योगी आदित्यनाथ 3 मई से 5 मई तक उत्तराखंड में रहेंगे। इस दौरान वह अपने घर भी जाएंगे। मां से मिलेंगे। भाई और बहनों से मिलेंगे। आज से 29 साल पहले भी वह एक बार घर गए थे। किसी से मिलने नहीं, बल्कि पूरी तरह से घर छोड़ने का एक विधान पूरा करने। उस वक्त मां रो पड़ी थीं। सीएम योगी भी रो पड़े थे, लेकिन कदम घर के अंदर नहीं रखा। लौट गए।
"राजनीति के किरदार और किस्से" की इस सीरीज में हम आपके लिए हर दिन एक अनसुनी कहानी लेकर आएंगे। आज की कहानी योगी आदित्यनाथ के घर जाकर भिक्षा मांगने की है। आइए उसी कहानी को जानते हैं...
आदित्यनाथ घर से निकले तो 6 महीने तक पता ही नहीं चला कि कहां हैं?
योगी आदित्यनाथ के बचपन का नाम अजय सिंह बिष्ट था। अजय ने 1989 में ऋषिकेश के भरत मंदिर इंटरमीडिएट कॉलेज से इंटर की पढ़ाई पूरी की। इसी साल पौड़ी के कोटद्वार के डॉ. पीताम्बर दयाल बड़थ्याल हिमालयन राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में Bsc में एडमिशन ले लिया। 1992 में यहां से भी पास हो गए। गोरखपुर यूनिवर्सिटी में फिजिक्स से Msc में एडमिशन लिया पर पूरा नहीं किया और घर से चले गए।
6 महीने तक घर वालों को पता ही नहीं चला कि अजय कहां हैं? पिता आनंद सिंह हर उस जगह खोजने गए, जहां अजय के होने की संभावना थी, लेकिन अजय नहीं मिले। फिर किसी ने बताया कि उनका बेटा गोरखपुर के गोरक्षनाथ पीठ में है। अब वह संन्यासी बन चुका है। आनंद सिंह को बहुत दुख हुआ, लेकिन वह कुछ भी नहीं कर सके।
भिक्षा लेने घर आए तो मां ने कहा, मत जाओ बेटा, लौट आओ
संन्यासी बनने के बाद अजय अब योगी आदित्यनाथ बन गए थे। 1993 में अपने गांव पंचूर आए। पहले की तरह जींस पैंट में नहीं, बल्कि गेरुआ पहनकर। सिर घुटा कर, दोनों कानों में बड़े-बड़े कुंडल और हाथ में खप्पर लेकर। जिसने भी देखा उसने योगी को पहचानने के लिए अपनी आंखें मलीं। इसलिए कि, एक बार में वह पहचान ही नहीं पाया कि यह अजय सिंह बिष्ट हैं।
पत्रकार विजय त्रिवेदी अपनी किताब 'यदा यदा हि योगी' में लिखते हैं, 'अजय घर के बाहर पहुंचे और भिक्षा के लिए आवाज लगाई। घर की मालकिन आवाज सुनकर दरवाजे पर आईं तो अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ। जहां थीं, वहीं स्थिर हो गईं। मौन। मुंह खुला तो, लेकिन शब्द नहीं फूटे। आंखों से आंसुओं की धार बह निकली। जो सत्य साक्षात सामने खड़ा था उसे देखते हुए भी यकीन नहीं हो पा रहा था। मां के सामने उनका बेटा युवा संन्यासी के वेष में खड़ा था।'
मां चुप थीं, तभी आदित्यनाथ ने कहा, 'मां भिक्षा दीजिए'।
मां ने खुद को संभाला और कहा, 'बेटा यह क्या हाल बना रखा है, घर में क्या कमी थी जो भीख मांग रहा है?'
योगी ने कहा, 'मां संन्यास मेरा धर्म है। एक योगी की भूख भिक्षा से ही मिटेगी। आप भिक्षा में जो कुछ देंगी वही मेरे मनोरथ को पूरा करेगा।'
मां को बेटे के इस रूप पर अब भी यकीन नहीं हो रहा था। उन्होंने कहा, 'बेटा तुम पहले घर के अंदर आओ।'
आदित्यनाथ ने मना कर दिया और कहा, 'नहीं मां, मैं बिना भिक्षा लिए न तो घर के अंदर आ सकता हूं और न ही यहां से जा सकता हूं। जो कुछ भी हो वह मुझे दीजिए। इसके बाद ही मैं यहां से जाऊंगा।'
मां बेटे की जिद के आगे हार गईं। घर के अंदर गईं और थोड़े चावल और पैसे लाकर आदित्यनाथ के पात्र में डाल दिए।
भिक्षा पाने के बाद आदित्यनाथ पीछे मुड़े और वापस चल दिए। आंखों में आंसू लिए मां घर के दरवाजे पर खड़े होकर अपने बेटे को जाते हुए देखती रहीं।
विजय त्रिवेदी ने इस घटना का जिक्र करते हुए किताब में लिखा, 'भिक्षा लेते ही योगी आगे चल दिए। आवाज अब भी गूंज रही थी, पहाड़ों के करीब पहुंचते बादलों तक। अलख निरंजन! सूरज बादलों में छिपने, पहाड़ के पीछे जाने की कोशिश करता दिखा। वैसे भी उसका उजाला मां के लिए बेमायने हो गया था।'
नवंबर 1993 से 14 फरवरी 1994 तक अजय सिंह बिष्ट को कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ा। वे पीछे नहीं हटे। डटे रहे। 15 फरवरी 1994 को गोरक्षापीठाधीस्वर महंत अवैद्यनाथ महाराज ने पूरे विधि विधान से उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। इसके बाद योगी आदित्यनाथ के जीवन का उद्देश्य बदल गया। उन्होंने कहा,
'न त्वं कामये राज्यं, न स्वर्ग न पुनर्भवम्।
कामये दुःखतप्तानां प्राणिनामर्तिनाशनम्।'
इसका हिंदी अर्थ होगा, हे प्रभु, मैं इस जीवन में राजपाट पाने की कामना नहीं करता। मैं इस जीवन के बाद स्वर्ग और मोक्ष पाने की कामना भी नहीं करता।
बेटे को वापस घर ले जाने के लिए मां आई, पर वह नहीं गई
योगी आदित्यनाथ संन्यासी बन गए। पिता आनंद सिंह आए। अपने बेटे को इस रूप में देखकर रो पड़े। कहने लगे बेटा लौट चलो हमारे साथ, लेकिन योगी नहीं गए। पिता निराश होकर लौट गए। उन्हें शायद उम्मीद थी कि वह बेटे को अपने घर वापस ले आएंगे, इसलिए वह अबकी बार अपनी पत्नी सावित्री के साथ गोरखपुर पहुंचे।
योगी आदित्यनाथ को देखते ही मां रो पड़ी। उस वक्त महाराज अवैद्यनाथ मंदिर में ही थे। सावित्री ने कहा, 'महंत जी मेरे बेटे को लौटा दीजिए।' महाराज ने कहा, 'चार बेटे हैं तुम्हारे, एक बेटा हमें दे दो।' सावित्री देवी को इसके बाद कुछ समझ ही नहीं आ रहा था। कभी महाराज को देखतीं, कभी अपने बेटे को तो कभी छत की तरफ। आंखों के आंसू सूख गए थे। फिर वह कुछ नहीं बोलीं, अपने पति की तरफ देखा और बाहर चली गईं।
1998 में योगी आदित्यनाथ सांसद बन गए। परिवार के लोग मिलने आए। सभी खुश थे। पिता आनंद सिंह और मां सावित्री भी।
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