हिंदुस्तान के गणतंत्र बनने के बाद और पहले अलग-अलग झंडे रहे, लेकिन सभी का मकसद सभी धर्मों, जातियों, व्यक्तियों को साथ लेकर चलना रहा।
आजादी के बाद तिरंगे कि 24 तीलियां सिर्फ कालचक्र को ही नहीं दिखाती, बल्कि यह सभी धर्म, मजहब, जातियों और व्यक्तियों आदि को एक माला में पिरोने को भी प्रदर्शित करता है। सभी धर्मों की उंगलियों के रूप में बंद मुट्ठी हिंदुस्तान को दिखाता है।
विश्व विजयी तिरंगा के नीचे सब हैं, तिरंगे से ऊपर कोई नहीं। कुछ ऐसी विचारधारा को दिखाते हुए मुरादाबाद मंडल के कमिश्नर अंजनी कुमार सिंह ने आन बान शान से लबरेज तिरंगे और उसके इतिहास पर रोशनी डाली।
आक्रांता हिन्दुस्तान की संस्कृति, परंपराओं और मिट्टी में रच बस गए
इस मौके पर उन्होंने कहा कि देश में कई आक्रांता आए और आक्रांता और भी कई देशों में गए लेकिन हिंदुस्तान और दूसरे देशों में यह फर्क है कि यहां आने वाले आक्रांता यहां की संस्कृति परंपराओं और मिट्टी में रच बस गए जबकि दूसरे देशों में आक्रांताओं के चलते दूसरी क़ौमें बची नहीं।
हिंदुस्तान में आक्रांता आए हमलावर होकर, लेकिन उन्हें भी यहां की मिट्टी को स्वीकार करना पड़ा। कस्तूरबा गांधी पक्षी विहार में आयोजित एक कार्यक्रम में कमिश्नर आञ्जनेय कुमार सिंह ने सभी को एकता और अखंडता का पाठ पढ़ाया।
उन्होंने कहा कि 1857 की लड़ाई के बाद जो झंडा बना उसमें सारे रंग शामिल किए गए। 24 तीलियां वाला तिरंगा हिंदुस्तान के रूप में बंद मुट्ठी सभी धर्म जाति के लोगों को दिखाता है।
हमारी संस्कृति, परंपराएं भी लगातार चलायमान
आज जब हम रंगों से पहचाने जाते हैं, रंगों में बंटने लगे हैं, तब तिरंगा सब का प्रतिनिधित्व करता है। इसे हमें समझना होगा, जो आज के समय में बहुत जरूरी है।
स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर उन्होंने कहा कि हमारी भाषाएं पहले भी और आज भी मिली जुली हुई हैं। गंगा जमुना सतलुज ही नही, बल्कि हमारी संस्कृति, परंपराएं भी लगातार चलायमान हैं, जिसके चलते हम आज भी धारा के साथ बचे हुए हैं।
विविधितता रूपी मिट्टी में हम चट्टान की तरह खड़े हैं। आज जरूरत है देशभक्ति का सुबूत मांगने से पहले खुद का सुबूत भी दें।
शहीदों ने हम भारत के लोग पंक्ति से शुरू संविधान की रक्षा की
देश का संविधान हम भारत के लोग पंक्ति से शुरू होता है, इसे हमें समझने की सख्त जरूरत है। देश पर जान न्योछावर करने वालों शहीदों ने सीमा रेखाओं की हिफाजत ही नहीं की, बल्कि उस संविधान की भी रक्षा की जो हम भारत के लोग पंक्ति से शुरू होता है।
दूसरों की देशभक्ति पर उंगली उठाने वालों को सोचना चाहिए कि आपने कब-कब देशभक्ति दिखाई थी।
एक थे, एक हैं, हजारों साल बाद भी एक रहेंगे
26 जनवरी 15 अगस्त सबसे ज्यादा बढ़ चढ़कर मनाना चाहिए, जहां किसी अन्य त्योहार से ज्यादा हम हिंदुस्तानी नजर आएं। तिरंगे का अपमान करने का प्रचार प्रसार करने वाला सबसे बड़ा दोषी होता है।
हम भारत के लोग शासक हैं, मालिक हैं, तो तिरंगे का सम्मान भी हमें ही करना होगा। 1947 में जितनी तिरंगे के सम्मान की जरूरत थी, आज उससे भी कहीं ज्यादा इसके सम्मान की जरूरत है।
आजादी से पहले भी एक थे, बाद में भी एक थे और आज भी एक हैं और हजारों साल बाद भी एक रहेंगे।
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