इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त रखने को लेकर दाखिल याचिकाओं पर गुरुवार को सुनवाई की। तीन जजों की पीठ ने यूपी सरकार को निर्देश दिया कि प्रयागराज में माघ मेला के दौरान कल्पवासियों के स्नान और आचमन के लिए 3700 क्यूसेक पानी गंगा नदी में छोड़ें। कोर्ट ने निर्देश दिया कि कानपुर और आसपास के जिलों से किसी भी टेनरी का अनट्रीटेड पानी गंगा नदी में न गिरने दिया जाए। पीठ ने चीफ जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस एमके गुप्ता और जस्टिस अजीत कुमार शामिल थे।
याचिका में कोर्ट को बताया गया कि वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर बनाने में घरों और मंदिरों को तोड़ने से मलबा निकला। उस मलबे से गंगा नदी को पाट कर दीवार बनाई गई है। सरकार ने यह काम किस कानून के तहत किया, यह समझ से परे है।
गंगा को साफ करने पर करोड़ों खर्च, फिर मलबा क्यों डाला
याचिका दायर करने वाले वकीलों के समूहों ने कोर्ट को बताया कि केंद्र सरकार गंगा नदी को साफ करने के लिए करोड़ों खर्च कर रही है। दूसरी तरफ काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर बनाने में मलबा गंगा में डालकर दीवार खड़ी की है। हाईकोर्ट ने इस पर काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट के अधिवक्ता विनीत संकल्प से कहा कि वह इस मामले में अपना स्पष्टीकरण दें। कोर्ट ने अगली सुनवाई की तारीख 14 फरवरी तय की है।
इस दौरान अधिवक्ता वीसी श्रीवास्तव ने प्रयागराज में लगे एसटीपी के काम करने को लेकर विस्तृत रिपोर्ट हलफनामा कोर्ट में दिया। उन्होंने कहा कि कई एसटीपी काम नहीं कर रही हैं। कई जगह सीवर लाइन को जोड़ा नहीं गया है। एसटीपी का ट्रीटेड पानी जांच के लिए भेजा गया है। पानी ट्रीट के बाद भी उसमें चिपचिपाहट रहती है।
एसटीपी के बिजली बिल का भुगतान क्यों नहीं किया जा रहा? हाईकोर्ट ने वकीलों के इस कथन पर भी संज्ञान लेते हुए सरकार से पूछा कि एसटीपी का बिजली बिल 2019 के बाद से करीब 66 लाख रुपए बकाया है। इसका भुगतान क्यों नहीं किया जा रहा है? कोर्ट ने एसटीपी के क्रियाशील होने और उससे पानी को साफ करने की योजना का विस्तृत ब्योरा देने को कहा है।
कोर्ट ने प्रयागराज में होने वाले माघ मेला को देखते हुए निर्देश दिया है कि गंगा में बांधों और कैनालों से पर्याप्त मात्रा में पानी छोड़ा जाए। इस जनहित याचिका पर न्याय मित्र के रूप में एके गुप्ता ने भी पक्ष रखा। उन्होंने प्रदेश सरकार और काशी में मंदिर कॉरिडोर बनाने में गंगा को प्रदूषित करने का मुद्दा उठाया।
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