बात 2 जून 1995 की है। प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन की सरकार थी। बसपा गठबंधन तोड़ने के लिए स्टेट गेस्ट हाउस में बैठक कर रही थी। तभी सपा के विधायक और समर्थक पहुंच गए। उन्होंने मारपीट शुरू कर दी। बसपा विधायकों को उठाकर गाड़ियों में भरने लगे। मायावती के साथ बदसलूकी की। मायावती ने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया। 4 घंटे बाद जब कमरा खुला तब यूपी की राजनीति के माथे पर गेस्ट हाउस कांड नाम का एक ऐसा कलंक लग चुका था जो आज तक मिट नहीं सका। आज राजनीति के किरदार और किस्से में उसी गेस्ट हाउस कांड की बात करेंगे।
2 जून को मीराबाई स्टेट गेस्ट हाउस लखनऊ में जो हुआ वह अचानक नहीं हुआ। इसकी पटकथा 1 साल पहले से लिखी जानी शुरू हो गई थी। ऐसे में सीधे उस दिन की नहीं, बल्कि उस पटकथा से कहानी शुरू करते हैं। चलिए, आगे पढ़ने से पहले पोल में शामिल होकर अपनी राय दीजिए।
बीजेपी को रोकने के लिए सपा-बसपा एक हुए और सरकार बनाई
6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिरी तो केंद्र सरकार ने कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त कर दिया। 1993 में चुनाव हुए। बीजेपी की लोकप्रियता से वाकिफ सपा और बसपा के नेताओं ने तय किया कि साथ चुनाव लड़ेंगे। मुलायम सिंह ने 256 सीटों पर प्रत्याशी उतारे। 109 जीत गए। कांशीराम ने 164 उतारे, उनमें 67 जीत गए। बीजेपी के खाते में 177 सीटें आई थीं जो 212 के बहुमत के आंकड़ों से दूर थी। ध्यान रहे उस वक्त यूपी-उत्तराखंड एक थे और सीटों की संख्या 422 थी।
सपा और बसपा ने मिलकर सरकार बना ली। शुरुआत में सरकार सही चली। मंडल कमीशन की रिपोर्ट, सरकारी नौकरियों और शिक्षा संस्थाओं में दलितों और पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण के प्रति समर्थन ही दोनों पार्टियों को जोड़ने का सैद्धांतिक सूत्र था। सरकार बनने के बाद कांशीराम ने यूपी की जिम्मेदारी मायावती को सौंप दी और खुद दूसरे राज्यों में पार्टी का विस्तार करने में जुट गए।
सीएम को बुलाकर इंतजार करवाते, फिर लुंगी पहनकर मिलने जाते कांशीराम
मायावती के जीवन पर लिखी किताब 'बहनजी' में अजय बोस लिखते हैं, "कांशीराम कभी मुलायम से मिलने नहीं जाते थे। उनकी जिद होती थी कि मुलायम सिंह उनसे मिलने राज्य के अतिथि-गृह में आएं। मुलायम आते थे तब कांशीराम आधे-आधे घंटे इंतजार करवाते थे। अंत में बड़ी लापरवाही के साथ बनियान और लुंगी पहनकर नीचे उतरते थे। मीडिया के कैमरों के कारण मुलायम का संकोच और बढ़ जाता था।"
पंचायत चुनाव में बसपा हारी और सपा जीती तो दूरियां बढ़ गई
1995 में राज्य में पंचायत चुनाव हुए। 50 जिलों में 30 पर सपा जीत गई। 9 में बीजेपी, पांच पर कांग्रेस और बसपा के हाथ में महज एक सीट आई। इस रिजल्ट से साफ हो गया कि सपा-बसपा गठबंधन के बीच फायदा सपा को ही हुआ। यहीं से दोनों पार्टियों के बीच विवाद गहराया। एक तरफ मुलायम सिंह बसपा के विधायकों को अपने पाले में करने लग गए। दूसरी तरफ बसपा बीजेपी के संपर्क में आने लगी।
अब बात गेस्ट हाउस कांड की करते हैं...
