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आईआईटी BHU की बड़ी खोज:मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग विभाग में बनाया गया निकल फ्री सर्जिकल ग्रेड स्टेनलेस स्टील, अंग प्रत्यारोपण कराना होगा सस्ता, नहीं होगी स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें

वाराणसी2 वर्ष पहले
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निकल रहित स्टेनलेस स्टील से बने प्लेट और स्क्रू जो प्रत्यारोपण में काम आते हैं। - Dainik Bhaskar
निकल रहित स्टेनलेस स्टील से बने प्लेट और स्क्रू जो प्रत्यारोपण में काम आते हैं।

आईआईटी BHU के मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. गिरिजा शंकर महोबिया ने अंग प्रत्यारोपण के क्षेत्र में एक बड़ा शोध किया है। उन्होंने निकल रहित सर्जिकल ग्रेड स्टेनलेस स्टील की खोज की है। उनका दावा है कि यह स्टील शरीर में अंग प्रत्यारोपण में उपयोग होने वाली टाइटेनियम, कोबाल्ट-क्रोमियम और निकल युक्त स्टेनलेस स्टील से सस्ता और मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद सुरक्षित है। उन्होंने बताया कि आत्मनिर्भर भारत की दिशा में उनका यह शोध है और इसके पेटेंट के लिए भी उन्होंने आवेदन किया है।

डॉ. गिरिजा शंकर महोबिया।
डॉ. गिरिजा शंकर महोबिया।

निकल के नुकसान देख कर शोध के लिए हूए प्रेरित

डॉ. महोबिया ने दैनिक भास्कर को बताया कि हमारे देश में सड़क दुर्घटना या अन्य वजह से हड्‌डी टूटने से रोजाना लाखों लोग अस्पताल जाते हैं। हड्‌डी जोड़ने और उसे सहायता करने में प्रयुक्त होने वाली निकल आधारित स्टेनलेस स्टील महंगा तो होता ही है। निकल मानव त्वचा में एलर्जी, कैंसर, सूजन, बेचैनी, थकान और प्रत्यारोपण वाले शरीर के हिस्से की त्वचा में परिवर्तन का कारण भी बनता है। इसके अलावा निकल आधारित स्टेनलेस स्टील ज्यादा वजनी भी होता है और उसमें जंग लगने की आशंका भी बनी रहती है। इसके चलते शरीर के विभिन्न तत्वों के साथ निकल भी बाहर निकलने लगता है। इतने सारे दुष्प्रभाव देख कर वह मैकनिकल मेटलर्जी के विशेषज्ञ प्रो. वकील सिंह से प्रेरणा लेकर शोध के लिए प्रेरित हुए।

निकल रहित स्टेनलेस स्टील से बनी रॉड जो प्रत्यारोपण में काम आते हैं।
निकल रहित स्टेनलेस स्टील से बनी रॉड जो प्रत्यारोपण में काम आते हैं।

इस्पात मंत्रालय ने पैसा दिया, विषय विशेषज्ञों ने सहयोग किया

डॉ. महोबिया के शोध को साल 2016 में इस्पात मंत्रालय ने हरी झंडी दी। इसके साथ ही 284 लाख का फंड मेटलर्जिकल विभाग में संक्षारण थकान रिसर्च लैब और शोध के लिए दिया। नई धातु की रासायनिक संरचना डॉ. महोबिया और डॉ. ओपी सिन्हा ने तैयार की। हैदराबाद स्थित मिश्र धातु निगम लिमिटेड निगम में नए धातु की रासायनिक संरचना बनाई गई। नई धातु में निकल निकाल कर नाइट्रोजन और मैगनीज मिलाया गया। नई धातु में जंग विरोधी गुण और यांत्रिक गुण के लिए क्रोमियम और मॉलिब्डेनम अनुकूल अनुपात में मिलाया गया।

आईआईटी के स्कूल ऑफ बायोमेडिकल इंजीनियरिंग के डॉ. संजीव महतो ने हड्‌डी कोशिकाओं के धातु से चिपकने और उसके जीवित रहने की जांच की। वैज्ञानिक प्रो. मोहन आर बानी ने स्टेम सेल के नई धातु से चिपकने और उसके जीवित रहने का अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि निकल रहित धातु शरीर के अनुकूल है। रिसर्च स्कॉलर चंद्रशेखर कुमार ने नई धातु के जंगरोधी गुण का परीक्षण किया।

इस्पात मंत्रालय के सहयोग से बीएचयू आईआईटी के मेटलिर्जकल इंजीनियरिंग विभाग में बनाई गई लैब।
इस्पात मंत्रालय के सहयोग से बीएचयू आईआईटी के मेटलिर्जकल इंजीनियरिंग विभाग में बनाई गई लैब।

चूहा, खरगोश और सुअर पर कारगर रहा परीक्षण

निकल रहित धातु का परीक्षण त्रिवेंद्रम स्थित लैब में अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप चूहा, सुअर और खरगोश पर किया गया। सभी परीक्षण में निकल रहित धातु को शरीर के अनुकूल पाया गया। किसी भी जानवर पर इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं दिखा। इसके अलावा आईएमएस BHU के हड्‌डी रोग विशेषज्ञ प्रो. अमित रस्तोगी ने खरगोशों पर निकल रहित धातु का लंबा परीक्षण किया तो उन्होंने पाया कि यह पूरी तरह सुरक्षित है। इसके अलावा डॉ. एन शांथी श्रीनिवासन और डॉ. कौशिक चट्‌टोपाध्याय ने नई धातु के यांत्रिक व्यवहार का परीक्षण कर उसे समझा।

निकल रहित नई धातु के यह हैं लाभ

  • निकल युक्त धातु से नई धातु प्रति किलोग्राम 100 रुपये सस्ती पड़ेगी।
  • निकल युक्त धातु से नई धातु का वजन आधा है।
  • नई धातु का उपयोग पेसमेकर और वॉल्व आदि के लिए किया जा सकता है।
  • नई धातु की ताकत निकल युक्त धातु से दोगुनी है।
  • नई धातु का थकान रोधी गुण बहुत अच्छा है।
  • नई धातु शरीर के अंदर नहीं चिपकेगी।
  • नई धातु में शरीर के अंदर जंग नहीं लगेगा।
  • नई धातु में निकल न होने की वजह से फेफड़े, दिल और किडनी से जुड़ी बीमारी का खतरा नहीं होगा।
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