प्रतापगढ़ की गड़वारा सीट से साल 2007 में बसपा विधायक रहे बृजेश मिश्र सौरभ ने समाजवादी पार्टी की सदस्यता ले ली। दरअसल, प्रतापगढ़ में बन रहे मेडिकल कॉलेज का नाम अपना दल (एस) के संस्थापक सोनेलाल पटेल के नाम पर रखने को लेकर पूर्व विधायक ने भी विरोध किया था। उन्होंने यहां तक कहा था कि अगर बीजेपी के खिलाफ जाना पड़े तो भी जाने से गुरेज नहीं करूंगा। इसका असर यही रहा कि उन्होंने अब 9 साल तक बीजेपी के साथ रहने वाले पूर्व विधायक बृजेश मिश्र ने अपने नए सियासी सफर की शुरूआत की है। पूर्व विधायक ने फर्श से लेकर अर्श तक के अपने सियासी सफर को दैनिक भास्कर से साझा किया।
सोनेलाल पटेल के नाम पर जताया था विरोध
बीजेपी ने प्रतापगढ़ में बन रहे मेडिकल कॉलेज का नाम अपना दल (एस) के संस्थापक सोनेलाल पटेल के नाम पर रखा है। इस पर पूर्व विधायक बृजेश मिश्र ने विरोध जताता था। उन्होंने कहा था कि हमें यह बताया जाए कि आखिर सोनेलाल पटेल का या अपना दल (एस) का प्रतापगढ़ के विकास में या यहां के वंचितों और शोषितों के लिए क्या योगदान है। उन्होंने कहा प्रतापगढ़ की भूमि न तो सोनेलाल पटेल की जन्मभूमि रही न ही कर्मभूमि रही है। ऐसे में यहां मेडिकल कॉलेज का नाम अपना दल (एस) के संस्थापक के नाम पर क्यों किया जा रहा है।
साल 2007 में बीएसपी से बने थे विधायक
पूर्व विधायक बृजेश मिश्र सौरभ ने बताया कि साल 2007 में मेरी पहचान बीएसपी के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चन्द्र मिश्रा से थी। मैं 2007 में बीएसपी के टिकट से प्रतापगढ़ की गड़वारा विधानसभा से विधायक बना। इसके बाद साल 2012 के चुनाव में टिकट नहीं मिला। पार्टी में उपेक्षा मिलने के बाद मैं हमेशा गरीबों की आवाज उठाता रहा। इसके साथ ही मैने बीजेपी की सदस्यता ग्रहण की।
अखिलेश यादव की नीतियों से प्रभावित
उन्होंने कहा कि नौ साल तक बीजेपी में रहा। वहीं, गरीबों- किसानों और समाज के सभी तबकों के लिए इस पार्टी के नीति- नियमों से मैं खुद को ठगा महसूस कर रहा था। इसलिए मैं समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव से प्रभावित होकर अब समाजवादी पार्टी की सदस्यता ली है।
नौ भाई-बहनों में 6 नंबर पर
पूर्व विधायक बृजेश मिश्र ने बताया कि वो लखनऊ के निशातगंज में रहते हैं, हालांकि उनका मूल निवास प्रतापगढ़ है। वह 6 भाइयों और 3 बहनों में छठवें नंबर पर हैं। उन्होंने बताया कि पिता हीरालाल मिश्र स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। खेती के लिए पिता हर भाई को अलग-अलग जिम्मेदारी देते थे। मैं अपना काम समय पर कभी पूरा नहीं कर पाता था, जिसे लेकर डांट पड़ती थी।
क्रिकेट खेलकर 3 दिन बाद लौटा था, तो पिता जी ने घर से निकाला
उन्होंने बताया कि 'मैं क्रिकेट का शौकीन था। एक बार क्रिकेट खेलने के लिए इलाहाबाद जाना था। किराए के पैसे नहीं थे। घर से झूठ बोलकर किताब खरीदने के लिए 20 रुपए मांगे और बिना बताए इलाहाबाद चला गया। वहीं, टूर्नामेंट खत्म होने के 2 दिन बाद जब लौटा तो पिता जी ने घर में घुसने नहीं दिया। खाना-पानी बंद कर दिया। 10 रुपए खर्च हो गए थे। बचे हुए 10 रु. लेकर लखनऊ जाने वाली पैसेंजर ट्रेन पकड़ ली।
तीन रुपए के लिए स्टेशन पर बेचा अखबार
उन्होंने बताया कि लखनऊ पहुंचने के बाद भूख लगी थी। इस दौरान 7 रु. खाने में खर्च हो गए। अब मेरे पास 3 रु. बचे। उसी समय प्लेटफार्म पर एक हॉकर दिखा। उससे 3 रुपए के 25 अखबार खरीदे और बेचने लगा। डेढ़ रुपए का फायदा हुआ। इसके बाद हॉकर से बात की और अगले दिन से वह मुझे 100 कॉपी देने को तैयार हो गया।
आएसएस के कार्यालय में पिता जी के मित्र ने दिया आसरा
उन्होंने कहा कि मेरी संघर्ष यात्रा यहीं नही रुकी, 4 दिन बाद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का कार्यालय ढूंढ़ना शुरू किया। यहां पिता के मित्र संकटा प्रसाद सिंह रहते थे। मैं संघ कार्यालय पहुंचा। वहां मौजूद एक स्वंयसेवक ने मुझसे पहले 4 बाल्टी पानी भरवाया, फिर संकटा प्रसाद से मिलवाया। उस समय वे राष्ट्रीय महामंत्री किसान संघ थे। मैंने अपनी कहानी सुनाई तो वे अपने साथ मुझे रखने को तैयार हो गए । मेरा एडमिशन 10वीं में कराया।
छात्रों की लड़ाई के लिए SP को मारा था थप्पड़
उन्होंने कहा कि जब बीए के लिए लखनऊ विश्वविद्यालय में एडमिशन लिया, उस दौरान छात्र संघ चुनाव पर रोक थी। इसके लिए छात्र आन्दोलन कर रहे थे। मैं भी उसमें शामिल हो गया। उस समय के तत्कालीन एसपी ने छात्रों से अभद्रता से बात की तो मैंने उन्हें थप्पड़ मार दिया। उसके बाद पुलिस ने जमकर पीटा था। उस समय कांग्रेस की सरकार थी, मुलायम सिंह राजनीति में मुकाम बनाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। लाठी चार्ज की बात सुनकर वे हम सबको देखने आए और इलाज के लिए 2 हजार रुपए भी दिए थे।
एलयू के इतिहास में पहली बार चुनाव निशान पर हुआ चुनाव
उन्होंने बताया कि एमए फर्स्ट ईयर के दौरान मैंने एलयू से महामंत्री का चुनाव लड़ा। विपक्षियों ने मेरे नाम का एक दूसरा प्रत्याशी मैदान में उतार दिया। वीसी के घेराव करने के बाद दोनों लोगों को अलग-अलग चुनाव निशान मिला। चुनाव में 70 हजार का खर्च आया। दोस्तों और परिचितों ने मिलकर यह खर्च किया। मैने वो चुनाव 3 गुना से अधिक वोटों से चुनाव जीता था।
Copyright © 2022-23 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.