आज नवरात्रि के पांचवें दिन 51 शक्तिपीठों में से एक वाराणसी के विशालाक्षी गौरी और वागेश्ववरी माता मंदिर में भारी संख्या में भक्त उमड़े हैं। मणिकर्णिका घाट के पास मीरघाट में मौजूद विशालाक्षी और जैतपुरा स्थित वागेश्वरी देवी के मंदिर में विशेष तौर पर महिलाएं और दूरदराज से आए लोगों में दर्शन को लेकर बड़ा उत्साह है।
स्कंद पुराण में मां विशालाक्षी और वागेश्वरी को नवदुर्गा का पांचवां स्वरूप बताया गया है। देवी पुराण में भी काशी के विशालाक्षी का उल्लेख किया गया है। साल भर में दो बार शारदीय नवरात्रि और इससे पहले चैत्र नवरात्रि यानि कि अप्रैल में लाेग मां विशालाक्षी के दर्शन करने इस मंदिर में लोग आते हैं। स्कंद पुराण में अन्नपूर्णा माता को ही विशालाक्षी देवी बताया गया है। उन्होंने काशी के भूखे और मजबूर ऋषि व्यास को भोजन कराया था।
बेलपत्र और फूलों से की गई है सजावट
आज तड़के सुबह से ही बड़ी संख्या में भक्तजन वागेश्वरी मंदिर में दर्शन के लिए लाइन लगाकर खड़े हैं। जय मां शेरावाली और मां अन्नपूर्णा के उद्घोष लगाते हुए बारी-बारी से मंदिर में दर्शन पूजन का कार्य चल रहा है। माता वागेश्वरी और विशालाक्षी काे गुड़हल, गेंदा, गुलाब, बेलपत्रों और विशेष लाइटों से सजा दिया गया है। वहीं, मां का दर्शन पाकर लोग काफी प्रसन्नचित नजर आ रहे हैं। कहा जाता है कि मां के दोनों रूपों के दर्शन और ध्यान मात्र से ही व्यक्ति का दिल और दिमाग बिल्कुल स्वस्थ रहता है।
माता सती का कुंडल यहां पर गिरा था
पौराणिक मान्यता है कि इसी जगह पर माता सती के दाहिने कान की मणिजणित कुंडल गिरी थी। तब से यहां पर विशालाक्षी देवी का मंदिर है।
पौराणिक कथा में बताया गया है कि माता सती ने अपने पिता राजा दक्ष के आयोजित यज्ञ कुंड में समाहित होकर अपने प्राण की आहुति दे दी थी। तब, भावना वश आकर भगवान शंकर माता सती के बेजान शरीर को लेकर पूरे ब्रह्मांड में घूमने लगे।
धरती को बचाने के लिए देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की, तो उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 हिस्सों में बांट दिया। इसमें से सती के दाएं कान की बाली काशी के इसी स्थान पर गिरी बताई जाती है। इसी वजह से मणिकर्णिका के नाम से यह क्षेत्र प्रसिद्ध हो गया।
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