यूपी में MLA का चुनाव लड़ने का औसत खर्च 16 लाख रुपए है। ये बात हम नहीं, चुनाव आयोग कह रहा है। इसमें कितनी सच्चाई है? पहले हम 4 ग्राफिक्स में पैसों का पूरा हिसाब-किताब दे रहे हैं। उसे देखिए, फिर हम बताएंगे कि पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स से बात करके हमने समझा कि इसमें कितना सच है।
पैसों का आना छिपाते हैं कैंडिडेट
लखनऊ यूनिवर्सिटी के पॉलिटिकल साइंस के सीनियर प्रोफेसर डॉ. कविराज कहते हैं, “कैंडिडेट पैसों की इनकमिंग छिपाते हैं और आउटगोइंग पर भी खुलकर नहीं बताते। यानी कोई भी पार्टी से मिले फंड का जिक्र चुनाव आयोग से नहीं करता है। सभी कैंडिडेट तय सीमा के अंदर ही अपना खर्च बताते हैं, इसलिए आपको चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के खर्च के ब्योरे में हमेशा मामूली रकम ही दिखेगी। यह लीगल नहीं है। चुनाव आयोग को इस पर सख्त होना जरूरी है।”
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर अशोक कुमार उपाध्याय बताते हैं, “उम्मीदवारों ने चुनाव में कितना खर्चा किया, इसे जानने के लिए पब्लिक ऑडिटिंग जरूरी है। कई बार कैंडिडेट्स की रैलियों और प्रचार में उनके समर्थकों का पैसा लगता है। वे अपने एफिडेविट में इस खर्च के बारे कभी नहीं बताते हैं। इसलिए उनका बजट कम रहता है।”
चुनाव आयोग ने 2022 विधानसभा चुनाव में उम्मीदवारों के चुनाव प्रचार का पैसा बढ़ा दिया है। अब वो 28 लाख नहीं 40 लाख रुपए खर्च कर सकते हैं। वैसे, शायद ही कोई विधायक अपना खर्च 40 लाख बताएगा।
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