नवरात्रि के हर दिन दैनिक भास्कर आपको शक्तिपीठ और उत्तर प्रदेश के बड़े माता मंदिरों के दर्शन करा रहा है। इसी कड़ी में आज हम आपको प्रयागराज की अदृश्य रूपी माता अलोप शंकरी के दर्शन करा रहे हैं। यहां माता के दर्शन के लिए वैसे तो हर दिन सैकड़ों भक्त आशीर्वाद लेने आते हैं, पर नवरात्रि के दिनों में श्रद्धालुओं की संख्या हजारों में पहुंच जाती है। श्रद्धालु मंदिर से कुछ दूर संगम में स्नान करने के बाद माता का दर्शन करना नहीं भूलते हैं। ऐसी मान्यता है कि माता सती के दाहिने हाथ की एक उंगली यहां गिरी और अदृश्य यानी अलोप हो गई।
स्कंद पुराण के अनुसार, भगवान ने जब सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े किए थे तो दाहिने हाथ की उंगली यहां स्थित एक कुंड में गिरकर अदृश्य हो गई थी। इसी वजह से इस शक्ति पीठ का नाम अलोप शंकरी पड़ा। इस शक्ति पीठ में देवी मां की कोई मूर्ति नहीं है और श्रद्धालु एक पालने की पूजा-अर्चना करते हैं। यहां कुंभ एवं माघ मेले के दौरान भक्तों का तांता लगा रहता है। देश के कोने-कोने से लोग इस अदृश्य रूपी माता के पालने का दर्शन करने आते हैं और मां से मुराद मांगते हैं।
यहां से एक किमी से भी कम है संगम की दूरी
भक्तगण प्रयागराज आते हैं तो माता के दर्शन के पहले गंगा यमुना एवं अदृश्य सरस्वती के संगम पर स्नान करने के बाद माता अलोप शंकरी का दर्शन-पूजन कर आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। माता के दर्शन करने से पहले यहां से एक किमी से भी कम दूरी पर गंगा नदी अपने वेग के साथ प्रवाहित होती है। श्रद्धालु यहां संगम स्नान के साथ मां अलोप शंकरी के भी दर्शन कर सकते हैं।
अलोप शंकरी मंदिर की महत्ता
अलोप शंकरी मंदिर के नाम से बस गया अलोपीबाग
अलोपीबाग वार्ड के 25 साल से लगातार सभासद कमलेश सिंह ने बताया कि प्राचीन काल में इस मंदिर स्थल पर एक कुंड और घना जंगल हुआ करता था। धीरे-धीरे माता की कृपा हुई और लोगों की मन्नतें पूरी होती गईं। सैकड़ों साल पहले लोग यहां आकर बसने लगे अब माता के मंदिर के नाम पर एक पूरी बस्ती बस गई जिसका नाम अलोपीबाग पड़ गया। इस बस्ती में 22 हजार से अधिक लोग रहते हैं।
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