शाहजहांपुर में कोर्ट के अंदर गोली मारकर हत्या की वारदात के बाद यूपी की अदालतों की सुरक्षा पर सवाल खड़े होने लगे हैं। शाहजहांपुर में एक वकील अपनी ड्रेस में तमंचा छिपाकर कोर्ट परिसर में पहुंचा और साथी वकील की हत्या कर दी। यह कोई पहल मामला नहीं है। दिल्ली की रोहिणी कोर्ट में शूटआउट से भी पुलिस ने सबक नहीं लिया। बिजनौर में दो साल पहले अदालत में ही जज के सामने आरोपी को गोलियों से भून दिया गया था।
इन सबसे साफ है कि अदालतों की सुरक्षा व्यवस्था सबसे लचर है। एक से ज्यादा एंट्री गेट हैं। न इन पर पुलिस जवान तैनात रहते हैं और न ही पर्याप्त मेटल डिटेक्टर हैं। कौन आ रहा है, कौन जा रहा है...कुछ नहीं पता। सुरक्षा में कमी होने की वजह से ही अदालतों में आए दिन वारदातें हो रही हैं।
कचहरी में आते ही बंदियों से होती है मुलाकात
कचहरी में वारदात करना क्रिमिनल के लिए सबसे आसान है। जेल से बंदी वाहन में बंदी कचहरी तक लाए जाते हैं। यहां उन्हें बेरोकटोक छोड़ दिया जाता है। परिवारवाले आकर मिलते हैं। खूब खातिरदारी करते हैं। वे बंदियों को क्या सामान पकड़ाते हैं, यह तक सुरक्षा में मौजूद पुलिसवाले नहीं देखते। कचहरी के लॉकअप से कोर्ट रूम तक जब बंदी पेशी पर जाता है तो उसके साथ परिजनों समेत अन्य लोग भी चलते हैं। पुलिसकर्मी न तो उन्हें साइड करते और न ही बंदी की सुरक्षा का ख्याल करते।
कोर्ट में वकीलों की चेकिंग तक नहीं
रोहिणी कोर्ट में बदमाशों ने वकील की ड्रेस में मर्डर किया तो शाहजहांपुर कोर्ट में हत्यारोपी खुद वकील निकला। दरअसल, कोर्ट के गेटों पर वकीलों की कोई चेकिंग नहीं होती। कई बार वकीलों की आड़ में अपराधी भी उनकी वेशभूषा में घुस आते हैं। यदि पुलिस सख्ती से वकीलों की चेकिंग करे तो वे आंदोलन पर उतर आते हैं। यही वजह रही कि शाहजहांपुर कोर्ट में वकील अपनी ड्रेस में तमंचा छिपाकर अंदर तक लेकर पहुंच गया।
अदालतों में हत्या की प्रमुख घटनाएं
हत्या से ज्यादा हमले की घटनाएं
यह सिर्फ हत्या की प्रमुख घटनाएं हैं। इसके अलावा मेरठ, गाजियाबाद, हाथरस कोर्ट में हत्या की कई वारदातें हो चुकी हैं। जबकि हमले के मामले इससे कहीं ज्यादा हैं। मेरठ कचहरी में ही कुख्यात ऊधम सिंह पर दो बार हमले हो चुके हैं। सुरक्षा में लापरवाही के चलते अदालतों से आए दिन बदमाशों के भागने के मामले सामने आते रहते हैं।
अदालतों में शूटआउट पर हाईकोर्ट ने जताई थी चिंता
बिजनौर में 17 दिसंबर 2019 को कोर्ट रूम में हुई हत्या का स्वत: संज्ञान लेते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने दो जनवरी 2020 को जस्टिस सुधीर अग्रवाल और जस्टिस सुनील कुमार की एक विशेष पीठ गठित की थी। पीठ ने अदालतों की सुरक्षा पर पुलिस को लेकर खेदजनक टिप्पणी की थी। पीठ ने अपर महाधिवक्ता को कहा था कि राज्य में अदालत की सुरक्षा 2008 से एक मुद्दा है, लेकिन वास्तव में इस दिशा में कुछ नहीं किया गया।
अगर राज्य सरकार अदालत परिसरों में पर्याप्त सुरक्षा मुहैया नहीं करा सकती है तो हम केंद्र सरकार से इसके लिए केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती के लिए कहेंगे। हाईकोर्ट ने इस बारे में यूपी के अपर मुख्य सचिव गृह और डीजीपी को समन जारी किया था।
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