अब आप अपने आसपास के नालों में बहते सीवेज के पानी को वेस्ट न समझिएगा। मलजल का इस्तेमाल खेती-बाड़ी के साथ अब इलाज में भी हो सकता है। मलजल में पाए जाने वाले बैक्टीरियोफेज पर IMS-BHU में एक काम का रिसर्च हुआ है। लैब में चूहों को टाइफाइड से ग्रसित कराकर बैक्टीरियोफेज थेरेपी दी गई, तो उसकी बीमारी जड़ से समाप्त हो गई। इसी तरह कई दूसरों रोगों पर भी बैक्टीरियोफेज थेरेपी की टेस्टिंग चल रही है। यह रिसर्च IMS-BHU के प्रो. गोपालनाथ के वीआरडीएल लैब में 17 साल से किया जा रहा है।
मंजूरी मिली तो कर सकते हैं ट्रायल
प्रो. गाेपालनाथ ने कहा, "यदि कोई मरीज टाइफाइड की दवा से स्वस्थ नहीं हो रहा या फिर उसके ठीक होने की कोई उम्मीद नहीं है, तो उस कंडीशन में बैक्टीरियोफेज थेरेपी दी जा सकती है। मरीज के अटेंडेंट और उनका इलाज करने वाले दो फिजिशियंस के कंसेंट के बाद ही यह थेरेपी दी जा सकती है। ट्रीटमेंट के लिए बैक्टीरियोफेज का लायो फ्लाइज फाॅर्म इस्तेमाल करना होगा।''
इंजेक्शन से दी जा सकती है दवा
प्रो. गोपालनाथ ने बताया कि बैक्टीरियोफेज थेरेपी में मलजल के बैक्टीरिया को पाउडर के फॉर्म बनाया जाता है। उसके बाद पानी में घोलकर इंजेक्शन के द्वारा रोगी को दे दिया जाएगा। रोगी 2-3 दिन में ही स्वस्थ हो जाएगा। जबकि आमतौर पर व्यक्ति को टाइफाइड से उबरने में 5-7 दिन लग जाते हैं। वहीं, प्रोफेसर ने बताया कि यह दवा उन मरीजों के काम आएगी, जो कि टाइफाइड के दौरान एंटीबॉयोटिक लेकर रजिस्टेंट हो चुके हैं। यानी कि उन पर कोई दवा असर ही नहीं करती।
इच्छुक लोग आ सकते हैं लैब
प्रो. गोपाल नाथ ने कहा कि जरूरतमंद चाहे तो उनके लैब में आकर सीधे कुछ सैंपल ले जा सकता है। उन्होंने यह भी दावा किया कि दवा नियामक मंडल यदि बैक्टीरियोफेज के प्रयोग की अनुमति देता है, तो टाइफाइड को पूरी दुनिया से समाप्त किया जा सकता है।
खुराक बढ़ाने पर मर सकता है रोगी
प्रो. गाेपालनाथ बोले, "खरगोशों में हड्डी के इंफेक्शन को पूरी तरह से खत्म किया जा सकता है।'' वहीं, चूहों में सूडोमोनास एयरूजिनोजा , एसिनेटोबैक्टर, क्लेबसिएला निमोनिया के गंभीर संक्रमणों को भी ठीक किया गया है। उन्होंने बताया कि थेरेपी की खुराक न तो बहुत ज्यादा और न ही कम रखा जा सकता है। क्योंकि अधिक मात्रा में बैक्टीरियोफेज का प्रयोग करने पर देखा गया कि एकाएक संक्रमित करने वाले बैक्टीरिया की कोशिकाओं दीवार टूट जाती हैं। एंडोटॉक्सिन इतनी भारी मात्रा में ब्लड में आ जाते हैं कि इससे मरीज को शॉक लग सकता है और मौत भी हो सकती है। चूहों में इसी तरह के परिणाम देखे गए हैं। स्टडी के मुताबिक यदि 105 PFU बैक्टीरियोफेज एक चूहे को दिया जाए, तो टाइफाइड का बुखार या उसके वाहक क्रानिक करियर को खत्म किया जा सकता है।
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