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हैप्पी बर्थडे CM योगी:मां की बात मानते तो नौकरी करते, बहनोई की मानते तो वामपंथी; गुरु की मानी इसलिए मुख्यमंत्री बने आदित्यनाथ

एक वर्ष पहलेलेखक: राजेश साहू
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योगी आदित्यनाथ 50 साल के हो गए। जब वह 20 साल के थे तब न सांसद बनने का सोचा था और न मुख्यमंत्री। मां और पिता चाहते थे कि बेटा B.Sc के बाद M.Sc करके नौकरी करे। कॉलेज टाइम में बहनोई चाहते थे कि उनका साला वामपंथी बने। योगी को गुरू अवैद्यनाथ मिले और वे आज यूपी के मुख्यमंत्री हैं।

राजनीति के किरदार और किस्से सीरीज की यह स्पेशल स्टोरी योगी के जीवन पर है। उनके अजय बिष्ट से योगी आदित्यनाथ बनने की कहानी है। हमने इसमें फोटो के साथ उनके कोट्स लगाए हैं।

12वीं तक की पढ़ाई के लिए तीन स्कूल बदले
महंत बनने से पहले योगी आदित्यनाथ का नाम अजय बिष्ट था। आगे स्टोरी में हम इसी नाम के साथ आगे बढ़ेंगे। 5 जून 1972 को उत्तराखंड के पौड़ी गड़वाल जिले के पंचूर गांव में अजय बिष्ट का जन्म हुआ। 8वीं तक की पढ़ाई पास के ठांगर के प्राइमरी स्कूल से की। 9वीं की पढ़ाई के लिए चमकोटखाल के जनता इंटर कॉलेज को चुना। इंटर की पढ़ाई के लिए ऋषिकेश गए। भरत मंदिर इंटर कॉलेज से पढ़ाई पूरी की।

कॉलेज पहुंचे तो बहनोई ने वामपंथी पार्टी से जुड़ने का ऑफर दे दिया
1989 में अजय ने कोटद्वार के गर्वनमेंट पीजी कॉलेज में B.Sc में एडमिशन ले लिया। विषय चुना मैथ्स, फिजिक्स और केमिस्ट्री। पढ़ाई के साथ वे कॉलेज की छात्र राजनीति में भी उतर गए।

योगीगाथा नाम की किताब में शांतनु गुप्ता लिखते हैं, 'अजय बिष्ट की बहन कौशल्या के पति और उनके भाई कोटद्वार में वामपंथी संगठन से जुड़े थे। बहनोई के भाई ने कॉलेज में अजय को वामपंथी संगठन स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया यानी SFI से जुड़ने का ऑफर दिया। योगी ने मना कर दिया।'

ABVP के खिलाफ ही चुनाव में उतर गए
कॉलेज में उन्होंने ABVP जॉइन कर लिया। इसमें प्रमोद रावत उर्फ टुन्ना का अहम योगदान रहा। पहले साल अजय ने ABVP का प्रचार किया। दूसरे साल खुद चुनाव लड़ना तय किया और सचिव पद पर टिकट मांगा। संगठन ने अगले साल देने की बात कही। अगले साल भी उन्हें ABVP ने टिकट नहीं दिया, तो निर्दलीय ही चुनाव लड़ गए। उन्हें अरुण तिवारी ने हरा दिया।

मां चाहती थी कि बेटा पढ़ लिखकर नौकरी करे
अजय बिष्ट की मां सावित्री देवी चाहती थीं कि बेटा भी अपने पिता की तरह सरकारी नौकरी करे। इसलिए अजय की पढ़ाई में कोई कमी नहीं रखी गई। अजय के पिता आनंद बिष्ट कहते थे, 'अजय ने जब गोरखपुर में संन्यास ले लिया था तब भी हम और सावित्री जाकर उसे वापस लाना चाहते थे। सावित्री तो अपने बेटे को भगवा में देखकर रो पड़ी थीं।'

मां और जीजा की बात यहां पर खत्म होती है। अब अजय के योगी आदित्यनाथ और फिर सांसद से मुख्यमंत्री बनने की कहानी जानते हैं।