धमकी और मारपीट के दम पर विधायकों को अपने पाले में करने की कोशिश
1 जून 1995 को मुलायम सिंह को खबर लग गई कि बसपा समर्थन वापस लेने जा रही है। मायावती ने उस वक्त के राज्यपाल मोतीलाल वोरा से मिलकर बीजेपी के सहारे सरकार बनाने का प्रस्ताव रखा। मुलायम गुस्से से लाल हो गए। बसपा के प्रदेश अध्यक्ष रामबहादुर को अपने पाले में कर लिया। उनके साथ 15 और विधायक भी आ गए। लेकिन दल-बदल कानून से बचने के लिए एक तिहाई सदस्य चाहिए, यानी 8 और विधायक चाहिए थे।
अजय बोस बताते हैं, “कांशीराम के अस्पताल में होने के कारण मुलायम सिंह इस बात को लेकर निश्चिंत थे कि सरकार चलती रहेगी। क्योंकि बसपा के कई विधायक पहले से जेब में थे। लेकिन जब समर्थन वापस लेने की बात आई तब तय हुआ कि बसपा के और विधायकों को डरा धमकाकर अपने पाले में किया जाए।”
मायावती बैठक कर रही थीं तभी चमार पागल हो गए की आवाज आने लगी
2 जून 1995, मायावती लखनऊ के मीराबाई स्टेट गेस्ट हाउस में पार्टी के विधायकों और सांसदों के साथ मीटिंग कर रही थीं। उस वक्त वह इसी गेस्ट हाउस के रूम नंबर 1 में रहती थीं। सभी विधायक कॉमन हाल में बैठे थे। चार बजे थे तभी सपा के करीब 200 कार्यकर्ता और विधायक गेस्ट हाउस पहुंच गए। उनकी पहली लाइन थी, "चमार पागल हो गए हैं।"
विधायकों को उठाया और गाड़ी में फेंकना शुरू किया
सपा कार्यकर्ता भद्दी-भद्दी गालियां दे रहे थे। जातिसूचक सबसे अधिक। बसपा के विधायकों ने मेन गेट बंद करना चाहा तभी उग्र भीड़ ने उसे तोड़ दिया। इसके बाद बसपा के विधायकों को हाथ-लात और डंडों से पीटा जाने लगा। पिटाई के दौरान विधायकों से मुलायम सिंह को समर्थन देने के लिए एक शपथ पत्र पर सिग्नेचर करवाया जा रहा था। विधायक इतने डर गए कि कोरे कागज पर सिग्नेचर करके देने लगे। पांच बसपा विधायकों को जबरन गाड़ी में बैठा लिया गया।
मायावती ने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया
मायावती के साथ बदसलूकी हुई। उन्होंने भागकर अपने आप को एक कमरे में बंद कर लिया। उनके अलावा कमरे में दो और लोग थे। उनमें एक सिकंदर रिजवी थे। उपद्रव कर रहे लोग दरवाजा पीटने लगे। कह रहे थे, "चमार औरत को उसकी मांद में से घसीटकर बाहर निकालो।" अंदर से सिकंदर रिजवी ने दरवाजे के पास सोफे और मेज को लगा दिया, ताकि अगर सिटकनी टूटे भी तो दरवाजा न खुल सके। उस वक्त पेजर का चलन था, प्रशासन को सूचना दी गई। मौके पर बड़े अधिकारी पहुंचे।
SSP कार्रवाई के बजाय सिगरेट फूंक रहे थे
अजय बोस लिखते हैं, जिस वक्त गेस्ट हाउस में यह घटना हो रही थी उस वक्त लखनऊ के सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस ओपी सिंह मौजूद थे। वह कार्रवाई के बजाय सिर्फ सिगरेट पीते हुए नजर आए। कुछ देर बाद गेस्ट हाउस की बिजली और पानी सप्लाई रोक दी गई। इसका भी आरोप उन्हीं पर लगा।
सरकार का आदेश था कि विधायकों पर लाठी चार्ज नहीं होगा
एसपी राजीव रंजन जिला मजिस्ट्रेट के साथ मिलकर गेस्ट हाउस खाली करवाने में जुट गए। पहले उन्होंने उन्हें निकाला जो विधायक नहीं थे। इसके बाद वह विधायकों को निकालने लगे तो बहस हो गई। सरकार का आदेश था कि विधायकों पर लाठी चार्ज नहीं किया जाए। लेकिन स्थिति ऐसी थी कि बल प्रयोग करना पड़ा। रात के 9 बजे से 11 बजे तक इस मामले में राज्यपाल कार्यालय, केंद्र सरकार और वरिष्ठ बीजेपी नेताओं का दखल हो गया और भारी सुरक्षा बल पहुंच गया।
अगले दिन माया मुख्यमंत्री बन गईं
रात में जब भारी पुलिस फोर्स पहुंची और मायावती को लग गया कि अब वह सुरक्षित हैं तब जाकर कमरे से बाहर आईं। मायावती को किसने बचाया, सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान कहते हैं कि बीजेपी नेताओं ने बचाया जैसे दावों में दम नहीं है। जब यह घटना शुरू हुई तो यहां भारी संख्या में मीडिया पहुंच गई। सपा के लोग हटाना चाहते थे, लेकिन मीडिया हटी नहीं। 2 जून को मायावती 39 साल की उम्र में यूपी की मुख्यमंत्री बन गई।
आखिरी बात मायावती की बदली ड्रेस को लेकर
गेस्ट हाउस कांड के बाद माया ने कभी साड़ी नहीं पहनी
2 जून से पहले मायावती अक्सर साड़ी पहने हुए नजर आती थीं, लेकिन इस घटना के बाद उन्होंने कभी साड़ी नहीं पहनी। घटना के समय मौजूद रहे लोग बताते हैं कि उस वक्त उपद्रवियों के हाथ मायावती की साड़ी तक पहुंच गए थे। लेकिन ऐसी किसी भी घटना की चर्चा न उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखी और न ही उनके ऊपर किताब लिखने वालों ने लिखा।
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