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नेताजी ने जब अखिलेश को ही पार्टी से निकाल दिया:अखिलेश-शिवपाल के बीच 6 साल से चल रहा विवाद, मुलायम की पकड़ छूटते ही बिखरा परिवार

8 महीने पहलेलेखक: रक्षा सिंह
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समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव का 10 अक्टूबर 2022, सुबह 8 बजकर 15 मिनट पर गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में निधन हो गया। मुलायम सिंह की पहचान देश के ताकतवर नेताओं के साथ परिवार को एक साथ लेकर चलने की भी रही है। परिवार के 25 से अधिक लोग सक्रिय राजनीति में थे, लेकिन किसी का किसी से कोई मतभेद नहीं था। लेकिन मुलायम सिंह जैसे ही कमजोर पड़े, पारिवारिक रिश्ते बदलते चले गए।

चलिए शुरू से जानते हैं कि कैसे मुलायम एक मुखिया होने के नाते अपने पूरे परिवार को हमेशा जोड़े रहे। पर उससे पहले उनके परिवार से जुड़ा ये ग्राफिक्स देखिए...

कहानी शुरू होती है 30 साल पहले, यानी 1992 से…
उत्तर प्रदेश में तीन चीजें एक साथ हो रही थी। पहली, मंडल-कमंडल यानी जाति-धर्म की राजनीति। दूसरी, राम मंदिर आंदोलन। तीसरी, यूपी में समाजवादी पार्टी का उदय।
लोहिया की सोशलिस्ट पॉलिटिक्स, चौधरी चरण सिंह की किसान पॉलिटिक्स और वी.पी.सिंह की बैकवर्ड पॉलिटिक्स। सब को करीब से देखने के बाद मुलायम के पास तीनों विचारों को साथ लेकर राजनीति शुरू करने का एक मौका था। इसलिए साल 1992 में उन्होंने समाजवादी पार्टी लॉन्च की। मुलायम अपने परिवार के पहले ऐसे सदस्य थे जो राजनीति में आए।

मुलायम अपने परिवार के भी मुखिया थे और समाजवादी पार्टी के भी। जब तक वो राजनीति में सक्रिय रहे उन्होंने खुद को सेकंड लाइन के नेताओं में खड़ा होने नहीं दिया। उनके भाई शिवपाल यादव और रामगोपाल यादव हमेशा पार्टी में नंबर 2 पर रहे। इसे लेकर परिवार में छुटपुट नोकझोंक भी हुई तो जो मुलायम ने कहा उसे सबने माना।

जब मुलायम पर हमले हुए तो शिवपाल साए की तरह उनके साथ थे
साल था 1980। यूपी में वी.पी.सिंह की सरकार थी। उस वक्त मुलायम ने उनकी सरकार के खिलाफ खुल कर विरोध किया। उन्होंने पिछड़े वर्ग के युवाओं को पुलिस एनकाउंटर में मारे जाने का ऐसा मुद्दा बनाया कि वी.पी.सिंह समेत पूरी कांग्रेस सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा।

मुलायम को जब भी जरूरत पड़ी, भाई शिवपाल साए की तरह उनके साथ खड़े नजर आए।
मुलायम को जब भी जरूरत पड़ी, भाई शिवपाल साए की तरह उनके साथ खड़े नजर आए।

मुलायम पिछड़ों के नेता के तौर पर उभर रहे थे तब उन्हें जान से मार देने की साजिशें रची गईं। कई बार उनपर हमले हुए। तब भाई शिवपाल साए की तरह उनके साथ रहते थे। हर बार मुलायम को बचाने के लिए उन्होंने अपनी जान की बाजी लगा दी। यही वजह है कि शिवपाल हमेशा उनके करीबी सियासी सलाहकार बने रहे।

साल 2015 तक सब सही चलता रहा। पूरा परिवार एकजुट था। लेकिन उसके बाद मुलायम के परिवार की कड़ियां एक-एक करके टूटने लगीं।