राम मंदिर आंदोलन बना वजह
'योगीगाथा' में शांतनु गुप्ता लिखते हैं, 'अजय बिष्ट ऋषिकेश में M.Sc की पढ़ाई कर रहे थे, लेकिन श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के प्रति व्यक्तिगत झुकाव के कारण अपनी शिक्षा को भूल गए। 1993 में अजय गोरखपुर के गोरखधाम मंदिर में आए। महंत अवैद्यनाथ से मिले। महंत ने अजय की पूरी कहानी सुनी और कहा, 'तुम एक जन्मजात योगी हो, एकदिन तुम्हारा यहां आना निश्चित है।' महंत इसके पहले 1990 में भी योगी से मिल चुके थे।'

मई 1993 में अजय एक बार फिर से महंत अवैद्यनाथ से मिले। एक हफ्ते तक गोरखपुर में रहे। जब लौट रहे थे तो महंत ने कहा, 'पूर्णकालिक शिष्य के रूप में गोरखधाम मंदिर में शामिल हो जाइए।' अजय बिना कुछ बोले मन में हजारों सवाल लेकर वापस चले गए।

एम्स में भर्ती महंत ने अजय पर दबाव बनाया
जुलाई 1993 में महंत अवैद्यनाथ बीमार हो गए। उन्हें दिल्ली के एम्स में भर्ती करवाया गया। अजय को जानकारी मिली तो वे भी उन्हें देखने दिल्ली पहुंचे। इस बार महंत ने अजय पर दबाव बनाया। कहा, 'मेरी तबीयत ठीक नहीं रहती। मुझे एक योग्य शिष्य चाहिए। जिसे मैं अपना उत्तराधिकारी घोषित करूं। अगर ऐसा नहीं कर पाया तो हिन्दू समुदाय मुझे गलत समझेगा।'

बिना बताए घर से चले गए अजय बिष्ट
नवबंर 1993 में अजय घर पर बिना किसी को बताए गोरखपुर चले आए। उधर घर वाले परेशान थे, इधर अजय की कठिन तपस्या शुरू हो गई थी। 15 फरवरी 1994 को बसंत पंचमी के मौके पर महंत अवैद्यनाथ ने अजय बिष्ट को नाथ पंथ की दीक्षा दी। गोरखनाथ मठ का उत्तराधिकारी घोषित किया। उसी 15 फरवरी से अजय बिष्ट का नाम योगी आदित्यनाथ कर दिया गया।

12 सितंबर 2014 को महंत अवैद्यनाथ की मृत्यु के बाद एक पारंपरिक औपचारिक समारोह के बाद योगी आदित्यनाथ को गोरखनाथ मंदिर के पीठाधीश यानी मुख्य पुजारी घोषित किया गया।

अजय बिष्ट से योगी आदित्यनाथ बनने के बाद मठ की जिम्मेदारी संभाली। संन्यास के चार साल बाद राजनीतिक जिम्मेदारी भी संभाल ली और 1998 में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ गए।

लगातार पांच बार सांसद बने
1998 में वे गोरखपुर से पहली बार सांसद बने। 1999 में दोबारा चुनाव हुआ तो फिर विजयी हुए। 2002 में योगी आदित्यनाथ ने हिन्दू युवा वाहिनी नाम का संगठन बनाया। हिन्दू रक्षा के नाम पर इस संगठन का विस्तार पूरे प्रदेश में किया गया। 2004 में तीसरी बार, 2009 में चौथी और 2014 में पांचवीं बार उसी गोरखपुर सीट से योगी सांसद बने।

2017 में बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिला, तो पार्टी ने योगी आदित्यनाथ के चेहरे को चुना और सीएम बना दिया। योगी ने लोकसभा से इस्तीफा दिया और विधान परिषद की सदस्यता ली। 2022 में योगी आदित्यनाथ ने यूपी में दोबारा कमल खिलाया और यूपी की सत्ता के शीर्ष पर बैठ गए।

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