• Hindi News
  • Local
  • Uttar pradesh
  • Uttar Pradesh Election 2022, Kairana Issues, Bjp, Fear Among The People Here In The Era Of Riots, As Much As It Is In This Time's Election.

वेस्ट यूपी में कैराना एक बार फिर चुनाव में:यहां के लोगों में इतना डर दंगे के दौर में भी नहीं था, जितना इस बार के चुनाव में है

कैरानाएक वर्ष पहलेलेखक: मनीषा भल्ला
  • कॉपी लिंक

पश्चिमी उत्तर प्रदेश का कैराना एक बार फिर से चुनाव मैदान में है। 2013 में दंगों के दौरान कैराना और उसके आसपास से लगभग 50,000 मुसलमानों का पलायन हुआ। 2017 में कैराना से हिंदुओं का पलायन हुआ। मुसलमान लौटकर इसलिए भी नहीं आए, क्योंकि कई महीने कैंपों में रहने के बाद उनके लिए दूसरी जगहों पर रिहायशी कॉलोनियां बना दी गईं। हिंदू भी आधे लौटे और बाकी अलग-अलग जगहों पर अपने रोजी-रोटी में लग गए।

डर और खौफ के कई दौर देख चुके कैराना को इतना डर कभी नहीं लगा, जितना अब चुनावी दौर में लग रहा है। चुनाव की एक चिंगारी कब लपटों में बदल जाएगी...जब तक समझेंगे, कहीं सब कुछ जल न चुका हो।

खेती-किसानी और खाप पंचायतों के गढ़ वाली इस जाट बेल्ट में कैराना का पलायन एक अतीत है, जिसकी कोई बात भी नहीं कर रहा है। चाहे वह 2013 का दंगों में मुस्लिम पलायन हो या फिर 2017 का हिंदू पलायन। इसे समझने के लिए हमें थोड़ा अतीत में जाना होगा।

ध्रुवीकरण की कोशिश 2010 से शुरू हुई
2010 से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ध्रुवीकरण की कोशिश के चलते जाट-मुस्लिम एकता में दरार डालने का कोशिश शुरू कर दी गई थी। प्रभातफेरियों में त्रिशूल बांटे जाते और नारा बुलंद किया जाता 'बेटी के सम्मान में बीजेपी मैदान में।'

2013 में कव्वाल गांव की एक छेड़छाड़ की घटना ने दंगों का रूप ले लिया। कांधला और लिसाढ़ जैसे इलाके बुरी तरह से दंगों के चपेट में आ गए। मुस्लिमों के गांवों से बाहर सुरक्षित जगहों पर कैंप बनाए गए और उन्हें मस्जिदों में शरण दी गई। फिर उनके लिए कुछ सरकार ने और कुछ मुस्लिम जमातों ने रिहायशी कॉलोनियां बना दीं। कुछ रोजगार के लिए बाहर चले गए तो लौटकर ही नहीं आए।

2013 के दंगों के बाद आर्थिक स्थिति बिगड़ गई
फिर 2017 में कैराना से हिंदुओं का पलायन शुरू हुआ। कुछ गुंडों की अमीर लोगों से उगाही और लगातार एक के बाद एक तीन हत्या इसकी वजह बनी। 2013 के दंगों के बाद इस इलाके की आर्थिक स्थिति भी पूरी तरह से हिल गई थी। लोग राेजगार के लिए उसी समय से पलायन करने लगे थे। फिर घटनाओं ने उस आग में घी का काम किया।

कैराना कस्बा हरियाणा सीमा पर है। हरियाणा का पानीपत जिला कैराना से एकदम सटा हुआ है। पानीपत एक इंडस्ट्रियल जिला है, जहां कपड़ा, चादर, कारपेट के बहुत सारे कारखाने हैं। कैराना के लोग हमेशा से रोजीरोटी की तलाश में पानीपत जाते रहे हैं। अब यहां के लोगाें का सवाल है कि पानीपत जैसा हब कभी कैराना में बनाया होता तो भला पलायन ही क्यों होता।