अखिलेश की जगह मुलायम ने दिया शिवपाल का साथ
अखिलेश का सीएम बनना मुलायम की राजनीति से एकदम अलग था। वो नए जमाने की पॉलिटिक्स लेकर आए। मुलायम हमेशा कंप्यूटर और अंग्रेजी के खिलाफ रहे। लेकिन अखिलेश सीएम बनने के बाद लैपटॉप स्कीम लाए। उनके ये बदलाव पुराने धुरंधरों को गंवारा नहीं थे। जिन्हें लेकर अखिलेश और शिवपाल के बीच खटपट होने लगी। ऐसी तकरार मुलायम के परिवार में पहली बार हुई थी।

देश के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार में शुरू हुआ घमासान रुकने का नाम नहीं ले रहा था। अखिलेश यादव ने भ्रष्टाचार के आरोप में गायत्री प्रजापति और राज किशोर को बर्खास्त कर दिया। एक दिन बाद ही मुख्य सचिव रहे दीपक सिंघल को भी पद से हटा दिया।

ये तीनों शिवपाल गुट के माने जाते थे। फैसले से मुलायम और शिवपाल काफी नाराज हुए। मुलायम ने बेटे अखिलेश को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर भाई शिवपाल को कमान सौंप दी। इससे बौखलाए अखिलेश ने चाचा शिवपाल से सभी जरूरी मंत्रालय छीन लिए।

मुलायम ने अखिलेश और शिवपाल को गले मिलवाया
अखिलेश के पलटवार से गुस्साए शिवपाल ने सरकार और संगठन के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया। अपने भाई और बेटे के बीच ये विवाद देखकर मुलायम ने मोर्चा संभाला। उन्होंने बेटे अखिलेश के सभी फैसले रद्द कर भाई का इस्तीफा नामंजूर कर दिया।

मुलायम ने पार्टी दफ्तर में कहा गायत्री प्रजापति के खिलाफ की गई सभी कार्यवाई रद्द की जा रही है। उन्हें बहुत जल्द मंत्री पद पर बहाल किया जाएगा। साथ ही शिवपाल यादव यूपी सरकार में मंत्री और प्रदेशाध्यक्ष बने रहेंगे।

इसके बाद मुलायम ने पार्टी की मीटिंग बुलाई। उसमें अखिलेश और शिवपाल ने सपा की रार पर अपना-अपना पक्ष रखा। इसके बाद पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने बैठक में मौजूद सांसद, मंत्री, विधायक और बाकी नेताओं के सामने उस वक्त के सीएम अखिलेश को फटकार लगाने के साथ ही शिवपाल यादव के योगदान को जमकर सराहा। बैठक के आखिर में मुलायम ने शिवपाल और अखिलेश को एक दूसरे से गले भी मिलवाया।

मुलायम ने अखिलेश को ही पार्टी से निकाल दिया

साल 2016 में बिना पूछे अपने चहेते नेताओं को टिकट बांट देने की वजह से मुलायम ने अखिलेश की पार्टी से निकाल दिया था।
साल 2016 में बिना पूछे अपने चहेते नेताओं को टिकट बांट देने की वजह से मुलायम ने अखिलेश की पार्टी से निकाल दिया था।

दिसंबर 2016. यूपी विधानसभा चुनाव आने वाले थे। अखिलेश ने किसीसे बिना पूछे ही अपने चहेतों को टिकट दे दिया। इससे नाराज मुलायम ने अखिलेश को 6 साल के लिए पार्टी से निकाल दिया। उनके इस फैसले से अखिलेश के समर्थक सड़कों पर उतर गए। जमकर नारेबाजी की। नतीजा, कुछ दिन में ही अखिलेश की पार्टी में वापसी करा उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया। लेकिन नाराज शिवपाल ने पार्टी छोड़ दी। यहीं से पूरा परिवार दो फाड़ हो गया। पार्टी की पूरी कमान अखिलेश यादव के हाथ में आ गई।

इन सब विवादों के बीच वक्त गुजरा। साल 2017 आया। एक तरफ यूपी में विधानसभा चुनाव की तैयारी जोरों पर थी, दूसरी तरफ यादव परिवार में विवाद चरम पर था। इस बार विवाद में एक नए नाम का जिक्र हुआ। वो नाम था साधना गुप्ता। इस पूरी कहानी को जानने के लिए चलते हैं 40 साल पीछे…

