पूर्वांचल की सियासत की बात हो और बाहुबलियों का जिक्र न हो तो चर्चा अधूरी रह जाती है। इसमें भी खास यह है कि यहां के बाहुबली जनता के वोट की बदौलत जनप्रतिनिधि चुने जाते हैं और फिर जेल की सलाखों के पीछे ही रह जाते हैं। मुख्तार अंसारी, बृजेश सिंह और अतुल राय जैसे ऐसे कई उदाहरण हैं जिनका चेहरा देखने के लिए उन्हें वोट देने वाले मतदाता तरसते रहते हैं। तो अब्बास अंसारी जैसे विधायक भी हैं, जिनकी तलाश में पुलिस और एसटीएफ जैसी एजेंसी देश भर में दबिश दे रही है।
आइए, आपको बताते हैं ऐसे ही बाहुबली जनप्रतिनिधियों की कहानी...।
3 बार जेल से ही विधायक चुने गए मुख्तार
बाहुबली मुख्तार अंसारी मऊ सदर विधानसभा से वर्ष 1996 से 2022 तक विधायक रहे। 2005 में कृष्णानंद राय हत्याकांड के बाद मुख्तार अंसारी की गिरफ्तारी हुई। इसके बाद मुख्तार अंसारी ने जेल की सलाखों के पीछे से 2007, 2012 और 2017 का विधानसभा चुनाव जीता। मुख्तार को वोट देकर चुनाव जिताने वाले मतदाता 2005 से 2022 तक उनका चेहरा नहीं देख सके और सारा काम प्रतिनिधि के सहारे ही चलता रहा।
2022 के चुनाव में मऊ सदर विधानसभा से मुख्तार अंसारी का बेटा अब्बास अंसारी विधायक पहली बार विधायक चुना गया। अब्बास भी वांछित होने के कारण लंबे समय से फरार है और उसकी तलाश यूपी पुलिस के साथ ही एसटीएफ भी देश भर में कर रही है। गिरफ्तार होने के बाद अब्बास का भी लंबे समय तक जेल में रहना तय माना जा रहा है।
जेल में ही खत्म हो गया एमएलसी का कार्यकाल
बाहुबली बृजेश सिंह वर्ष 2016 में वाराणसी सीट से एमएलसी चुने गए। बृजेश सिंह का कार्यकाल जेल की सलाखों के पीछे ही खत्म हो गया। मगर, चुनाव जिताने वाले वाराणसी, चंदौली और भदोही जिले के मतदाताओं का आभार जताने के लिए बृजेश कभी उनके बीच भी नहीं जा सके। बीते एक माह से ज्यादा समय से बृजेश सिंह जमानत पर जेल से बाहर हैं। अब उनकी पत्नी अन्नपूर्णा सिंह वाराणसी सीट से एमएलसी हैं।
पहली बार चुने गए सांसद और तभी से जेल में
कभी मुख्तार अंसारी के मैनेजर कहलाने वाले अतुल राय वर्ष 2019 में मऊ जिले के घोसी संसदीय क्षेत्र से बसपा के टिकट पर सांसद चुने गए। सांसद चुने जाने से पहले ही अतुल राय पर वाराणसी में रेप का मुकदमा दर्ज हुआ था। उसी मुकदमे में वांछित अतुल राय ने 19 जून 2022 को वाराणसी की कोर्ट में सरेंडर किया था।
तब से लेकर 3 साल 3 महीने होने को आए और अतुल राय का चेहरा उनके क्षेत्र के मतदाता नहीं देख पाए हैं। रेप के आरोप से बरी होने वाले अतुल राय को लेकर निकट भविष्य में ऐसी कोई संभावना नहीं दिख रही है कि वह अपने संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं के सुख-दुख में शामिल होंगे।
कतार में नाम कई और भी हैं
पूर्वांचल में कई और ऐसे बाहुबली भी रहे हैं जो जेल की सलाखों के पीछे से चुनाव जीतते रहे हैं। इनमें उम्रकैद की सजा काट रहे अमरमणि त्रिपाठी, दिवंगत हरिशंकर तिवारी और विजय मिश्रा का नाम सबसे पहले आता है। इसके अलावा पूर्वांचल के आसपास की बात करें तो रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया और दिवंगत अखिलेश सिंह जैसे कई ऐसे नाम हैं जो सलाखों के पीछे रह कर भी जनता का भरोसा जीतने में सफल रहे।
क्या कहते हैं कानूनी जानकार
वाराणसी निवासी सीनियर एडवोकेट और दी सेंट्रल बार एसोसिएशन के पूर्व चेयरमैन विवेक शंकर तिवारी ने बताया कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत जेल में निरुद्ध रहने वाले व्यक्ति को भी चुनाव लड़ने का अधिकार मिला है। फर्क सिर्फ इतना होता है कि सामान्य प्रत्याशियों की तरह चुनाव लड़ने वाले बंदी को मतदान और जनसंपर्क करने की अनुमति नहीं मिलती है। जेल में निरुद्ध बंदियों के चुनाव लड़ने पर सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में प्रतिबंध लगाया था। हालांकि, उसी वर्ष संसद ने मानसून सत्र में लोक प्रतिनिधित्व कानून में संशोधन कर जेल में बंद विचाराधीन बंदियों के चुनाव लड़ने का रास्ता साफ कर दिया था।
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