आज से 44 बरस पहले सिविल लाइंस के बच्चों ने खेल-खेल में रामलीला करना शुरू कर दिया। उन दिनों न कोई भव्य व्यवस्था थी और न ही डिजिटल का जमाना। बच्चों की यह रामलीला बड़ों को भी भा गई। बड़ों ने हौसला बढ़ाया और उसका परिणाम आज सबके सामने है। बच्चों ने जिस रामलीला की शुरुआत की वह प्रयागराज की एक पहचान बन गई और आज यहीं पर भव्य और व्यापक पैमाने पर रामलीला का मंचन हो रहा है। यही कारण है कि इस रामलीला का नाम श्री श्री बाल रामलीला समिति रखा गया है। यहां देश के विभिन्न शहरों से कलाकार आते हैं और पारंपरिक तरीके से मंचन करते हैं।
209 रुपए में हमने कराई है रामलीला: निर्देशक
रामलीला कमेटी के निर्देशक शंकर सुमन राजपूत ने दैनिक भास्कर को बताया कि इस रामलीला कमेटी की नींव रखने में मैं भी शामिल रहा हूं और आज भी उसी रूप में यहां अपने दायित्वों का निर्वहन कर रहा हूं। शंकर सुमन बताते हैं कि मुझे वह दिन याद है जब मैंने 209 रुपए में रामलीला का मंचन कराया था। मेरे सामने ही इस क्षेत्र के कुछ बच्चों ने इसकी शुरुआत की और मैंने उनका निर्देशन किया। आज भी निर्देशन करता हूं। मैंने लक्ष्मण कई साल तक लक्ष्मण का भी रोल किया है।
पता नहीं था इतना भव्य होगा यह रामलीला: जगदीश
कमेटी के संस्थापक सदस्य जगदीश कुमार बताते हैं कि जब 44 वर्ष पहले यहां इसकी शुरुआत हुई थी तो यह शायद किसी को पता नहीं था कि यही रामलीला एक दिन शहर की पहचान बनेगी। उन्होंने कहा कि यहां बैठकर इसे देखने पर पता चलेगा कि यह पूरी तरह से पारंपरिक तरीके से की जा रही है।
रावण की आवाज पर रोने लगते हैं बच्चे
शनिवार की रात सीता हरण और राम-हनुमान मिलन का मंचन हुआ। रात में मंच के सामने सैकड़ों दर्शकों की भीड़ लगी थी। इसमें कुछ छोटे बच्चे भी रामलीला देख रहे थे। रावण का रोल निभाने वाले अवधेश पटेल शानू बुलंद आवाज में हंसते हुए मंच पर पहुंचते तो उनका विकराल रूप और आवाज सुनकर वहां बैठे भी बच्चे रोना शुरू कर दिए। अवधेश कहते हैं इस मंच पर लोगों का स्नेह मिलता है और मैं प्रयास करता हूं कि दर्शकों को मेरा रोल पसंद आए। सीता का रोल करने वाली प्रगति बताती हैं कि वह दूसरी बार इस मंच पर सीता का रोल निभा रहीं हैं। आने वाले दिनों में भी प्रयास रहेगा कि यहां के दर्शकों के बीच में बेहतरीन मंचन कर सकूं।
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