कहानी शुरू होती है साल 1982 से…
मुलायम की मां मूर्ति देवी अस्पताल में भर्ती थीं। इलाज के दौरान एक नर्स उन्हें गलत इंजेक्शन लगाने जा रही थी। उस समय साधना गुप्ता ने नर्स को ऐसा करने से रोक दिया। साधना की वजह से मूर्ति देवी की जिंदगी बच गई। साधना नर्सिंग की ट्रेनिंग कर रहीं थीं इसलिए उन्हें इंजेक्शन का आईडिया था। राजनीति में दिलचस्पी थी। कई राजनीतिक कार्यक्रमों में मुलायम से मुलाकात कर चुकीं थीं।

मुलायम साधना को पहले से जानते थे लेकिन उनकी इस बात से वो बहुत इंप्रेस हुए। मुलायम और साधना दोनों इस वक्त शादीशुदा थे। उसके बावजूद उनके और साधना के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं और दोनों की रिलेशनशिप शुरू हो गई।

अखिलेश को नहीं पसंद थीं साधना
साल 1988 में पहली बार मुलायम ने, अखिलेश को साधना गुप्ता से मिलवाया। तब वो 15 साल के थे। उस वक्त अखिलेश को साधना अच्छी नहीं लगीं। एक बार तो साधना ने उन्हें थप्पड़ मार दिया। कुछ समय बाद उन्हें पढ़ाई के लिए पहले इटावा, फिर धौलपुर भेज दिया। इसके 15 साल बाद, साल 2003 में अखिलेश की मां मालती देवी का दिल का दौरा आने से निधन हो गया।

कई वेबसाइट दावा करती हैं कि ये तस्वीर एक आंदोलन की है। आंदोलना का नाम था, चलो गांव की ओर। इसमें मुलायम सिंह यादव और उनकी पहली पत्नी मालती देवी हैं। साल 2003 में मालती देवी का निधन हो गया।
कई वेबसाइट दावा करती हैं कि ये तस्वीर एक आंदोलन की है। आंदोलना का नाम था, चलो गांव की ओर। इसमें मुलायम सिंह यादव और उनकी पहली पत्नी मालती देवी हैं। साल 2003 में मालती देवी का निधन हो गया।

साल 2007. मुलायम ने साधना गुप्ता और उनके बेटे प्रतीक को अपने परिवार के रूप में स्वीकारा। लेकिन अखिलेश को ये बात एकदम पसंद नहीं आई। वो साधना और प्रतीक को अपने परिवार में शामिल नहीं करना चाहते थे। पर हुआ वही जो मुलायम चाहते थे। साधना और प्रतीक मुलायम के परिवार में शामिल हुए।

एक दूसरे से दूर होने लगे अखिलेश और मुलायम
10 साल पहले हुई ये घटना 2017 यूपी विधानसभा चुनाव में फिर सामने आई। यादव परिवार में चल रहे विवादों के लिए अखिलेश के समर्थकों ने साधना को जिम्मेदार ठहराया। उनका कहना था कि साधना के चलते ही कलह हुई है। वजह यह है कि वो उत्तराधिकारी के तौर पर अपने बेटे प्रतीक को राजनीति में लाना चाहती हैं। इसीलिए उन्होंने ऐसा माहौल बनाया कि परिवार के लोग आपस में ही एक दूसरे के खिलाफ हो गए। इन्हीं वजहों से अखिलेश और पिता मुलायम के बीच खाई पैदा हो गई।

घर तोड़ना होता तो कब का तोड़ देती

तस्वीर में मुलायम के दोनों तरफ अखिलेश और साधना हैं। किनारे प्रतीक यादव और अपर्णा यादव बैठे हैं।
तस्वीर में मुलायम के दोनों तरफ अखिलेश और साधना हैं। किनारे प्रतीक यादव और अपर्णा यादव बैठे हैं।

साधना ने इंटरव्यू में इस तरह के आरोप लगाने वालों को मानसिक दिवालिया बताया था। उन्होंने अपनी सफाई में कहा था कि मैं इतने दिनों से परिवार का हिस्सा हूं। अगर घर तोड़ना होता तो कब का तोड़ देती।