हिंदू, मुस्लिम और जिन्ना ढाई महीने के चुनावी मेहमान: टिकैत
किसान नेता राकेश टिकैत दैनिक भास्कर से कहते हैं कि हिंदू, मुस्लिम और जिन्ना पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ढाई महीने तक सरकारी मेहमान के तौर पर रहेंगे। यह सरकारी पेरोल पर हैं। 15 मार्च के बाद यह तीनों पांच दिन और रहने के बाद चले जाएंगे। टिकैत कहते हैं कि हिंदू-मुस्लिम फालतू का मुद्दा है और कुछ नहीं, यह कोरा झूठ है, यह लोग (भाजपा) यही करवाना चाहते हैं। टिकैत के अनुसार इस दफा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इन्हें वोट नहीं मिलने वाला। 2010 से पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम-जाट खाप एक हुआ करती थी। महापंचायतें एक थीं। पंचायतों से साझा तौर पर फरमान जारी हुआ करते थे।

टिकैत आगे कहते हैं कि चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के आंदोलन में मुस्लिमों का अहम दर्जा हुआ करता था। मंच पर दोनों खाप, सामाजिक और राजनीतिक मंच पर दोनों समुदायों की मौजूदगी बराबर होती थी, जिसे 2010 के बाद खोखला किए जाने का काम शुरू हो गया था। नतीजा 2013 के दंगे और 2017 में हिंदू पलायन का मुद्दा। कैराना, कांधला, लिसाढ़, फुगाना सब इलाके उस वक्त अति संवेदनशील थे, लेकिन अब लोग हिंदू-मुस्लिम की राजनीति नहीं चाहते हैं।

हम तो 2013 की बात भी नहीं करना चाहते: इमरान मसूद
समाजवादी नेता इमरान मसूद कहते हैं कि भाजपा के पास अपना चेहरा बचाने के लिए कोई मुद्दा ही नहीं है। उनके पास इस बात का जवाब नहीं है कि गन्ने और आलू को बरबाद क्यों होने दिया गया। फसल के दाम दोगुने करने का वादा किया था, जबकि फसल का मूल्य और लागत भी नहीं निकल पा रही है। बेरोजगारी की दर आसमान को छू रही है। जिस कैराना के पलायन की बात भाजपा कर रही है उस कैराना के नौजवानों के रोजगार के लिए भाजपा ने क्या किया, किसानों की खेती और सिंचाई के लिए क्या किया।

मसूद कहते हैं- 2013 की बात भी हम नहीं करना चाहते, क्योंकि अतीत की बातें करके भाजपा हमें जिस पिच पर खिलाना चाहती है, उस पर हम खेलेंगे नहीं।

कैराना न तो तब मुद्दा था और न आज: राशिद अली
समाजवादी पार्टी से नगर पालिका चेयरमैन रहे राशिद अली बताते हैं कि कैराना न तो तब मुद्दा था और न आज है। कुछ गुंडों की वजह से दो-चार हिंदू परिवार अपने कामकाज के सिलसिले में गांव से पानीपत चले गए थे, लेकिन पलायन वाली कोई बात न थी, न है।

दरअसल यह मुद्दे जिन्न हैं जिन्हें जिंदा किया जा रहा है। असल बात यह है कि 2013 की फसल भाजपा ने 2017 में काटी। यानी कि 2013 में जिन मुसलमानों ने पलायन किया था, वह राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमेशा मुद्दा बनता था, इसके जवाब में 2017 में भाजपा ने हिंदुओं के पलायन को मुद्दा बना दिया।

हालात बदल रहे हैं, लोग अब संतुष्ट है: मृगांका
भाजपा नेता हुकुम सिंह की बेटी और कैराना से प्रत्याशी मृगांका का कहना है कि जिन लोगों ने पलायन किया था वे लोग अब लौटकर आने शुरू हो गए हैं। अब सभी लौट रहे हैं। चाहे वह हिंदू हों या मुसलमान। अपराध के चलते यहां से पलायन हुआ था, लेकिन बीते पांच सालों में स्थिति में बहुत सुधार हुआ है। अब तो अपराधियों का पलायन हो रहा है, पहले वाली पलायन की स्थिति अब बदल चुकी है। पलायन कैराना का दुखद अतीत है, अब लोग संतुष्ट हैं।

'मुजफ्फरनगर बाकी है' नाम से दंगों पर फिल्म बनाने वाले मकुल सिंह साहनी बताते हैं कि वह आजकल कैराना समेत इसके आसपास के इलाकों में घूम रहे हैं। भाजपा के कोर वोटर भी उनसे परेशान हैं। कैराना का मुद्दा सिर्फ इसलिए उछाला जा रहा है ताकि कम से कम कोर वोटर को तितर-बितर न होने दिया जाए।