगने की बताई थी। आज की कहानी उनके कॉलेज से जुड़ी है। वह ABVP से चुनाव लड़ना चाहते थे, पर टिकट नहीं मिला। जीजा ने वामपंथी दल में जोड़ना चाहा, पर नहीं जुड़े। निर्दलीय लड़े और हार गए। कमरे में रखा सारा डॉक्युमेंट और नोट्स चोरी हो गया। पुलिस के पास गए, पर FIR नहीं दर्ज हुई। बिना पढ़े परीक्षा दी और पास हो गए।
पहले शाखा जाते थे, कॉलेज में आए तो ABVP से जुड़ गए
योगी आदित्यनाथ ने 8वीं तक पढ़ाई गांव के ही पास ठांगर के प्राइमरी स्कूल से की। 9वीं की पढ़ाई के लिए उन्होंने चमकोटखाल के जनता इंटर कॉलेज को चुना। इंटर की पढ़ाई के लिए वह ऋषिकेश गए। बड़े भाई मानवेंद्र के साथ कमरा लिया और भरत मंदिर इंटर कॉलेज से पढ़ाई पूरी की। मानवेंद्र उस वक्त बीए कर रहे थे।
इसके बाद योगी दोबारा अपने जिले पौड़ी गड़वाल लौटे। 1989 में कोटद्वार के गवर्नमेंट पीजी कॉलेज में बीएससी में एडमिशन ले लिया। विषय थे मैथ्स, फिजिक्स और केमिस्ट्री। क्लास में कुल 72 छात्र थे। इसमें मात्र 3 लड़कियां और 69 लड़के थे। कॉलेज की छात्र राजनीति से योगी बहुत प्रभावित हुए और ABVP से जुड़ गए। इस दौरान वह रेगुलर आरएसएस की शाखा भी जाने लगे।
जीजा ने वामपंथी संगठन में जुड़ने का ऑफर दिया पर योगी नहीं गए
योगीगाथा नाम की किताब में शांतनु गुप्ता लिखते हैं, “योगी आदित्यनाथ की बहन कौशल्या के पति और उनके भाई कोटद्वार में वामपंथी संगठन से जुड़े थे। जीजा के भाई ने कॉलेज में आदित्यनाथ को ऑफर दिया कि वह भी वामपंथी संगठन स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया यानी SFI ज्वाइन कर लें। हालांकि, योगी आदित्यनाथ ने मना कर दिया और ABVP में ही सक्रिय रूप से काम करते रहे। ABVP जॉइन करवाने में प्रमोद रावत उर्फ टुन्ना का का अहम योगदान रहा।”
ABVP ने टिकट नहीं दिया तो निर्दलीय चुनाव लड़े पर हार गए
पहले साल उन्होंने एबीवीपी के लिए प्रचार किया। दूसरे साल खुद भी चुनाव लड़ने की तैयारी कर ली। उन्हें लगता था कि पहाड़ी छात्रों की आवाज को दबाया जा रहा है। उन्हें प्रतिनिधित्व नहीं मिल रहा है। एबीवीपी से सचिव पद के लिए टिकट मांगा पर संगठन ने अगले साल देने की बात कह दी। योगी आदित्यनाथ ने संगठन पर भरोसा जताए रखा और पढ़ाई के साथ-साथ संगठन के लिए प्रचार करते रहे।
1991 में वह थर्ड ईयर में पहुंच गए। इसबार पूरा मन बना लिया था कि चुनाव लड़ना है। संगठन के बाद सचिव पद के लिए दो नाम पहुंचे। पहला योगी आदित्यनाथ का दूसरा पद्मेश बुडलाकोटी का। संगठन ने दोनों में से किसी को टिकट न देकर दीप प्रकाश भट्ट को प्रत्याशी बना दिया। आदित्यनाथ बगावत पर उतर गए और निर्दलीय ही चुनाव मैदान में उतर गए। योगी आदित्यनाथ चुनाव हार गए। एबीवीपी के दीप प्रकाश भट्ट भी हार गए। जीत मिली अरुण तिवारी को।
जिस दिन टूर जाने वाले थे उसके एक रात पहले सारा सामान चोरी हो गया
"यदा यदा हि योगी" किताब में विजय त्रिवेदी लिखते हैं, “जनवरी 1992 में कॉलेज का एक टूर तारकेश्वर जाने वाला था। जिस दिन टूर था, उसी के ठीक एक दिन पहले रात में योगी आदित्यनाथ के कमरे में चोरी हो गई। उनके पूरे डाक्युमेंट और जरूरी नोट्स गायब कर दिया गया। वह सुबह टूर जाने के बजाय थाने पहुंचे। पुलिस ने कोई मामला दर्ज नहीं किया और वापस जाने को बोल दिया। योगी वापस चले आए। बिना नोट्स के वह थर्ड ईयर की परीक्षा देने पहुंचे। पास हो गए।”
योगी की दो जीवनी है, दोनों में Msc की पढ़ाई को लेकर दो अलग बात लिखी है
