शादी को यादगार बनाने का ट्रेंड है। दुल्हन हेलिकॉप्टर से आती है। दूल्हा बुलेट पर स्टाइलिश एंट्री करता है। कहीं दुल्हन रिवॉल्वर लेकर डांस करती है। ऐसे न जाने कितने रील्स सोशल मीडिया पर मौजूद हैं। कई मामलों में FIR तक लिख गई। अब पुलिस के चक्कर लोगों को भारी पड़ रहे हैं।
लेकिन, हम यहां आपको ऐसी शादियों के बारे में नहीं पढ़वाने वाले हैं। बल्कि ये कहानी है रामपुर में दुल्हन की डोली की। उसको उठाने वाले कहार की। यहां आज भी परंपरा है कि दुल्हन विदा डोली में ही होगी।
डोली में दुल्हन, दूल्हा कार से पीछे-पीछे चलता है
यूपी में 2 ही शहर नवाबों के हैं। पहला लखनऊ, फिर रामपुर। रामपुर की एक खासियत और भी है। वो है शादी जैसे पवित्र बंधन को यादगार, अमिट बनाने के लिए पुरानी परंपरा का सहारा लेने की। दूल्हा अपनी अर्धांगिनी को ब्याह कर लाने के लिए पालकी में विदा कराते हैं। जबकि, इस पुरानी परंपरा को निभाने के दौरान आधुनिकता पीछे-पीछे चलती है।
यानी, डोली में अपने सपनों की राजकुमारी को लाने के दौरान दूल्हा कार से पीछे-पीछे चलता है। वहीं, दुल्हन कार के आगे-आगे डोली के परदे में मुस्काए-शर्माए अपने पिया घर नई जिंदगी की शुरुआत करने को रुखसत होती है।
रामपुर में इस परंपरा को जिंदा रखने वाले प्लैंक्विन बियरर यानी कहार डोली को खूब सजाकर पैदल-पैदल दुल्हन को विदा करके लाते हैं। इस दौरान डोली के वजन के चलते बीच-बीच में आराम भी करते हैं। आराम करने के लिए डोली को नीचे जमीन पर नहीं रखते बल्कि एक लकड़ी के सहारे रोक लेते हैं।
हालांकि, पुराने वक्त में कहार गाते हुए चलते थे, जो अब दिखाई नहीं देता। पालकी चलाने वाले कहार मोहम्मद फुरकान, सरताज, नीटू बताते हैं कि आज के मॉडर्न दौर में भी उन्हें खूब काम मिलता है। 2,500 से लेकर 5 हजार तक उन्हें आसानी से मिल जाते हैं। जब उन्हें पालकी सजाने का काम नहीं मिलता है तो वह कोई दूसरी मजदूरी जैसे काम करने लगते हैं। वहीं, पालकी में अपनी दुल्हन को विदा कर ले जाते हुए दूल्हे मोहम्मद जावेद ने बताया पालकी में दुल्हन लाना उनकी ख्वाहिश थी।
गली मोहल्लों में दिखाई देती है पालकी
पालकी में दुल्हन को कहार ऐसे आहिस्ता-आहिस्ता लेकर चलते हैं, मानों डोर पर मोती सवार हो। भारत कोकिला सरोजिनी नायडू ने अपनी मशहूर कविता प्लैंक्विन बियरर में लिखा है कि डोली में दुल्हन ऐसे सवार होती है, जैसे ख्वाब के होंठों पर मुस्कान तैरती हो। पालकी की अहमियत, अदब का गहवारा कहलाने वाले शहर रामपुर में आज भी कायम है।
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