मां साधना तो चाहती थीं पर प्रतीक कभी राजनीति में शामिल नहीं होना चाहते थे। इसलिए साधना की ये इच्छा अधूरी रह गई। लेकिन उन्होंने प्रतीक की पत्नी और अपनी बहु अपर्णा यादव के तेज तर्रार तेवर देखते हुए उन्हें राजनीति में लाने का विचार किया। मुलायम पर दबाव बनवा कर अपर्णा को टिकट दिलवाया।

मुलायम के परिवार में ही दो गुट उभर आने के बाद अब लग रहा था कि सबकुछ धीरे-धीरे ठीक हो जाएगा। पर ऐसा हुआ नहीं…

अखिलेश से परिवार नहीं संभल रहा तो राज्य कैसे संभालेंगे
साल 2022. यूपी में एक बार फिर से परिवारवाद को लेकर लड़ाई छिड़ गई। अखिलेश के परिवार के तीन सदस्य सपा छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए। पहली हैं अपर्णा यादव, जो 2017 का चुनाव सपा के टिकट पर लड़ने के बाद 2022 चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल हो गईं। दूसरे हैं मुलायम के साढ़ू प्रमोद गुप्ता और तीसरे हैं उनके समधी और सपा के विधायक हरिओम यादव। इसके बाद बीजेपी ने अखिलेश पर आरोप लगाए की उनसे जब परिवार ही नहीं संभल रहा तो राज्य कैसे संभालेंगे।

6 साल बाद चुनाव में साथ आए चाचा-भतीजा, फिर अलग हो गए

तस्वीर 2022 चुनाव से ठीक पहले की है। जब चुनाव प्रचार के लिए मुलायम, भाई शिवपाल और बेटे अखिलेश साथ नजर आए थे।
तस्वीर 2022 चुनाव से ठीक पहले की है। जब चुनाव प्रचार के लिए मुलायम, भाई शिवपाल और बेटे अखिलेश साथ नजर आए थे।

साल 2015 से चले आ रहे विवादों के बाद 2018 में अखिलेश के चाचा शिवपाल ने अपनी नई पार्टी बना ली। नाम रखा, “प्रगतिशील समाजवादी पार्टी यानी प्रसपा।” 2022 में यूपी विधानसभा चुनाव होने थे तो चुनाव में चाचा-भतीजा फिर एक बार साथ आए। शिवपाल सपा के टिकट पर जसवंतनगर सीट से चुनाव लड़े और जीते भी। लेकिन सपा की हार के बाद फिर से दोनों के बीच दूरियां बढ़ती गईं।

जहां मिले सम्मान वहां जा सकते हैं

शिवपाल ने शिकायत की कि अखिलेश उन्हें सम्मान नहीं दे रहे। जिसपर सपा ने खुले पत्र में लिखकर दिया, "जहां सम्मान मिले वहां जाने के लिए स्वतंत्र हैं शिवपाल।"
शिवपाल ने शिकायत की कि अखिलेश उन्हें सम्मान नहीं दे रहे। जिसपर सपा ने खुले पत्र में लिखकर दिया, "जहां सम्मान मिले वहां जाने के लिए स्वतंत्र हैं शिवपाल।"

सबसे पहले शिवपाल ने आरोप लगाया कि अखिलेश ने उन्हें विधायक दल की बैठक में नहीं बुलाया। जबकि वो सपा से विधायक हैं। यहीं से दोनों के बीच बगावत शुरू हो गई। राष्ट्रपति चुनाव में सपा ने विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को समर्थन दिया। जबकि शिवपाल यादव ने खुलकर यशवंत का विरोध किया। शिवपाल ने अखिलेश पर उन्हें सम्मान ना देने के भी आरोप लगाए। जिसके जवाब में समाजवादी पार्टी ने एक खुला खत लिखा। इसमें कहा गया, “माननीय शिवपाल सिंह यादव जी, अगर आपको लगता है, कहीं ज्यादा सम्मान मिलेगा तो वहां जाने के लिए आप स्वतंत्र हैं।”

मुलायम के परिवार में ये सब विवाद चल ही रहा था कि इसी बीच उनकी सेहत बिगड़ी और उन्हें गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में भर्ती कराया गया। इन टूटते बिखरते रिश्तों के बीच आज पूरा परिवार एक साथ तो खड़ा है पर उनके बीच अब मुलायम नहीं हैं।

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