मशहूर कॉमेडियन और गजोधर भइया हंसते-हंसाते हम सबको रुला गए। 42 दिन जिंदगी और मौत के साथ जंग लड़ते-लड़ते वो हम सबको बुधवार सुबह अलविदा कह गए। कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव की मौत के बाद से उनके गृह जनपद कानपुर में फैंस की भीड़ लगी हुई है। लेकिन आपको बता दें, उनका मूल गांव उन्नाव के बैसवारा थाना क्षेत्र में पड़ता है। कानपुर शहर से करीब 55 किलोमीटर दूर गांव मगरायर में भी सन्नाटा है। गांव के लोगों का कहना है कि उनके गांव का सितारा बुझ गया।
गांव की दुकानें बंद मिलीं, लोग राजू को याद कर रहे
मशहूर कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव की मौत के बाद भास्कर की टीम उनके गांव मगरायर पहुंचीं। गांव में सन्नाटा था और एक भी दुकान नहीं खुली थी। थोड़ी-थोड़ी दूरी पर बैठे लोग राजू के बचपन की बातों को याद कर रहे थे। वहीं, कुछ लोग राजू के पैतृक घर के बाहर बैठे हुए मिले। उस घर में अब राजू श्रीवास्तव के चाचा और उनका परिवार रहता है।
10-12 साल राजू अपने गांव में रुके, फिर कानपुर गए
भास्कर की टीम जब गजोधर भइया के घर के बाहर पहुंची, तो वहां पर हमको उनके चचेरे भाई वेद व्यास श्रीवास्तव मिले। वेद व्यास श्रीवास्तव ने कहा, "जिसने हमारे घर का नाम रोशन किया, आज वही चिराग बुझ गया। यकीन नहीं हो रहा कि मेरा भाई अब हमारे बीच नहीं है। कई साल पहले उनसे मुलाकात हुई थी। जब भी मैं उनसे मिलता, वो यादगार बन जाता। राजू जैसे दिखते थे, वैसे बचपन में भी थे। पूरा गांव उनको प्यार करता था। वो हमारे साथ बहुत कम समय के लिए रहे, लेकिन जितना रहे, उतना शानदार रहा।"
महिलाओं की साड़ी पहनकर डराते थे राजू
उन्होंने बताया, "राजू बचपन से ही सबको हंसाते रहे हैं। उन्होंने पहला शो इसी गांव में किया था। वो खूब शैतानी किया करते थे, लेकिन कभी किसी से भी उनका विवाद नहीं हुआ। वो गांव में महिलाओं के कपड़े पहनकर महिलाओं के बीच बैठकर पंचायत करते। उसके बाद अचानक से खड़े होकर सबको डरा देते। उनकी इस हरकत से परेशान होकर गांव की महिलाओं ने झुंड में बात करना ही बंद कर दिया था।"
गजोधर हमारे गांव के ही थे, राजू ने उनको कॉपी किया
वेद बताते हैं, "जिस गजोधर भइया का वो जिक्र करते रहे हैं, वो हमारे गांव के नाई थे। गजोधर भइया के यहां ही सब लोग दाढ़ी और बाल कटवाने जाते थे। राजू भी वहीं जाया करते थे। गजोधर भइया के बोलने का अंदाज बहुत मजाकिया था। राजू उनको भी बहुत परेशान करते थे। वो अपने शो में उन्हीं की एक्टिंग करते थे। उनके चलने का तरीका, बैठने का तरीका सब कुछ राजू ने कॉपी कर लिया था।"
कभी पेड़ के नीचे, कभी खेत पर लोगों को हंसाते थे राजू
राजू के पैतृक घर के पड़ोस में रहने वाले हीरा लाल सोनी ने बताया, "राजू भइया हमको छोटा भाई मानते थे। 2011 में वो आखिरी बार गांव आए थे। तब वो हमारे घर भी आए थे। यहीं पर सब खाना-पीना हुआ था। हम दोनों के परिवार के संबंध बहुत अच्छे थे। उन्होंने गांव के स्कूल में ही पढ़ाई की है। करीब 12 साल वो हमारे साथ रहे हैं। उसके बाद वो कानपुर रहने गए हैं।"
उन्होंने बताया, "वो बीच-बीच में गांव आया करते थे। उन्होंने पहली बार गांव के अंदर ही स्टेज शो किया था। शिवरात्रि के मौके पर उन्होंने ये शो किया था। तब से गांव के लोग उनसे हंसाने के लिए कहा करते थे। राजू भइया भी कभी पेड़ के नीचे तो कभी किसी के खेत में खड़े होकर शो किया करते थे और सबको हंसाया करते थे।"
हीरा लाल बताते हैं, "मैं भी उसी स्कूल में पढ़ता था, जहां पर वो पढ़ते थे। मैं उनकी साइकिल से ही स्कूल जाया करता था। वो मुझको पढ़ने में भी मदद करते थे। इतना नाम कमाने के बाद भी उन्होंने हमेशा हम लोगों को प्यार और सम्मान दिया। वो जब भी कानपुर आते थे, हम लोग उनसे मिलने उनके घर जाया करते थे। उस दिन का पूरा दिन हम लोग साथ में ही बिताते थे।"
कमरे के अंदर निकाली 6-7 आवाजें, फिर बोले-कैसा लगा
गांव के नवल किशोर ने बताया, "हम लोगों ने टीवी में उनको कई बार तरह-तरह की आवाज निकालते सुना था, लेकिन यकीन नहीं कर पाते थे। एक बार राजू जी गांव आए हुए थे। तब मैंने उनसे कहा, आप टीवी पर जैसी आवाजें निकालते हो, वैसी हम लोगों को भी निकाल कर दिखाओ। इस पर उन्होंने कहा, ठीक है।"
उन्होंने बताया, "उसके बाद वो उठकर एक कमरे के अंदर चले गए। कुछ देर बाद कमरे से एक लड़की की आवाज आने लगी। फिर अचानक किसी जानवर की आवाज आने लगी। ऐसे करते-करते उन्होंने करीब 6-7 आवाजें निकाली। फिर कमरे से बाहर आकर पूछा, कैसी लगी मेरी आवाज। जिसके बाद हम लोगों ने उनको गोद में उठा लिया था।"
पिता की कवि सम्मेलन में सम्मान के दौरान हुई थी मौत
राजू श्रीवास्तव के पिता का नाम बलई काका था। वह अच्छे कवि थे। करीब 10 साल पहले उन्नाव के पन्नालाल मैदान में जिला प्रशासन ने एक भव्य कवि सम्मेलन किया था। इस दौरान मंच पर राहत इंदौरी, हरिओम, शबीना, डॉ. अखिलेश समेत पूरा जिला प्रशासन मौजूद था। सम्मान के दौरान ही राजू के पिता की अचानक मौत हो गई थी।
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