1992 में आदित्यनाथ ऋषिकेश के पंडित ललित मोहन शर्मा गवर्नमेंट पी.जी कॉलेज में Msc में एडमिशन ले लिया। तभी उनका गोरखपुर आना-जाना शुरू हो गया। उस वक्त वह गोरक्षपीठाधीश्वर महाराज अवैद्यनाथ से मिले। यहीं से उनका पढ़ाई से मोह भंग हो गया और वह संन्यासी बन गए। उनके संन्यासी बनने की कहानी हमने पिछली स्टोरी में बताया है। हालांकि, यहां योगी आदित्यनाथ की जीवन पर किताब लिखने वाले विजय त्रिवेदी और शांतनु गुप्ता ने अलग-अलग लिखा है। विजय बताते हैं कि योगी गोरखपुर यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेने आए थे, लेकिन सर्टिफिकेट नहीं होने के कारण एडमिशन में दिक्कत आ रही थी तब महाराज अवैद्यनाथ से मिले।
शांतनु गुप्ता अपनी किताब में लिखते हैं कि वह ऋषिकेश में एडमिशन ले चुके थे। हालांकि, कई बार गोरखपुर आना हुआ तो वह महाराज से प्रभावित हुए और पढ़ाई छोड़ दी।
कॉलेज में किसी लड़की के साथ फोटो नहीं खिंचवाते थे योगी
आदित्यनाथ के क्लास में जो तीन लड़कियां थी बबिता राणा, सरस्वती रावत और आरती ढौंढियाल। बबिता इस वक्त शिक्षिका हैं। उन्होंने पुराने दिनों को याद करते हुए बताया, "एक बार कॉलेज की तरफ से सभी मसूरी टूर पर गए थे। वहां सभी एक दूसरे के साथ फोटो खिंचवा रहे थे लेकिन आदित्यनाथ ने किसी भी लड़की के साथ फोटो नहीं खिंचवाया।"
बबिता कहती हैं, "आदित्यनाथ उस वक्त कोई अट्रैक्टिव पर्सनालिटी नहीं थे। पढ़ाई में भी औसत ही थे। अपने क्लास की लड़कियों से तो बात कर लेते थे लेकिन बायोलॉजी डिपार्टमेंट की किसी लड़की से कोई बात नहीं करते थे। यही कारण है कि दूसरे डिपार्टमेंट की लड़कियां आदित्यनाथ को कॉलेज से ज्यादा सांसद बन जाने के बाद जान पाई।"
लड़की के आंसू देखकर बस के आगे खड़े हो गए आदित्यनाथ
शांतनु गुप्ता ने योगी आदित्यनाथ की लाइफ पर योगीगाथा नाम से किताब लिखी है। उसमें उन्होंने बबिता की बताई एक कहानी को शामिल किया है। बबिता बताती हैं, “कॉलेज के पहले साल में हम सभी संयुक्त सचिव पद के लिए खड़ी हुई सरस्वती रावत के लिए प्रचार कर रहे थे। प्रचार करते-करते कॉलेज से दूर दुग्गड़ा पहुंच गए। शाम के 6 बज गए और कोई भी बस हमारे लिए रुक नहीं रही थी। हम बहुत परेशान हो गए।”
बबिता ने आगे बताया, बस नहीं रुकते देख मैं रोने लगी, तभी आदित्यनाथ उठे और अपनी सुरक्षा की चिंता न करते हुए सामने से आ रही बस के सामने खड़े हो गए। बस उनके एकदम नजदीक आकर रुकी। सभी बस पर चढ़ गए और कंडक्टर से विनती की कि हम लोग पैसा देंगे हमें आगे ले चलिए। ऐसा इसलिए कहना पड़ा क्योंकि वह जगह बिना पैसा दिए यात्रा करने के लिए मशहूर थी।”
गरीबों का इलाज न होता देख अस्पताल में करवा दिया हंगामा
योगी आदित्यनाथ के ही जीवन पर पत्रकार विजय त्रिवेदी ने “यदा यदा हि योगी” नाम से किताब लिखी है। उसमें उन्होंने लिखा, एक बार आदित्यनाथ बीमार हुए तो अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा। अस्पताल में योगी ने देखा कि गरीब मरीजों का कोई ख्याल ही नहीं रखा जा रहा है। उन्होंने इसकी सूचना कॉलेज में पहुंचाई तो बहुत सारे लड़के इकट्ठा होकर हंगामा करने लगे। नतीजा ये रहा कि वहां सभी का इलाज सही से होने लगा।
योगी आदित्यनाथ अब पूरी तरह से बदल गए हैं। उनके अंदर पहले जैसा संकोच नहीं रहा। वह खुलकर अपनी बातें रखते हैं। महिलाओं के साथ फोटो खिंचवाते हैं। उनसे उनके मुद्दे पूछते हैं। अधिकारियों को आदेश देते हैं।
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